Tigers in India: एक दौर ऐसा था जब देश में चीतों की भरमार थी, अकबर के बेटे ने ले ली जानवरों की जान!
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Tigers in India: एक दौर ऐसा था जब देश में चीतों की भरमार थी, अकबर के बेटे ने ले ली जानवरों की जान!

Counting tigers in India: PM मोदी के जन्मदिन पर इस बार नामीबिया से 8 चीते लाए जा रहे हैं. पीएम मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर को होता है और इस अवसर पर उन लाए जा रहे चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में रखा जाएगा. 

Tigers in India: एक दौर ऐसा था जब देश में चीतों की भरमार थी, अकबर के बेटे ने ले ली जानवरों की जान!

Tigers in India: प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर इस बार नामीबिया से 8 चीते लाए जा रहे हैं. पीएम मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर को होता है और इस अवसर पर उन लाए जा रहे चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में रखा जाएगा. बता दें कि चीता एकमात्र बड़ा मांसाहारी पशु है, जो भारत में पूरी तरह विलुप्त हो चुका है. इनके विलुप्त होने की मुख्य वजह शिकार और रहने के ठिकाने की कमी को कहा जाता है. 

एमपी के उद्यान में रखे जाएंगे चीते

बता दें कि चीतों को देश में लाने की कोशिशें साल 2009 में जिंदा की गई थीं. साल 2010 और 2012 के बीच दस जगहों का सर्वेक्षण किया गया. इसमें पाया गया कि मध्य प्रदेश में कुनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) चीतों को लाने के लिए तैयार है, क्योंकि इस संरक्षित क्षेत्र में लुप्तप्राय एशियाई शेरों को लाने के लिए भी काफी काम किया गया था.

नामीबिया से आ रहे हैं चीते

ऐसे में भारत ने चीतों को लाने के लिए जुलाई में नामीबिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. 16 सितंबर को आठ चीते नामीबिया की राजधानी विंडहोक से भारत लाए जाएंगे और 17 सितंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर ये जयपुर हवाई अड्डे पर पहुंचेंगे. इसके बाद इन्हें हेलीकॉप्टरों के जरिए इनके नए ठिकाने कुनो पहुंचाया जाएगा.

जब देश से खत्म हो गए चीते!

जानकार बताते हैं कि मध्य प्रदेश के कोरिया जिले (अब छत्तीसगढ़ में है) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने साल 1947 में देश में अंतिम 3 चीतों का शिकार कर उन्हें मार गिराया था. इसके बाद 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से यह घोषणा की थी कि देश से चीते विलुप्त हो चुके हैं. एक समय ऐसा भी था जब ऊंचे पर्वतीय इलाकों, तटीय क्षेत्रों और पूर्वोत्तर को छोड़कर पूरे देश में चीतों के गुर्राने की गूंज सुनाई देती थी.

1970 के दशक में फिर शुरू हुई चीतों को कोशिशें

जब साल 1952 में स्वतंत्र भारत में वन्यजीव बोर्ड की पहली बैठक हुई तो सरकार ने 'मध्य भारत में चीतों की सुरक्षा को विशेष प्राथमिकता देने का आह्वान करते हुए इनके संरक्षण के लिए साहसिक प्रयोगों का सुझाव दिया था.' इसके बाद, 1970 के दशक में एशियाई शेरों के बदले में एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए ईरान के शाह के साथ बातचीत शुरू हुई. ईरान में एशियाई चीतों की कम आबादी और अफ्रीकी चीतों के साथ इनकी अनुवांशिक समानता को ध्यान में रखते हुए भारत में अफ्रीकी चीते लाने का फैसला किया गया.

अंग्रेजों और मुगलों की वजह से देश में आई चीतों की कमी

लेकिन आपको बता दें कि देश में चीतों की कमी अचानक नहीं हुई. दरअसल एक दौर में अकबर के बेटे जहांगीर ने पाला के परगना में चीते के जरिए 400 से अधिक मृग पकड़े थे. शिकार के लिए चीतों को पकड़ने और कैद में रखने के कारण प्रजनन में आने वाली दिक्कतों के चलते इनकी आबादी कम होने लगी. जानकार बताते हैं कि भारत में चीतों को पकड़ने में अंग्रेजों की बहुत कम दिलचस्पी थी, हालांकि वे कभी-कभी ऐसा किया करते थे.

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