गुजरात और राजस्थान में 'सोन चिरैया' को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी का गठन किया है जो 1 साल में जहां संभव हो सके हाई वोल्टेज बिजली के तारो को अंडरग्राउंट करेगी.
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नई दिल्ली: विलुप्ति के कगार पर पहुंची सोन चिरैया (Great Indian Bustard) को बचाने के प्रयास के तहत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को गुजरात और राजस्थान सरकारों को निर्देश दिया कि वे जहां भी संभव हो, ऊपर से गुजरते हाई वोल्टेज बिजली तारों को एक साल के भीतर जमीन के नीचे बिछाएं.
मुख्य जस्टिस एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यिन की पीठ ने हाई वोल्टेज बिजली तारों को भूमिगत करने की संभावना का आकलन करने के लिए तीन सदस्यीय एक समिति गठित की है. इसमें वैज्ञानिक डॉ. राहुल रावत, डॉ. सुतीर्थ दत्ता और डॉ. देवेश जी शामिल हैं. अदालत ने कहा कि भारत सरकार वैज्ञानिकों की इस समिति को हरसंभव सहायता उपलब्ध कराएगी. ये कार्य अभी से शुरू हो जाना चाहिए.
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कोर्ट ने कहा कि ये कार्य अभी से शुरू हो जाना चाहिए. जहां प्रतिवादियों को इस तरह की संभावना को लेकर कोई समस्या आए, वे सभी सामग्री और विवरण के साथ मामला समिति को भेजेंगे और फिर समिति इस बारे में निष्कर्ष पर पहुंचेगी कि जमीन के नीचे बिजली तार बिछाना संभव है या नहीं. अदालत ने कहा कि समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रतिवादियों को आगे कार्रवाई करनी होगी और एक साल के भीतर जहां संभव हो तार जमीन के नीचे बिछाने होंगे.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तारों से टकराकर और इनके करंट की चपेट में आकर संबंधित पक्षियों को मरने से बचाने के साथ ही इनके अंडों की सुरक्षा के लिए भी एक संरक्षण नीति की आवश्यकता है. अदालत का आदेश रिटायर्ड IAS अधिकारी एम के रंजीत सिंह और अन्य की याचिका पर आया. जिसमें सोन चिरैया और खरमोर पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया गया था.
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