नई दिल्ली: भारत में एक ऐसा रेलवे स्टेशन भी जिसे इंडियन रेलवे नहीं बल्कि गांव वाले चलाते हैं. पिछले 15 सालों से ये स्टेशन ग्रामीण ही चला रहा हैं, यहां तक कि यहां का टिकट कलेक्टर भी गांव का ही व्यक्ति है. कभी घाटे के कारण इस रेलवे स्टेशन को बंद किया जा रहा था. 


2005 में जालसू नानक हाल्ट स्टेशन को बंद करने का निर्णय लिया


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दरअसल, एक पॉलिसी के तहत रेलवे को जोधपुर रेल मंडल में ऐसे रेलवे स्टेशन बंद करना था जहां आमदनी कम हो रही हो. ऐसे में रेलवे ने 2005 में जालसू नानक हाल्ट स्टेशन को बंद करने का निर्णय लिया. यह बात यहां के गांव वालों को मंजूर नहीं थी. वे इस निर्णय का विरोध शुरू करते हुए धरने पर बैठ गए. 


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इन ग्रामीणों का ये धरना 11 दिन तक चला. रेलवे ने गांव वालों की बात मानी तो सही लेकिन इसके साथ एक शर्त भी रख दी. रेलवे ने कहा कि इस स्टेशन को बंद नहीं किया जाएगा लेकिन रेलवे इसकी जिम्मेदारी भी नहीं लेगा. ऐसे में इस स्टेशन को अगर यहां के गांव वाले अपनी जिम्मेदारी पर चलाते हैं तो ये स्टेशन बंद नहीं होगा. इसके साथ ही रेलवे ने यह शर्त भी रखी कि यहां से हर रोज 50 टिकट और हर महीने 1500 टिकट बिकने चाहिए. 


ग्रामीणों ने इस स्टेशन को चलाने के लिए गांव के हर घर से चंदा जमा किया


गांव वाले अपने स्टेशन को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. ऐसे में उन्होंने रेलवे की ये शर्त मान ली और इस स्टेशन को अपनी जिम्मेदारी पर चलाने लगे. ग्रामीणों ने इस स्टेशन को चलाने के लिए गांव के हर घर से चंदा जमा किया. इसके बाद डेढ़ लाख रुपयों से 1500 टिकट भी खरीदे गए और बाकी के बचे रुपये को ब्याज के तौर पर इन्वेस्ट कर दिया गया. टिकट बेचने के लिए ग्रामीणों ने 5 हजार रुपये के वेतन पर एक ग्रामीण को टिकट कलेक्टर की नौकरी पर भी रखा. 


हर महीने रेलवे को 30 हजार रुपये से ज्यादा कमाई


शुरुआत में ग्रामीणों को थोड़ी दिक्कतें जरूर आई लेकिन इसके बावजूद गांववालों ने हिम्मत नहीं हारी और इस स्टेशन को चलाना जारी रखा. ये ग्रामीणों की मेहनत का ही नतीजा है कि इस स्टेशन से हर महीने रेलवे को 30 हजार रुपये से ज्यादा कमाई होती है. जो स्टेशन कभी बंद किया जा रहा था, वहां अब 10 से ज्यादा ट्रेन रुकती हैं.


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