इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2005 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला कानून रद्द कर दिया और कहा कि अजीज पाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है.
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास बेहद दिलचस्प है. इस संस्थान का नाम भी पहले अलग था और इसमें गैर मुस्लिम विद्यार्थियों के लिए जगह भी नहीं थी. बाद में जब नाम बदला तो एडमिशन के नियम भी बदल गए और इस संस्थान से तमाम हिंदू साहित्यकार और महान हस्तियां भी पढ़कर निकलीं.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की तर्ज पर बना संस्थान
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1875 में सर सैयद अहमद खान ने की थी. उस वक्त प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने की परमिशन नहीं मिलती थी, इसलिए पहले इसे मदरसे के तौर पर स्थापित किया गया. ये कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर ब्रिटिश राज के समय बनाया गया पहला उच्च शिक्षण संस्थान था. इस यूनिवर्सिटी की स्थापना 1857 के दौर के बाद भारतीय समाज की शिक्षा के क्षेत्र में पहली महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया मानी जाती है.
कैसे MAO बन गया AMU
पहले इस कॉलेज का नाम मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) था, जिसे बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के नाम से दुनिया भर में जाना जाने लगा. 1877 में बने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को विघटित कर 1920 में ब्रिटिश सरकार की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के एक्ट के जरिए AMU एक्ट लाया गया. संसद ने 1951 में AMU संशोधन एक्ट पारित किया, जिसके बाद इस संस्थान के दरवाजे गैर-मुसलमानों के लिए खोले गए.
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कौन थे सर सैयद अहमद खान
वे हिन्दुस्तानी शिक्षक और नेता थे जिन्होंने भारत के मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की. खान अपने समय के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम नेता थे और उन्होंने उर्दू को भारतीय मुसलमानों की सामूहिक भाषा बनाने पर जोर दिया था. सैयद अहमद खान उस दौर के सबसे ज़हीन इंसानों में से एक थे. गणित, चिकित्सा और साहित्य कई विषयों में वो पारंगत थे. कहा जाता है कि जहां भी उनका तबादला होता था, वहां वो स्कूल खोल देते थे. मुरादाबाद में उन्होंने पहले मदरसा खोला, पर जब उन्हें लगा कि अंग्रेजी और विज्ञान पढ़े बिना काम नहीं चलेगा तो उन्होंने मुस्लिम बच्चों को मॉडर्न एजुकेशन देने के लिए स्कूलों की स्थापना की.उनके प्रयासों से अलीगढ़ क्रांति की शुरुआत हुई, जिसमें शामिल मुस्लिम बुद्धिजीवियों और नेताओं ने भारतीय मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग करने का काम किया और पाकिस्तान की नींव डाल दी.
पहला ग्रेजुएट हिंदू छात्र
साल 1920 में एएमयू को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. विश्वविद्यालय से कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं, उर्दू लेखकों और उपमहाद्वीप के विद्वानों ने विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है. एएमयू से ग्रेजुएट करने वाले पहले शख्स भी हिंदू थे, जिनका नाम इश्वरी प्रसाद था.
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इतनी बड़ी है यूनिवर्सिटी
15 विभागों से शुरू हुए AMU में आज 108 विभाग हैं। करीब 1200 एकड़ में फैली यूनिवर्सिटी में 300 से ज्यादा कोर्स हैं। यहां आप नर्सरी में एडमिशन लेकर पूरी पढ़ाई कर सकते हैं. यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड 7 कॉलेज, 2 स्कूल, 2 पॉलिटेक्निक कॉलेज के साथ 80 हॉस्टल हैं। यहां 1400 का टीचिंग स्टाफ है और 6000 के करीब नॉन टीचिंग स्टाफ है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शिक्षा के पारंपरिक और आधुनिक शाखा में 250 से अधिक कोर्स करवाए जाते हैं. विश्वविद्यालय के कई कोर्स में सार्क और राष्ट्रमंडल देशों के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित हैं. औसतन हर साल लगभग 500 फॉरेन स्टूडेंट्स एएमयू में एडमिशन लेते हैं. यूनिवर्सिटी कुल 467.6 हेक्टेयर जमीन में फैली हुई है.
यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी बेहद खास
एएमयू अपनी लाइब्रेरी के लिए भी जाना जाता है. बताया जाता है कि विश्वविद्यालय की मौलाना आजाद लाइब्रेरी में 13.50 लाख पुस्तकों के साथ तमाम दुर्लभ पांडुलिपियां भी मौजूद हैं. इसमें अकबर के दरबारी फैजी की फारसी में अनुवादित गीता, 400 साल पहले फारसी में अनुवादित महाभारत की पांडुलीपि, तमिल भाषा में लिखे भोजपत्र, 1400 साल पुरानी कुरान, सर सैयद की पुस्तकें और पांडुलिपियां भी शामिल है.
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पाकिस्तान के पहले पीएम AMU से पास हुए
इस विश्वविद्यालय से भारत और पाकिस्तान की कई दिग्गज हस्तियों ने पढ़ाई की है. इसमें भारत के पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान भी शामिल हैं.
कोर्ट ने माना अल्पसंख्यक संस्थान नहीं
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 1967 में अजीज पाशा मामले में फैसला देते हुए कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, लेकिन 1981 में केंद्र सरकार ने कानून में जरूरी संशोधन कर इसका अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखने की कोशिश की थी. उसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2005 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला कानून रद्द कर दिया और कहा कि अजीज पाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है.
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