अयोध्या की तरह काशी और मथुरा की मुक्ति के लिए भी अखाड़ा परिषद ने आरएसएस-वीएचपी से समर्थन मांगा है. अखाड़ा परिषद की बैठक में तय किया गया है कि VHP-RSS और हिन्दू संगठनों की मदद से काशी-मथुरा की मुक्ति के लिए आंदोलन खड़ा करेगा.
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मो. गुफरान/प्रयागराज: सोमवार को प्रयागराज में हुई अखाड़ा परिषद की बैठक में संतों ने काशी-मथुरा को मुक्त कराने के लिए रणनीति तैयार की है. अखाड़ा परिषद ने काशी-मथुरा में विवादित स्थल को स्वेच्छा से हिंदुओं को सौंपने की अपील की है. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने कहा है कि सभी पक्षों से बात कर सहमति बनाने का प्रयास किया जाएगा और सहमति न बनने पर संवैधानिक तरीके से कोर्ट के माध्यम से कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी.
अयोध्या की तरह काशी और मथुरा की मुक्ति के लिए भी अखाड़ा परिषद ने आरएसएस-वीएचपी से समर्थन मांगा है. अखाड़ा परिषद की बैठक में तय किया गया है कि VHP-RSS और हिन्दू संगठनों की मदद से काशी-मथुरा की मुक्ति के लिए आंदोलन खड़ा करेगा. साथ ही अखाड़ा परिषद हरिद्वार में दिगंबर-निर्वाणी और निर्मोही अणि की जमीन पर निर्मित हनुमान मंदिर को तोड़ने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगा.
जनवरी में होने वाले माघ मेले पर न लगाई जाए रोक
प्रयागराज में श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी में कोरोना गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए हुई अखाड़ा परिषद की बैठक में कुल 8 प्रस्ताव पास हुए. इस बैठक में अध्यक्ष नरेंद्र गिरी और सचिव हरि गिरि के अलावा सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि मौजूद रहे. यहां सरकार से प्रयागराज में जनवरी में होने वाले माघ मेले पर रोक न लगाने की मांग की गई. संतों ने एक सुर में कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की गाइड लाइन के अनुसार माघ मेले का आयोजन हो. संस्थाओं पर रोक लगाकर संत-महात्माओं और कल्पवासियों को मेले में स्थान दिया जाए. स्नान पर्व पर कल्पवासी और संत, महात्माओं के अलावा लोगों से माघ मेले के बाहर गंगा स्नान की अपील. अखाड़ों ने विश्वास दिलाया कि प्रयागराज परिक्रमा की परंपरा में इस बार कम संख्या में साधु-संत शामिल होंगे.
योगी सरकार का धन्यवाद, उद्धव सरकार पर निशाना
लव जेहाद के बढ़ते मामलों में योगी सरकार की करवाई के लिए अखाड़ा परिषद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का धन्यवाद किया है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले हिंदुओं को डरने की जरूरत नहीं है. नरेंद्र गिरी ने विश्वास जताया कि योगी सरकार सक्षम है ऐसे में किसी हिन्दू को डरने की जरूरत नहीं है. वहीं महाराष्ट्र की उद्धव सरकार पर निशाना साधते हुए नरेंद्र गिरी ने कहा कि महाराष्ट्र में साधु असुरक्षित हैं, वहां उनकी हत्याएं हो रही हैं. अखाड़ा परिषद की बैठक में एक बार फिर पालघर में हुई संतों की हत्या मामले में सीबीआई जांच की मांग उठी है.
1991 के कानून के मुताबिक काशी-मथुरा की मस्जिदों को मिली है सुरक्षा
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद का मामला तो कोर्ट भी पहुंच चुका है. मस्जिद वाराणसी के मशहूर विश्वनाथ मंदिर के करीब है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर एक मुकदमे में दावा किया गया कि 1664 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने एक मंदिर को तोड़ कर यहां मस्जिद का निर्माण कराया. दावा यह भी किया गया कि मंदिर का निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने कराया था. काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट भी इस विवाद को उच्च न्यायालय ले गया लेकिन धार्मिक स्थल सुरक्षा कानून 1991 के चलते इस पर कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी.
मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह का विवाद भी औरंगजेब के दौर का ही है. आरोप है कि औरंगजेब ने 1669 में एक मंदिर को तुड़वाकर यहां ईदगाह और मसजिद का निर्माण कराया. यह विवाद अंग्रेजों के जमाने में भी अदालत तक पहुंचा था. कुछ दस्तावेजों में जिक्र किया गया है कि 1935 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि जमीन पर मालिकाना हक वाराणसी के राजा का है. हालांकि बाद में 1944 में उद्योगपति युगल किशोर बिड़ला ने यह जमीन खरीद ली. 1951 में बिड़ला ने श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट बनाया और जमीन ट्रस्ट को सौंप दी. 1968 में यह विवाद एक तरह से खत्म हो गया क्योंकि ट्रस्ट और ईदगाह कमेटी ने एक समझौता किया कि करीब साढ़े 13 एकड़ जमीन जिस पर ईदगाह और मस्जिद बनी है उस पर ईदगाह कमेटी का प्रबंधन का हक बना रहेगा. इससे लगी जमीन पर जहां कभी बदहाल अवस्था में केशवनाथ मंदिर था वहां अब श्रीकृष्ण जन्म भूमि मंदिर है.
गौरतलब है कि काशी और मथुरा की मस्जिदों को फिलहाल 1991 के कानून के मुताबिक सुरक्षा मिली हुई है, क्योंकि 15 अगस्त 1947 को इन दोनों जगहों पर मस्जिदें मौजूद थीं. जब तक 1991 के कानून में बदलाव नहीं होता तब तक इन दोनों मस्जिदों और बाकी सभी धर्मस्थलों पर 15 अगस्त 1947 की स्थिति को बरकरार रखना सरकार की जिम्मेदारी है. श्रीराम जन्मभूमि पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका जिक्र किया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है. अयोध्या में स्थिति 1949 में बदल चुकी थी, 22 दिसंबर की रात यहां बाबरी मस्जिद के भीतर मूर्तियां रख दी गयी थीं और यह हिंदुओं के कब्जे में ही था, क्योंकि वहां लगातार पूजा होती रही थी. शायद यही मुद्दा हिंदुओं के पक्ष में फैसला आने का प्रमुख कारण बना.
क्या है 'द प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट 1991'
धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद पर केंद्र सरकार ने 1991 में एक कानून बनाकर तय कर दिया था कि 15 अगस्त 1947 यानी आजादी के दिन धार्मिक स्थलों की जो स्थिति थी उसे बरकरार रखा जाएगा. यह कानून मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा और अन्य सभी धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बरकरार रखने की गारंटी देता है. 'द प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट 1991' के इस कानून से राम जन्मभूमि और बाबरी मसजिद के विवादित स्थल को अलग रखा गया था. इस कानून का एक मकसद एक तरह से मुसलमानों और दूसरे धर्म के लोगों को यह आश्वस्त करना था कि राम जन्मभूमि के अलावा सभी धर्म स्थलों को उसी रूप में सुरक्षित रखा जाएगा जिस रूप में वे 15 अगस्त 1947 को थे. यह कानून उस समय बना था जब केंद्र में कांग्रेस और धर्म निरपेक्ष पार्टियों का दबदबा था. लेकिन अब देश का राजनीतिक माहौल बदल चुका है.
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