किसानों को फायदा, क्वालिटी का वायदाः लंगड़ा आम, बनारसी पान, राम नगरी बैगन जल्द होंगे GI टैग प्रूफ
पहले भी वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्रों में बनने या पैदा होने वाले कई उत्पादों को जीआई टैग मिला है. इनमें गुलाबी मीनाकारी साड़ी (जिसे बनारसी साड़ी के नाम से भी जानते हैं), भदोही का कारपेट और दरी, मेटल क्राफ्ट, साफ्ट स्टोन, ग्लास बीड्स, चुनार का बलुआ पत्थर सहित दस उत्पादों शामिल हैं.
वाराणसी: विश्व प्रसिद्ध बनारसी लंगड़ा आम और बनारसी पान को जल्द ही जीआई टैग (Geographical Indication Tag) मिल जाएगा. इसके अलावा राम नगरी बैगन को जीआई टैग प्रदान करने की योजना है. मंडलायुक्त ने उद्यान विभाग से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है. पहले भी वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्रों में बनने या पैदा होने वाले कई उत्पादों को जीआई टैग मिला है. इनमें गुलाबी मीनाकारी साड़ी (जिसे बनारसी साड़ी के नाम से भी जानते हैं), भदोही का कारपेट और दरी, मेटल क्राफ्ट, साफ्ट स्टोन, ग्लास बीड्स, चुनार का बलुआ पत्थर सहित दस उत्पादों शामिल हैं.
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आम की इन प्रजातियों को मिल चुकी है जीआई टैगिंग
अब इस क्लब में बनारसी लंगड़ा आम, बनारसी पान और राम नगरी बैगन को भी शामिल करवाने की पहल योगी सरकार ने शुरू कर दी है. उम्मीद है कि जल्द ही इन उत्पादों को भी जीई टैग मिल जाएगा. अगर आम की प्रजातियों की बात करें तो वर्तमान में लखनऊ के मलिहाबादी, माल एवं काकोरी के दशहरी के अलावा 9 प्रजातियों को जीआई टैगिंग प्राप्त है. इनमें रत्नागिरी का अल्फांसो, गिर (गुजरात) का केसर, मराठवाड़ा का केसर, आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली, भागलपुर का जरदालु, कर्नाटक के शिमोगा का अप्पीमिडी, मालदा (बंगाल) का हिमसागर, लक्ष्मण भोग और फजली शामिल हैं. अब योगी सरकार की कोशिश है कि बनारसी लंगड़ा के अलावा गौरजीत और चौसा आम को भी जीआई टैग मिले.
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जानिए क्या होता है जीआई टैग और जीआई रजिस्ट्रेशन
जीआई टैग यानी जिओग्राफिकल इंजेक्शन का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट मूल स्थान होता है. इन उत्पादों की पहचान एक क्षेत्र विशेष से उत्पादित होने के कारण होती है. जीआई टैग उत्पाद की गुणवत्ता और उसके उत्पादन के मूल स्थान के बारे में आश्वासन देता है. 'जिओग्राफिकल इंडिकेशंस टैग' या भौगोलिक संकेतक का मतलब ये है कि कोई भी व्यक्ति, संस्था या सरकार अधिकृत उपयोगकर्ता के अलावा इस उत्पाद के नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकती. भारत में, भौगोलिक संकेतकक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 सितंबर 2003 से प्रभावी हुआ. अधिनियम में जीआई को 'भौगोलिक संकेतक' के रूप में परिभाषित किया गया है.
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बागवानों और किसानों के लिए फायदेमंद है जीआई टैगिंग
किसी वस्तु, फल या उत्पादन को जीआई सर्टिफिकेशन मिलने के बाद किसानों को मार्केटिंग के दौरान कम प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है. एक बार किसी फल को जीआई रजिस्ट्रेशन मिल जाए, उसके बाद उसका नाम ही काफी हो जाता है. जीआई को एक तरह से क्वालिटी का मानक भी माना जा सकता है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में अभी जीआई प्रोडक्ट के लिए पर्याप्त जागरूकता नहीं है. इसलिए इस दिशा में जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, ताकि किसानों को लाभ मिल सके.
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