सर्वदलीय बैठक में मायावती के न जाने का तर्क झूठ का पुलिंदा : मनीष शुक्ला
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सर्वदलीय बैठक में मायावती के न जाने का तर्क झूठ का पुलिंदा : मनीष शुक्ला

प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि एक ओर मायावती लोकतंत्र की दुहाई दे रही हैं, दूसरी तरफ सर्वदलीय बैठक जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में भाग नहीं ले रही हैं.

मायावती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए सर्वदलीय बैठक के बारे में कहा था, ‘‘ये राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास और छलावा मात्र है. ईवीएम पर बैठक होती तो मैं जरूर शामिल होती.’’

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने बसपा सुप्रीमो मायावती के 'एक देश एक चुनाव' पर दिये गए बयान पर तंज कसते हुए गुरुवार को कहा कि जिनकी पार्टी के अन्दर ही लोकतंत्र नहीं है, वह लोकतंत्र बचाने की दुहाई दे रही हैं. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने कहा, ‘‘सर्वदलीय बैठक में मायावती के न जाने का तर्क झूठ का पुलिंदा है.' शुक्ला ने मायावती को याद दिलाते हुए कहा कि एक राजनैतिक दल के द्वारा ईवीएम हैक करने के आरोप पर जब चुनाव आयोग ने सभी दलों के प्रतिनिधियों को बुलाया था तो आप या बसपा का कोई प्रतिनिधि उस बैठक में नहीं गया था इसलिए ये कहना कि यदि ईवीएम पर बैठक होती तो मायावती जातीं, यही वास्तविक ढकोसला है.

प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि एक ओर मायावती लोकतंत्र की दुहाई दे रही हैं, दूसरी तरफ सर्वदलीय बैठक जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में भाग नहीं ले रही हैं. मायावती के पास ‘एक देश एक चुनाव’ से असहमति के ठोस तर्क थे तो उसे फोरम पर उनको ऑन रिकार्ड रखना चाहिए था.

शुक्ला ने मायावती के इस बयान कि जनता का विश्वास काफी चिन्ताजनक स्तर तक घट गया है, पर सवाल उठाते हुए पूछा कि 17वीं लोकसभा में सर्वाधिक मतदान हुआ है. 'क्या ज्यादा मतदान होना घटते विश्वास का प्रतीक है?' उन्होंने कहा कि दरअसल बसपा समेत अन्य विपक्षी दल अपनी हार के वास्तविक कारण का विश्लेषण नहीं कर रहे हैं बल्कि सरकार द्वारा जनहित एवं देशहित के कदम उठाने पर सवाल खड़ा कर अपनी हार की भड़ास निकाल रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि मायावती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए सर्वदलीय बैठक के बारे में कहा था, ‘‘ये राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास और छलावा मात्र है. ईवीएम पर बैठक होती तो मैं जरूर शामिल होती.’’ मायावती ने ट्वीट किया, 'किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव कभी कोई समस्या नहीं हो सकती है और न ही चुनाव को कभी धन के व्यय-अपव्यय से तौलना उचित है.' उन्होंने कहा कि देश में 'एक देश, एक चुनाव' की बात वास्तव में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती हिंसा जैसी ज्वलंत राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास व छलावा मात्र है.

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