साहित्य सम्मान समारोह में बोले CM योगी, ''कुछ लोग साहित्य जगत में घुसकर करते हैं खेमेबाजी''
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साहित्य सम्मान समारोह में बोले CM योगी, ''कुछ लोग साहित्य जगत में घुसकर करते हैं खेमेबाजी''

CM योगी ने साहित्यकारों को सम्मानित करते हुए कहा कि आप जैसे साहित्यकारों के लिए चुनौती बहुत है, क्योंकि बीच में कुछ लोग घुसकर साहित्य की खेमेबाजी का प्रयास करते हैं.

''साहित्य समाज की दिशा तय करता और आज साहित्यकारों के लिये चुनौतीपूर्ण समय है''.

लखनऊ: सोमवार को राजधानी लखनऊ (Lucknow) में हिंदी संस्थान के सम्मान समारोह और पुरस्कार वितरण समारोह में सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) पहुंचे. यहां सीएम योगी ने साहित्यकारों को सम्मानित करते हुए कहा कि आप जैसे साहित्यकारों के लिए चुनौती बहुत है, क्योंकि बीच में कुछ लोग घुसकर साहित्य की खेमेबाजी का प्रयास करते हैं. ऐसे लोग भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश करते हैं. ऐसे में आप साहित्यकारों पर समाज को इससे बचाने की जिम्मेदारी होती है.

साहित्य सम्मान कार्यक्रम में यूपी विधानसभा अध्य्क्ष हृदय नारायण दीक्षित भी मौजूद रहे. कार्यक्रम में डॉ उषा किरण खान को भारत भारती सम्मान, डॉ मनमोहन सहगल को लोहिया साहित्य सम्मान, डॉ भगवान सिंह को महात्मा गांधी साहित्य सम्मान से भी नवाजा गया.

कार्यक्रम के दौरान साहित्य क्षेत्र से जुड़े 138 लोगों को सम्मान करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आज मेधावियों को सम्मानित कर हम अपनी भावी पीढ़ी को भी इस दिशा में जाने के लिये प्रेरित कर रहे हैं. हिंदी भारत की एकता का आधार बने ये लगातार कोशिश होनी चाहिए और यही वजह है कि आज यहां मॉरीशस और श्रीलंका से आये हिंदी के क्षेत्र में काम करने वालों का भी सम्मान हुआ है.

सीएम योगी ने कहा कि जब रात में लोग सोते हैं, तब साहित्यकारों की लेखनी का काम शुरू होता है और हम सभी साहित्य साधना में जीवन समर्पित कर राष्ट्र माता की सेवा कर सकते है. साहित्यकारों की साहित्य साधना अमूल्य होती है. आप इस पुरस्कार के मोहताज नहीं हैं, लेकिन दूसरों के लिए प्रेरणा का काम ये सम्मान करता है. साहित्य समाज की दिशा तय करता और आज साहित्यकारों के लिये चुनौतीपूर्ण समय है. अटल जी ने अंतराष्ट्रीय मंच पर हिंदी को नई ऊंचाइयां दी और आज पीएम मोदी अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का खुलकर इस्तेमाल करते हैं.

सीएम योगी ने कहा कि साहित्य ही समाज का दर्पण है और ये इतना ही साफ हो की समाज का मार्गदर्शक बन नई दिशा दे, लोक कल्याण का भाव निहित हो. ऐसी लेखनी होनी चाहिए जब अपनी लेखनी को खेमे, क्षेत्रीयता, जातीय बंधन में बांटने का प्रयास करेंगे तो साहित्यिक साधना भंग होगी और समाज और राष्ट्र की अपूरणीय क्षति होगी.

 

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