श्रीप्रकाश की उम्र कम थी, ऐसे में जरायम की दुनिया में अपना नाम करने के लिए श्रीप्रकाश जानता था कि अपनी दहशत कायम करनी है तो बड़े से बड़े माफिया को मारने में वक्त नहीं लेना है. उस जमाने में श्रीप्रकाश के पास महंगे सेलफोन होते थे और हर रोज का हजारों रुपये खर्च करता था.
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यूपी में 90 के दौर की शुरुआत ही एक ऐसी घटना से हुई थी, जिसने सियासत की तस्वीर बदल दी थी. एक ओर बाबरी कांड के बाद अयोध्या में दंगा फसाद चल रहा था. बीजेपी के कल्याण सिंह कट्टर हिंदू वादी नेता के तौर पर अपनी छवि बना चुके थे. इसी बीच अयोध्या से 6 घंटे की दूरी पर मौजूद गोरखपुर में गांव के साधारण शिक्षक के बेटे ने अपनी बहन से छेड़छाड़ करने वाले शोहदे को पल भर में ढेर कर दिया. यहीं से पैदा हुआ 90 के दशक का वो सिरफिरा हत्यारा, जो कल्याण सिंह के नाम की सुपारी लेने के बाद मारा गया.
20 साल की उम्र में पहली हत्या
हम जिस कुख्यात शार्प शूटर की कहानी सुना रहे हैं, उसका कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं था. गोरखपुर के मामखोर गांव में पिता शिक्षक थे. लड़का देखने में अच्छा तगड़ा था, तो उसे पहलवानी की ट्रेनिंग दी गई. सब कुछ ठीक ठाक था, इसी बीच साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला की बहन को राकेश तिवारी नाम के लड़के ने सरेबाजार छेड़ दिया. उसी दिन श्रीप्रकाश के अंदर का अपराधी जागा और 20 साल के श्रीप्रकाश ने तत्काल राकेश तिवारी को मार डाला. सजा से बचने के लिए श्रीप्रकाश बैंकॉक भाग गया, लेकिन जब वापस लौटा तो पूरा बदमाश बन चुका था. बिहार में मोकामा के सूरजभान ने श्रीप्रकाश का खूब इस्तेमाल किया. 20 से 25 साल का होते-होते श्रीप्रकाश अंदाजन 20 हत्याएं कर चुका था. वो यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल तक गैरकानूनी धंधे करने लगा. पैसे के पीछे बेतहाशा भागते हुए श्रीप्रकाश ने फिरौती के लिए किडनैपिंग, ड्रग्स, लॉटरी और सुपारी किलिंग के जरिये खूब पैसा कमाया.
रंगबाजी और अय्याशी का शौक
अपराधी और दबंग होने के साथ-साथ श्रीप्रकाश आला दर्जे का अय्याश था. आखिरकार अय्याशी की इसी आदत ने उसे मरवाया भी. पैसा उसकी कमजोरी थी. महंगी गाड़ियां, महंगे होटल, महंगी कॉलगर्ल्स और ढेर सोने-चांदी के गहने, श्रीप्रकाश बिल्कुल फिल्मी डॉन वाला अंदाज रखता था. उस जमाने में उसके पास महंगे सेलफोन होते थे और हर रोज का हजारों का खर्च. श्रीप्रकाश की उम्र कम थी, ऐसे में जरायम की दुनिया में अपना नाम करने के लिए श्रीप्रकाश जानता था कि अपनी दहशत कायम करनी है तो बड़े से बड़े माफिया को मारने में वक्त नहीं लेना है.
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विधायक को सरे राह मार दिया
उत्तर प्रदेश में अपराध की दुनिया में वीरेंद्र शाही का नाम सिक्का चलता था. 1997 में श्रीप्रकाश ने शाही को राजधानी लखनऊ में गोलियों से भून दिया. इस हत्याकांड ने उसे यूपी के माफियाओं में मशहूर कर दिया और श्रीप्रकाश की ख्वाहिशें बढ़ा दीं. उसने जल्दी ही अपनी हिटलिस्ट में तत्कालीन मंत्री हरिशंकर तिवारी को रखा. हरिशंकर तिवारी उस वक्त चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक थे. 15 साल से हरिशंकर तिवारी की सीट पर श्रीप्रकाश की नजर थी. STF की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रभा द्विवेदी, अमरमणि त्रिपाठी, रमापति शास्त्री, मार्कंडेय चंद, जयनारायण तिवारी, सुंदर सिंह बघेल, शिवप्रताप शुक्ला, जितेंद्र कुमार जायसवाल, आरके चौधरी, मदन सिंह, अखिलेश सिंह और अष्टभुजा शुक्ला जैसे नेताओं से उसके रिश्ते थे.
बिहार के बाहुबली मंत्री का मर्डर कर जमाया सिक्का
श्रीप्रकाश शुक्ला को खौफ की दुनिया में असली शोहरत बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद के हत्याकांड से मिली. श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था. श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ लाल बत्ती कार में आया और एके-47 राइफल से हत्याकांड को अंजाम देकर फरार हो गया. बताते हैं ये कत्ल श्रीप्रकाश शुक्ला ने रेलवे के ठेके पर अपनी बादशाहत साबित करने के लिए किया था. लोकल गुंडों को 25 साल का ये सुपारी किलर सरे बाजार ही मार दिया करता था.
मुख्यमंत्री को मारने की ली थी सुपारी
श्रीप्रकाश की हरकते पुलिस और सरकार के लिए सरदर्द बन रही थी. ऐसे में उसके खात्मे का मन बनाकर एक स्पेशल टास्क फोर्स तैयार की गई. 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 पुलिस वालों को इकट्ठा किया और इस फोर्स का पहला टास्क था- श्रीप्रकाश शुक्ला जिंदा या मुर्दा. यूपी पुलिस जान चुकी है श्रीप्रकाश शुक्ला बेखौफ अपराधी है, लेकिन उनके होश तब उड़ गए जब उसने सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी 6 करोड़ में ले ली. गोरखपुर का नौसिखिये शार्प शूटर का ये सुसाइल स्टेप था. अब STF उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गई.
अय्याशी के शौक ने सुपारी किलर को मरवाया
श्रीप्रकाश शुक्ला की एक गर्लफ्रेंड भी थी, जो दिल्ली में रहती थी. श्रीप्रकाश शुक्ला उससे रोजाना बात करता था. STF को इस बात की भनक लगी तो गर्लफ्रेंड का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया. श्रीप्रकाश अब उससे बात करने के लिए पीसीओ से कॉल करता था. सितंबर 1998 को एसटीएफ को पता चला कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद गर्लफ्रेंड से मिलने आ रहा है. दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाईवे पर पुलिस फोर्स लगा दी गई. श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, STF टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी शक नहीं हुआ कि STF उसके पीछे है. तेज रफ्तार कारों के शौकीन श्रीप्रकाश की गाड़ी जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, STF की टीम ने उसे ओवरटेक कर रास्ता रोक लिया. श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा, लेकिन वो नहीं माना. उल्टा पुलिस पर ही फायरिंग शुरू कर दी. 23 सितंबर 1998 को दोपहर करीब सवा दो बजे तक यूपी के कुख्यात सुपारी किलर का काम पुलिस ने तमाम कर दिया. श्रीप्रकाश राजनीति में आना चाहता था, लेकिन उसकी सनक ने 25 साल की उम्र में उसकी कहानी और आतंकी दोनों का खात्मा कर दिया. हालांकि यूपी में जब भी अपराध की बात होती है, इस सिरफिरे रंगबाज की चर्चा जरूर होती है.
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