मौलाना ने अपनी जिंदगी भले ही लखनऊ में बिताई हो, लेकिन वह दुनिया भर में अपनी उदारवादी छवि के लिए पहचाने जाते थे.
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नई दिल्ली: भारत सरकार ने सोमवार को पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी. पद्म पुरस्कारों की जो लिस्ट जारी हुई, उसमें जाने-माने शिया धर्मगुरु रहे मौलाना कल्बे सादिक का नाम भी शामिल है. मौलाना कल्बे सादिक को मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया जाएगा. गौरतलब है कि उन्होंने नवंबर साल 2020 में ही दुनिया का साथ छोड़ा दिया. हालांकि, इस दुनिया को छोड़ने से पहले वह अपने पीछे एक विरासत छोड़ गए हैं.
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अपनी उदारवादी छवि के लिए जाने जाते थे मौलाना कल्बे सादिक
मौलाना ने अपनी जिंदगी भले ही लखनऊ में बिताई हो, लेकिन वह दुनिया भर में अपनी उदारवादी छवि के लिए पहचाने जाते थे. मुस्लिम समाज से रूढ़िवादी परंपराओं को खत्म करने के लिए वे आजीवन लड़ाई लड़ते रहे हैं. उन्होंने न सिर्फ रूढ़िवादियों को विरोध किया, बल्कि शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए.
छिपकर पढ़ा करते थे हिंदी
मौलाना कल्बे सादिक ने अपनी शुरुआती शिक्षा मदरसे में हासिल की. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनकी शुरुआत में उन्हें अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी. लेकिन लखनऊ के लालबाग में एक पंडित जी के पास वह हिंदी पढ़ने जाया करते थे. इसके लिए उन्होंने कई बार टोका भी जाता था. हालांकि, वह बुर्जुगों से छिपकर हिंदी पढ़ा करते थे. मौलाना ने लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से उच्च शिक्षा हासिल की. वे पीएचडी धारक लोगों में से थे.
कई बार झेलना पड़ा समाज का विरोध
मौलाना कल्बे सादिक के सुधारों का विरोध भी होता रहा. मीडियो रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह चांद देख कर ईद का ऐलान नहीं करते थे. बल्कि वह रमजान की शुरुआत में ही ईद और बकरीद की तारीखों की घोषणा कर देते थे. उनके इन कदमों को काफी विरोध भी होता रहा.
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