बिहू असम की संस्कृति का प्रतीक है और अब ये राज्य की सीमाओं से निकलकर पूरे देश में मनाया जाने लगा है. जहां भी असमी लोग रहते हैं, वहां वो यह त्योहार जरूर मनाते हैं.
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नई दिल्ली: आज असम में बिहू की धूम है, जिस तरह से उत्तर भारत में मकर संक्रांति का महत्व है ठीक उसी तरह से बिहू नॉर्थ ईस्ट की परंपरा का हिस्सा है. हालांकि बिहू का पर्व साल में तीन बार अलग-अलग नामों से मनाया जाता है.
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इन अलग नामों से मनाया जाता है त्योहार
जनवरी में मनाया जाने वाला बिहू भोगाली बिहू या माघ बिहू कहलाता है. अप्रैल में भी बिहू का त्योहार होता है जिसे रोंगाली बिहू कहते हैं और अक्टूबर यानी की कार्तिक मास में मनाया जाने वाला बिहू काटी बिहू कहा जाता है.
संस्कृत से जन्मा है शब्द
बिहू असम का महापर्व है. मान्यता है कि इस पर्व के दौरान देवताओं की विशेष कृपा लोगों को मिलती है. बिहू संस्कृत के शब्द बिशु से निकला है जिसका अर्थ होता है भगवान से आशीर्वाद और समृद्धि मिलना.
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अलाव जला कर करते हैं बिहू की शुरुआत
माघ बिहू पूरे एक हफ्ते तक मनाया जाता है. इस दौरान हर घर में पारंपरिक पकवान बनते हैं, पारंपरिक वेशभूषा में लोग सजते हैं और इसी दौरान विश्व प्रसिद्ध बिहू डांस पूरे असम में देखने को मिलता है. बिहू की शुरुआत अलाव जलाने के साथ होती है जिसे मेजी या भेलघर कहा जाता है. मेजी जलाने के बाद पारंपरिक खेल खेले जाते हैं और पीठा खिलाकर लोग एक-दूसरे का मुंह मीठा करते हैं.
पूरे देश में होती है बिहू की धूम
बिहू असम की संस्कृति का प्रतीक है और अब ये राज्य की सीमाओं से निकलकर पूरे देश में मनाया जाने लगा है. जहां भी असमी लोग रहते हैं, वहां वो यह त्योहार जरूर मनाते हैं.
(सुचित्रा वर्मा)
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