किसी व्यक्ति के मरने के 6 से 8 घंटे के अंदर सही तरीके से पोस्टमॉर्टम किया जा सकता है. इसके बाद यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि ज्यादा समय निकलने पर बॉडी में कई तरीके के नेचुरल चेंज आने लगते हैं.
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नई दिल्ली: पोस्टमॉर्टम एक तरह का ऑपरेशन है, जिसमें डेड बॉडी को एग्जामिन कर मौत की सही वजह का पता लगाया जाता है. फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट की एक पोस्टमॉर्टम करती है, जिसे केमिकल साइंस की ज्यादा जानकारी होती है. आपको पता होगी कि किसी भी मृत व्यक्ति का पोस्टमॉर्टम करने से पहले उसके परिजनों की मंजूरी लेना जरूरी होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कितना भी जरूरी क्यों न हो, डॉक्टर्स रात में पोस्टमॉर्टम करने की सलाह नहीं देते? इसके पीछे बड़ी वजह है.
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6-8 घंटे के अंगर हो जाना चाहिए पोस्टमॉर्टम
किसी व्यक्ति के मरने के 6 से 8 घंटे के अंदर सही तरीके से पोस्टमॉर्टम किया जा सकता है. इसके बाद यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि ज्यादा समय निकलने पर बॉडी में कई तरीके के नेचुरल चेंज आने लगते हैं, जिससे जांच बांधित हो सकती है और रिपोर्ट में भी चेंज आ सकते हैं. ऐसे में सलाह दी जाती है कि जल्द से जल्द पोस्टमार्टम करा लिया जाए. हालांकि देर होने के बावजूद भी रात में पोस्टमॉर्टम न करने का सबसे बड़ा कारण होता है आर्टीफिशियल लाइट का प्रभाव.
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रात के समय आती हैं ये बाधाएं
दरअसल, रात के समय LED या ट्यूबलाइट की रोशनी में शव के बॉडी के घाव लाल की जगह बैंगनी दिखने लगते हैं. लेकिन फॉरेंसिक साइंस बैंगनी चोट का कभी उल्लेख नहीं किया गया है. जब इसकी जांच प्राकृतिक रोशनी में होती है तो चोट का रंग ट्यूबलाइट में पाए गए रंग से अलग दिखता है. इससे पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में घाव लगने की वजह ही बदल सकती है और इन्वेस्टिगेशन में ये बड़ी परेशानी बन सकती है. इसका एक और कारण यह भी है कि कई धर्मों में रात के समय अंत्येष्टि नहीं की जाती.
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