UP Lok Sabha Chunav 2024: मिश्रिख सीट पर क्या जीत की हैट्रिक लगाएगी बीजेपी, क्या सिटिंग एमपी पर भाजपा फिर जताएगी भरोसा
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UP Lok Sabha Chunav 2024: मिश्रिख सीट पर क्या जीत की हैट्रिक लगाएगी बीजेपी, क्या सिटिंग एमपी पर भाजपा फिर जताएगी भरोसा

Misrikh Lok Sabha Chunav 2024:  1962 में आस्तित्व में आई मिश्रिख लोकसभा सीट अब तक यह अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व देखने को मिला है. बीजेपी को यहां से अब तक दो बार ही जीत मिल सकती है. 

UP Lok Sabha Chunav 2024: मिश्रिख सीट पर क्या जीत की हैट्रिक लगाएगी बीजेपी,  क्या सिटिंग एमपी पर भाजपा फिर जताएगी भरोसा

Misrikh Lok Sabha Chunav 2024: हरदोई जिले की दूसरी लोकसभा सीट मिश्रिख के नाम से जानी जाती है. इसे सीतापुर, हरदोई और कानपुर की विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाया गया है. महर्षि दधिचि की धरती कही जाने वाली यह सीट 1962 में आस्तित्व में आई. वजूद में आने के बाद से अब तक यह अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व देखने को मिला है. बीजेपी को यहां से अब तक दो बार ही जीत मिल सकती है. 

2024 लोकसभा चुनाव में कौन प्रत्याशी ( Hardoi Sabha Chunav 2024 Candidate)
बीजेपी - अशोक रावत 
सपा-कांग्रेस गठबंधन - रामपाल राजवंशी 
बसपा - घोषित नहीं

 

इन विधानसभा सीटों को मिलाकर बनी मिश्रिख लोकसभा सीट
मिश्रिख लोकसभा सीट मे हरदोई जिले बालामऊ, मल्लावां व संडीला विधानसभा सीट शामिल है, इसके अलावा सीतापुर की मिश्रिख विधानसभा, कानपुर की बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र भी मिश्रिख लोकसभा सीट का हिस्सा है. 

जनसंघ ने किया श्रीगणेश
मिश्रिख लोकसभा सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुए. यहां से जनसंघ प्रत्याशी गोकरण प्रसाद को जनता ने बहुमत देकर संसद पहुंचा. हालांकि इसके बाद 1967 में बाजी पलट गई. 1967  के आम चुनाव में संकटा प्रसाद ने कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से दूसरे एमपी बने. 1971 में एक बार फिर उन्होंने जीत दर्ज की. आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में भारतीय लोकदल से रामलाल राही जीते लेकिन उन्होंने बाद में कांग्रेस का हाथ थाम लिया.  

1980 में रामलाल राही कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे और परचम लहराया.  1984 में राही का टिकट काटकर फिर संकटा प्रसाद कांग्रेस से चुनाव लड़े और वह सांसद बनने में भी सफल रहे. इसके बाद 1989 और 1991 में कांग्रेस के टिकट पर फिर रामलाल राही चुनाव जीतने में कामयाब हुए. उनको नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री भी बनाया गया. लेकिन इसके बाद कांग्रेस के लिए सीट पर बुरे दिन शुरू हो गए. 

1996 में पहली बार खिला कमल
मिश्रिख सीट पर पहली बार 1996 में कमल खिला. यहां से बीजेपी ने परागीलाल चौधरी को उम्मीदवार बनाया जो एमपी बनने में सफल रहे. 1998 में यह सीट बसपा के खाते में चली गई, यहां से रमाशंकर भार्गव ने परचम लहराया जबकि 1999 में समाजवादी पार्ट की टिकट पर सुशीला सरोज सांसद बनने में कामयाब रहीं. इसके बाद 2004 और 2009 में यहां से बसपा से अशोक रावत चुनाव सांसद रहे. 2014 में अंजूबाला ने अशोक रावत को शिकस्त दी थी. 

2019 में बीजेपी ने अशोक रावत को बनाया उम्मीदवार
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सिटिंग एमपी अंजूबाला का टिकट काटकर यहां से अशोक रावत को टिकट दिया था. जनता के आशीर्वाद से वह संसद पहुंचे. अब देखना होगा कि 2024 में बीजेपी अशोक रावत को चुनावी मैदान में उतारती है या कोई नया चेहरा मैदान में दिखाई देता है. फिलहाल टिकट की जुगत में नेताओं ने समीकरण बिठाना शुरू कर दिए हैं. 

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मिश्रिख सीट के जातीय समीकरण 
मिश्रिख सीट में हार जीत में अगड़ी और पिछड़ी दोनों जातियों की अहम भूमिका रहती है. ग्रामीण वोटर प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला करते हैं. राजनीतिक दल ज्यादातर पासी उम्मीदवारों पर दांव लगाते हैं. क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य मतदाताओं के साथ ही पिछड़ी जातियों में से कुर्मी, गड़रिया, काछी, कहार व यादव को छोड़ कर अन्य पिछड़ी जातियों का गठजोड़ जीत हार तय करता है. कोरी वोटर भी अहम भूमिका निभाते हैं. 

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