Lok Sabha Election 2024: यूपी में कांग्रेस का गढ़ रही अमेठी और रायबरेली सीट की काफी चर्चाओं में है. खासकर अमेठी जहां पिछली बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने गढ़ में ही चुनाव हारे थे. इस सीट के पुराने इतिहास पर एक नजर डालें तो ये सीट गांधी-नेहरु परिवार के लिए खास रही है.
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Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से जारी प्रत्याशियों की नौ सूची में अब तक रायबरेली और अमेठी से उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया गया है. गांधी परिवार की इन दोनों परंपरागत सीटों पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. सबके मन में एक ही सवाल है कि राहुल और प्रियंका इन सीटों से लड़ेंगे या नहीं. सपा से हाथ मिलाकर कांग्रेस उसके हिस्से आई 17 सीटों में से 13 पर प्रत्याशी घोषित कर चुकी है. लेकिन शेष बची 4 सीटों में अमेठी और रायबरेली की उम्मीदवारी ही सबसे महत्वपूर्ण है.
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कांग्रेस प्रत्याशी सीधे नामांकन करेंगे!
राजनीतिक हलकों में खबर है कि इन अमेठी और रायबरेली सीट के लिए खास रणनीति बनाई गई है. इसी वजह से कांग्रेस इन दोनों जगहों पर उम्मीदवार घोषित नहीं कर रही. इन दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी सीधे नामांकन करेंगे. पार्टी नहीं चाहती उसके दोनों स्टार प्रचारक इन सीटों पर चुनाव प्रचार में ज्यादा समय बिताएं. सूत्रों के मुताबिक देरी की वजह दोनों सीटों पर पांचवें चरण में चुनाव होना है. अगर अभी प्रत्याशी घोषित किया तो दोनों को यहां भरपूर समय देना होगा. बीजेपी को ऐसा कोई मौका नहीं दिया जाएगा जो दोनों प्रत्याशियों को घेर सकें. कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रियंका गांधी ही रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी. सोनिया गांधी के रायबरेली की सीट छोड़ने के बाद उत्तर प्रदेश की प्रभारी रह चुकीं प्रियंका को ही सबसे मुफीद उम्मीदवार माना जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक वायनाड चुनाव हो जाने के बाद अमेठी को लेकर राहुल गांधी फैसला ले सकते हैं.
स्मृति ने राहुल का दी थी चुनावी मात
स्मृति ईरानी तीसरी बार अमेठी से चुनावी मैदान में हैं. इससे पहले वह 2014 में अमेठी से चुनाव लड़ी, लेकिन हार गईं थी.फिर उन्होंने 2019 में राहुल गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतीं. राहुल गांधी ने इसी चुनाव में वायनाड से भी चुनाव लड़ा था, जहां से वह चुनाव जीते थे. गांधी परिवार की विरासत माने जाने वाले अमेठी में 50 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से राहुल गांधी की हार हुई थी. राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा अमेठी में थी तो आस बढ़ी थी कि वो मैदान नहीं छोड़ेंगे, लेकिन अब उनका नहीं लड़ना तय माना जा रहा है.
अमेठी सीट का इतिहास
अमेठी लोकसभा सीट यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से एक है. ऐतिहासिक तौर पर यह सीट गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ रही है. यह सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी. यहां पहले चुनाव में कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी को जीते थे. वर्तमान में स्मृति ईरानी यहां से सांसद हैं. 1977 में संजय गांधी के यहां से चुनाव लड़ने के बाद यह गांधी नेहरू परिवार के राजनैतिक वारिसों के 'पॉलिटिकल डेब्यू ' वाली सीट बन गई. देश दुनिया में इसकी पहचान गांधी नेहरू परिवार के गढ़ के रूप में होने लगी. हालांकि पहला चुनाव संजय गांधी हार गए लेकिन इसके बाद संजय गांधी, राजीव गांधी , सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी अलग-अलग चुनाव में जीतकर लोकसभा पहुंचते रहे.
राजीव गांधी का राजनीतिक पर्दापण
संजय गांधी की असामयिक मृत्यु हो जाने के बाद उनके भाई राजीव गांधी का यहां से राजनैतिक पदार्पण हुआ. 2014 मोदी लहर के बाद इस सीट पर कांग्रेस की पकड़ ढीली हो गई. इसके बाद 1980 में कांग्रेस से संजय गांधी यहां से जीत गए. उन्होंने जनता पार्टी की तरफ से उतरे रवींद्र प्रताप सिंह को मतों के बड़े अंतर से हराया. 1981 के उपचुनाव में राजीव ने शरद यादव को हराया.
1984 के चुनाव में राजीव के सामने संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी थी. लेकिन जनता ने राजीव गांधी को जिताया. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई. इसके बाद लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई. राजीव फिर अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए गए तो मेनका ने राजीव के मुकाबले संजय विचार मंच के उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा. नतीजे राजीव के पक्ष में थे. 1991 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट पर राजीव के सामने बीजेपी ने रवींद्र प्रताप को अपना उम्मीदवार बनाया. एक बार फिर राजीव गांधी को जीत मिली. लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने से उप चुनाव हुआ. जिसमें उनके साथी कैप्टन सतीश शर्मा ने जीत दर्ज की.
चुनावी रण में यहीं से उतरीं सोनिया
1998 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई. पति की हत्या के करीब छह साल बाद सोनिया गांधी का राजनीतिक आगाज हुआ. 1999 में सोनिया गांधी ने यहां से राजनैतिक शुरुआत की. उनके सामने बीजेपी से संजय सिंह थे. एकतरफा लड़ाई में सोनिया गांधी जीतीं. इसके बाद अगले चुनाव में वे रायबरेली चली गईं.
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