इंजेक्शन के लिए तड़प रहे ब्लैक फंगस के मरीज, तीमारदार लगातार लगा रहे चक्कर
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इंजेक्शन के लिए तड़प रहे ब्लैक फंगस के मरीज, तीमारदार लगातार लगा रहे चक्कर

ब्लैक फंगस के इलाज में एम्फोटेरेसिन बी नाम का इंजेक्शन लगता है जिसे सिप्ला कंपनी बनाती है. ये इंजेक्शन मरीज को उनके वजन के हिसाब से लगता है और डॉक्टर इसे लगातार आठ से 10 दिन तक लगाने की सलाह देते हैं. 

इंजेक्शन के लिए तड़प रहे ब्लैक फंगस के मरीज, तीमारदार लगातार लगा रहे चक्कर

मयूर शुक्ला/लखनऊ: ब्लैक फंगस मरीज के तीमारदारों के लिए इसमें लगने वाला इंजेक्शन परेशानी का सबब बना हुआ है. तीमारदार इंजेक्शन के लिए लगातार दुकान और इससे संबंधित काउंटर पर चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन आवश्यकता अनुसार उन्हें इंजेक्शन नहीं मिल रहा.

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आश्वासन मिलता है, इंजेक्शन नहीं
लखनऊ के सिप्स हॉस्पिटल में 51 साल के इसरो के साइंटिस्ट श्याम कृष्ण ब्लैक फंगस की चपेट में आने के बाद से एडमिट हैं. डॉक्टर ने इनके उपचार के लिए 10 दिन का इंजेक्शन मांगा है, लेकिन उनकी पत्नी सीमा को मंडलायुक्त कार्यालय के तीन दिन चक्कर काटने के बाद तीन दिन के इंजेक्शन की अनुमति ही मिल पाई. मुसीबतें यहीं नहीं रुकी, रेड क्रॉस सोसाइटी के 4 दिन तक चक्कर काटने के बाद उन्हें एक भी इंजेक्शन नहीं मिला और यही हालत सभी तीमारदारों की है. रेड क्रॉस सोसाइटी में रोज तीमारदारों की लाइन लगी रहती है और वहां उन्हें बस आश्वासन ही मिलता है और यह बताया जाता है कि अगला स्टॉक आने पर इंजेक्शन मिलेगा.

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कितनी लगती हैं डोज?
ब्लैक फंगस के इलाज में एम्फोटेरेसिन बी नाम का इंजेक्शन लगता है जिसे सिप्ला कंपनी बनाती है. ये इंजेक्शन मरीज को उनके वजन के हिसाब से लगता है और डॉक्टर इसे लगातार आठ से 10 दिन तक लगाने की सलाह देते हैं. अगर एक दिन भी ब्रेक हुआ तो फिर से नए सिरे से इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं. इस तरह से एक मरीज को लगभग 50 इंजेक्शन चाहिए होते हैं. 

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क्यों आई इंजेक्शन में कमी?
एम्फोटेरेसिन बी इंजेक्शन की खपत पहले जितनी पूरे साल में होती थी अब उससे अधिक 1 दिन में हो रही है. यही कारण है कि यह इंजेक्शन बाजार में उपलब्ध नहीं है और मरीजों को सही मात्रा में नहीं मिल पा रहा है. पहले इस इंजेक्शन की मांग बहुत कम होती थी, इसलिए मेडिकल स्टोर वाले इसे बहुत कम मात्रा में रखते थे और एक्सपायर होने पर कंपनी में वापस कर दी जाती थी जिस कारण कंपनी ने भी इसको बनाना कम कर दिया. लेकिन अभी परिस्थितियां विपरीत हो चली है और ब्लैक फंगस मरीज के तीमारदारों को दर-दर भटकना पड़ रहा है.

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