क्या है नजूल भूमि विधेयक, उपचुनाव में बैकफायर के डर से क्या BJP सरकार ने पीछे खींचे कदम
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क्या है नजूल भूमि विधेयक, उपचुनाव में बैकफायर के डर से क्या BJP सरकार ने पीछे खींचे कदम

Nazul Land Bill: उत्तर प्रदेश विधानसभा से बुधवार को पारित किए गए उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति विधेयक को विधान परिषद की मंजूरी नहीं मिली. बीजेपी सदस्य और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इसे प्रवर समिति के सुपुर्द करने का प्रस्ताव रख दिया. 

 

क्या है नजूल भूमि विधेयक, उपचुनाव में बैकफायर के डर से क्या BJP सरकार ने पीछे खींचे कदम

Nazul Bill: क्या यूपी में फिर 'सरकार बनाम संगठन' की स्थिति बन रही है ? इसकी चर्चा उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति बिल के विधान परिषद में अटकने के बाद फिर शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश विधानसभा से बुधवार को पारित किए गए उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति विधेयक को विधान परिषद की मंजूरी नहीं मिली. बीजेपी सदस्य और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इसे प्रवर समिति के सुपुर्द करने का प्रस्ताव रख दिया. जिसे सीएम योगी ने हरी झंडी दिखाई है. प्रवर समिति दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, जिसके बाद ही इस पर कोई फैसला हो सकेगा. आइए जानते हैं ये नजूल बिल है क्या, जिसको लेकर बीजेपी के भीतर ही दो फाड़ दिख रहा है. 

बीजेपी सदस्यों में ही एकराय नहीं 
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने गुरुवार विधानपरिषद में  इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा लेकिन बीजेपी के सदस्य ही इस पर एकमत नजर नहीं आए. प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इसे प्रवर समिति के सुपुर्द करने का प्रस्ताव रख दिया.जिसे मंजूरी भी मिल गई. 100 सदस्यों के सदन में 79 बीजेपी के सदस्य हैं. ऐसे में इस विधेयक को पारित नहीं किया जाना अहम माना जा रहा है. विधानसभा में भी बीजेपी के कुछ विधायकों ने इस बिल में संशोधन की जरूरत बताई थी. 

भाजपा सदस्य हर्षवर्धन बाजपेई ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, “वह समाज और देश तरक्की करता है जहां जीवन स्वतंत्रता और संपत्ति की गारंटी होती है. एक तरफ तो हम प्रधानमंत्री आवास योजना में लोगों को घर दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हजारों की तादाद में परिवारों से कह रहे हैं कि आप यहां से निकल जाइए यह जमीन हमारी है. यह कहीं से न्याय संगत नहीं है. अगर हम इतनी पुरानी आबादियों से उनकी संपत्ति का अधिकार छीन लेंगे तो यह मेरे हिसाब से सही नहीं है.” 

सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा, “हमारी जानकारी तो यह भी है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी नजूल की जमीन पर बना है तो क्या उसको भी खाली कर दिया जाएगा? इस विधेयक से कौन सा विकास किया जाएगा. लाखों लोग बेघर हो जाएंगे. मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि किस मजबूरी में और किसके कहने पर, किन अधिकारियों की फीडिंग पर यह विधेयक लाया गया है. यह कहीं से भी ना जनहित में है.ना विपक्ष के हित में है और ना सत्ता पक्ष के हित में है.” 

राजा भैया  ने भी किया विरोध 
जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के सदस्य रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने विधेयक पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह विधेयक छोटा हो सकता है लेकिन इसके दुष्परिणाम बहुत गंभीर होंगे. उन्होंने कहा, ''मैं सिद्धार्थ नाथ जी और हर्ष जी को धन्यवाद देता हूं। इन्होंने सही तस्वीर सामने रखी है। यह अपनी पार्टी के हित के विषय में सोच रहे हैं.

सहयोगी दल भी नहीं दिखे सहमत
भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के सदस्य अनिल कुमार त्रिपाठी ने भी विधेयक के प्रावधानों में संशोधन की जरूरत पर जोर दिया. विधेयक को प्रवर समिति के सुपुर्द करने के प्रस्ताव को ध्वनि मत से अस्वीकार कर दिया गया. इसके बाद विपक्षी सदस्य सदन में नारेबाजी करने लगे. 

विपक्ष ने साधा निशाना
विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव पर सपा नेता आरके वर्मा ने कहा कि इस विधेयक के आने से बहुत सारी विसंगतियां पैदा होंगी. आजादी के बाद मुल्क में राजा महाराजा और जमीदारों की जमीनें थीं, जिन पर उन्होंने अपने सिपहसालार और श्रमिकों को बसाया था. जब चकबंदी प्रक्रिया लागू हुई तो उनकी जमीन की गाटाबंदी नहीं की गई और उसे सरकारी जमीन मान लिया गया. यह विधेयक कानून बनने के बाद उनको कभी भी वहां से निकाला जा सकता है.

"सपा सदस्य संदीप पटेल ने कहा कि यह विधेयक संविधान की प्रस्तावना के ही खिलाफ है. साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 141 और 300 का भी उल्लंघन है. यह पूंजी पतियों को लाभ पहुंचाने वाला विधेयक है."

सरकार की बिल पर राय?
संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने विधेयक को सदन में पेश किया. उन्होंने कहा कि जनहित में इस विधेयक को लाने की जरूरत इसीलिए पड़ी क्योंकि समय-समय पर सरकार को जब विकास कार्यों के लिये जमीन की जरूरत हो तो नजूल की जमीन को इस्तेमाल किया जा सके. इस विधेयक का उद्देश्य निजी व्यक्ति या इकाई के पक्ष में पूर्ण स्वामित्व को रोकना है. उन्होंने कहा कि राजस्व परिषद, वन विभाग और सिंचाई विभाग की जमीन इस विधेयक के दायरे में नहीं आयेगी. इसके अलावा केंद्र सरकार की जमीन भी इसके दायरे में नहीं है. 

नजूल संपत्ति होती क्या है? 
नजूल संपत्ति उन प्रॉपर्टी को कहा जाता है जिनका कई वर्षों से कोई वारिस नहीं मिला. ऐसी जमीनों पर राज्य सरकार अधिकार हासिल कर लेती है. ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के खिलाफ जाने वाली रियासतों और लोगों की जमीनों को अंग्रेज कब्जा लेते थे. स्वतंत्रता के बाद सरकार के सामने जिन लोगों ने रिकॉर्ड पेश कर इन संपत्ति पर दावा किया उनको लौटा दिया गया जबकि गैर दावे वाली जमीन नजूल बन गई. जिस पर राज्य सरकार का अधिकार हो गया. 

नजूल संपत्ति विधेयक 2024
नजूल संपत्ति विधेयक, 2024 के तहत सरकार ने नजूल भूमि को संरक्षित करते हुए इन जमीनों को निजी व्यक्तियों/संस्थाओं के पक्ष में पूर्ण स्वामित्व के रूप में घोषित करने की बजाय इसका उपयोग केवल सार्वजनिक काम के लिए करने का निश्चय किया है. नजूल संपत्ति विधेयक के लागू होने के बाद राज्य में स्थित नजूल भूमियों का निजी व्यक्ति या निजी संस्था के पक्ष में पूर्ण स्वामित्व के रूप में प्रतिवर्तन नहीं किया जा सकेगा. नजूल भूमि के पूर्ण स्वामित्व परिवर्तन संबंधी किसी भी न्यायालय की कार्यवाही या प्राधिकारी के समक्ष आवेदन, निरस्त हो जाएंगे और अस्वीकृत समझे जाएंगे. यदि इस संबंध में कोई धनराशि जमा की गई है, तो निश्चित ब्याज समेत धनराशि वापस कर दी जाएगी.

हालांकि नजूल भूमि के ऐसे पट्टाधारक जिनका पट्टा अब भी चालू है और नियमित रूप से पट्टा किराया जमा कर रहे हैं और पट्टे की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है, जिनके पट्टों को सरकार या तो ऐसी शर्तों पर जैसा सरकार समय-समय पर निर्धारित करती है जारी रख सकती है या ऐसे पट्टों का निर्धारण कर सकती है. पट्टा अवधि की समाप्ति के बाद ऐसी भूमि समस्त विलंगमों से मुक्त होकर स्वतः राज्य सरकार में निहित हो जाएगी. इस अधिनियम के अंतर्गत नजूल भूमि का आरक्षण एवं उसका उपयोग केवल सार्वजनिक इकाइयों के लिए ही किया जाएगा. 

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