श्रीनगर कस्बे के ज्यादातर लोग पीतल की मूर्तियां बनाते हैं. यह बिजनेस आज का नहीं है, बल्कि यह इनका पैतृक काम है.
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राजेंद्र तिवारी/महोबा: राजधानी लखनऊ से करीब 230 किलोमीटर दूर बुंदेलखंड की गोद में महोबा अपनी अलग ही चमक बिखेर रहा है. उसमें भी खासकर श्रीनगर कस्बा. श्रीनगर में पीतल की मूर्तियों और क्राफ्ट का काम होता है. देश के कोन-कोने से लोग यहां मूर्तियां बनवाने आते हैं. अपनी मनपसंद की मूर्तियां ले भी जाते हैं. हालांकि, अभी तक इसे उद्योग नगरी का दर्जा नहीं मिला है.
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पुस्तैनी काम है मूर्तियां बनाना
श्रीनगर कस्बे के ज्यादातर लोग पीतल की मूर्तियां बनाते हैं. यह बिजनेस आज का नहीं है, बल्कि यह इनका पैतृक काम है. कहा जाता है कि यहां बुंदेलखंड के प्रतापी राजा छत्रसाल ने टकसाल बनवाई थी, जिसमें पीतल के सिक्के ढाले जाते थे. तभी से पीतल और श्रीनगर का चोली दामन का साथ हो गया. यहां के कारीगरों द्वारा बनाई गई मूर्तियों ने पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है.
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प्रशासन से नहीं मिल रही है मदद
श्रीनगर भले ही पीतल के काम के लिए देश-विदेश में सुर्खियां बटोर रहा हो, लेकिन प्रशासन से उस स्तर की मदद नहीं मिल रही है. मूर्तियों के कारोबारी श्यामबाबू बताते हैं, "ये हमारा पैतृक काम है. हमारे दादा-परदादा के समय से पीतल की मूर्तिया बनाने का काम होता चला आ रहा है. हमारे यहां देवी-देवताओं के अलावा कोई फोटो भी दिखा दे तो उसकी मूर्ति बनाई जाती है. देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं और मूर्तियां ले जाते हैं. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद से हालात खस्ता हो गए हैं. अब कारीगरों और काम करने वाले लड़कों को देने के लिए पैसे तक नहीं निकल पाते हैं. पैतृक धंधा होने के कारण इसे बंद भी नहीं कर सकते हैं."
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"ऐसी मूर्तियां शायद ही कहीं मिले"
मूर्तियों के खरीदार रामजीवन सोनी कहते हैं कि हमें पता चला था कि श्रीनगर में पीतल की बहुत अच्छी मूर्तियां बनाई जाती हैं. मैं इन्हें खरीदने के लिए आया था. यहां आकर देखा कि कारगीरों द्वारा बहुत शानदार मूर्तियां बनाई जा रही हैं. शायद ही कहीं और ऐसी मूर्तियां हमें मिलें.
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