किसी भी अखाड़े के लिए पेशवाई बहुत खास होती है. पेशवाई यानी राजसी शान-ओ-शौकत के साथ साधु-संतों का कुंभ में प्रवेश करना. जानें क्या है इसका महत्व...
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मथुरा: वृंदावन में पूर्व वैष्णव बैठक का आज दूसरा स्नान है. इसे लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह देखने मिल रहा है. बताया जा रहा है कि शाही स्नान को लेकर प्रशासन ने चाक-चौबंद की पूरी व्यवस्था कर रखी है. साथ ही, साधु-संतों से मुलाकात कर उनकी नाराजगी भी दूर कर दी गई है. आज वृंदावन में तीनों अखाड़ों (शैव संन्यासी संप्रदाय, वैरागी संप्रदाय, उदासीन संप्रदाय) के साधु-संत आस्था की डुबकी लगाएंगे.
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बता दें, वैष्णव कुंभमेला बैठक के दूसरे शाही स्नान से पहले पेशवाई शुरू हो गई है. तीनों अखाड़ों के श्री महंतों की अगुवाई में जगद्गुरु, द्वाराचार्य, महामण्डलेश्वर समेत हजारों साधुओं का हुजूम शामिल हो रहा है. इसके साथ ही, नागा साधु वहां पटेबाजी का प्रदर्शन कर रहे हैं. ऊंट, घोड़े और बग्गियों में संत और महंत सवार हैं. बांकेबिहारी लाल की जय-जयकार से कान्हा की नगरी गूंज उठी. आज शाही पेशवाई नगर के प्रमुख मार्गों का भ्रमण करेगी. आइए हम आपको समझाते हैं कि ये पेशवाई और पटेबाजी क्या होती है...
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क्या होता है पटेबाजी का प्रदर्शन?
दरअसल, कालांतर में शैव व वैष्णव संतों के बीच शाही स्नान को लेकर विवाद होते थे, जिसके बाद स्वामी बालानंदाचार्य ने वैष्णव अखाड़ों को इकट्ठा किया और संतों को अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया. अखाड़ों की परंपरा में शस्त्र विद्या में पारंगत साधुओं को नागा की पदवी देकर भक्ति कर रहे साधुओं की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया था. हालांकि, वर्तमान में वैष्णव और शैव साधुओं में कोई विवाद नहीं है, लेकिन शस्त्र प्रशिक्षण और प्रदर्शन की परंपरा आज भी जारी है. सामान्य भाषा में इसे पटेबाजी कहा जाता है.
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महाकुंभ में पेशवाई क्या है ?
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