यूपी के इस शहर में 'हथौड़े' को बनाया जाता है 'दूल्हा', बैंड-बाजे के साथ निकलती है बारात
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यूपी के इस शहर में 'हथौड़े' को बनाया जाता है 'दूल्हा', बैंड-बाजे के साथ निकलती है बारात

यहां पर निकलती है हथौड़े की बारात, शामिल होते हैं सैकड़ों लोग. इस हथौडा बारात में वही भव्यता देखने को मिलती है जो कि किसी शादी में देखने को मिलती है. 

यूपी के इस शहर में 'हथौड़े' को बनाया जाता है 'दूल्हा', बैंड-बाजे के साथ निकलती है बारात

मो. गुरफान/प्रयागराज: आपने बारात तो बहुत देखी होंगी. आज हम आपको एक ऐसी शादी में ले कर चलते हैं जिसे देख कर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आखिर ये किस तरह की शादी है, जिसमें दूल्हे की जगह हथौड़े को सजाकर बारात निकली जा रही है. धर्मनगरी कहे जाने वाले प्रयागराज की ये परंपरा है, जहां होलिका दहन होने से पहले शहर की सड़कों पर पूरे विधि-विधान के साथ हथौड़े की बारात निकाली जाती है. 

यहां निकलती है हथौड़े की बारात
होली की मस्ती के जितने रंग है उतनी ही अनोखी है इसे मनाने की परम्पराएं भी हैं. संगम नगरी प्रयागराज में होली की अजीबो गरीब परंपरा है हथौड़े की बारात. अनूठी परंपरा वाली इस शादी में दूल्हा होता है एक भारी-भरकम हथौड़ा, इसके बाद हथौड़े की बारात निकालने से पहले होता है कद्दू भंजन.  

सदियों से चली आ रही है परंपरा
सदियों से चली आ रही इस परंपरा के मुताबिक़ हथौड़े और कद्दू का मिलन शहर के बीचो-बीच हजारों लोगों की मौजूदगी में कराया जाता है, इसका मकसद समाज मे फैली कुरीतियों को खत्म करना है और लोगों के मुताबिक इसी हथौड़े से कोरोना का भी इस बार अंत होगा. संगम नगरी में इसी के साथ शुरू हो जाती है रंगपर्व होली.

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बारात में सैकड़ों लोग होते हैं ढोल नगाड़े के साथ शामिल
शहर की गलियों में जैसे दूल्हे राजा की भव्य बारात निकाली जाती है वैसे इस हथौड़े की बारात में सैकड़ों लोग ढोल नगाड़े के साथ इसमें शामिल होते हैं, डांस भी होता है. इस शादी में सैकड़ों बाराती भी शामिल हुए, जो रास्ते भर मस्ती में मगन होकर नाचते हुए हथौड़े की बारात में चलते रहे. इस हथौडा बारात में वही भव्यता देखने को मिली जो कि किसी शादी में देखने को मिलती है. 

हथौड़ा बारात की अपनी धार्मिक मान्यता
हथौड़ा बारात के आयोजक संजय सिंह के मुताबिक़ इसकी उत्पत्ति संगम नगरी प्रयागराज में ही हुई और इसकी अपनी धार्मिक मान्यता भी है, संजय सिंह बताते हैं की भविष्यत्तर पुराण के 126वें श्लोक में वर्णन है की भगवान विष्णु प्रलय काल के बाद प्रयागराज में अक्षय वट की छइया पर बैठे थे, उन्होनें सृष्टि की फिर से रचना करने के लिए भगवान विश्वकर्मा से आह्वान किया. उस समय भगवान विश्वकर्मा के समझ में नहीं आया की क्या किया जाए, जिसके बाद भगवान विष्णु ने यहीं पर तपस्या, हवन और यज्ञ किया. जिसके बाद ही इस हथौडे़ की उत्पत्ति हुई. इसलिए संगम नगरी प्रयागराज को यह हथौड़ा प्यारा है. 

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