Prayagraj Ka Itihaas:प्र और यज्ञ से कैसे बना प्रयागराज? इलाहाबाद का नाम बदलने को कैसे चली 85 साल लंबी लड़ाई? जानें प्रयागराज का इतिहास
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Prayagraj Ka Itihaas:प्र और यज्ञ से कैसे बना प्रयागराज? इलाहाबाद का नाम बदलने को कैसे चली 85 साल लंबी लड़ाई? जानें प्रयागराज का इतिहास

Prayagraj Ka Itihaas: वैसे तो उत्तर प्रदेश के हर जिले और शहर का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है. ऐसा ही एक जिला, 'प्रयागराज' है. आइए जानते हैं इसका पूरा इतिहास.

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Prayagraj Ka Itihaas: उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों का एक समृद्ध पौराणिक, मुगलकालीन और आधुनिक इतिहास है. इन्हीं में से एक जिला है प्रयागराज. जो कभी इलाहाबाद के नाम से मशहूर था. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक इस शहर का प्राचीन नाम प्रयागराज ही है. ऐसी मान्यता है कि संसार की रचना के बाद ब्रह्मा जी ने पहला बलिदान यहीं दिया था और इसी वजह से इसका नाम प्रयाग पड़ा. संस्कृत में प्रयाग का एक मतलब 'बलिदान की जगह' भी है.

यूपी के बड़े जिलों में से एक जिला है प्रयागराज. यह गंगा, यमुना और गुप्त सरस्वती नदियों के संगम पर बसा हुआ है. संगम स्थल को त्रिवेणी कहा जाता है. यह हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थल माना गया है. प्रयागराज भारत के ऐतिहासिक और पौराणिक नगरों में से एक है. यहां  हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन और ईसाई समुदायों का संगम है. इतना ही नहीं माना तो ये भी जाता है कि भारत का सबसे जीवंत राजनीतिक और आध्यात्मिक रूप से ये शहर जागरूक है. ये शहर शुरू से ही विद्या, ज्ञान और लेखन का गढ़ रहा है. यहां हर 12 साल में कुंभ का मेला लगता है. 

कैसे बना प्रयागराज?
संगम नगरी यानी प्रयागराज...इस शहर को 450 साल बाद अपनी पहचान वापस मिली. दरअसल, इस शहर में मुगल बादशाह अकबर ने करीब सन 1574 में किले की नींव रखी थी. जब यहां अकबर रुका तो उसने एक नया शहर बनाया और उस शहर का नाम दिया इलाहाबाद. कहते हैं अकबर ने पहले इसका नाम इलाहाबास रखा था. जिसका मतलब था अल्लाह का वास, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसे इलाहाबाद कहने लगे. वैसे इस शहर को वेद पुराणों में प्रयाग कहा गया है. ऐसी मान्यता है कि इस शहर का प्राचीन नाम प्रयागराज ही है.

क्या है इस शहर का महत्व?
प्रयागराज का अपना सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व है. प्रयाग को ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा का कर्मक्षेत्र भी माना जाता है. इस शहर का नाम रामचरित मानस में प्रयागराज दर्ज है. प्रयागराज का जिक्र पुराणों में भी है. पुराणों और हिन्दू धर्म की मान्यता के हिसाब से यहां ब्रह्मा जी ने सबसे पहले यज्ञ संपन्न किया था. प्रयाग यानी प्र से प्रथम और य से ज्ञ मिलकर इसका नाम प्रयाग पड़ा. 'प्र' और 'याग' इन्हीं दोनों शब्दों को मिलाकर यह प्रयाग बन गया. इसे न सिर्फ संगम नगरी बल्कि तीर्थों के राजा के नाम से भी जाना जाता है. इसे तीर्थराज भी कहते हैं.  

कब-कब हुई नाम बदलने की मांग?
इस शहर का नाम हमेशा चर्चाओं में रहा. जब इसका नाम इलाहाबाद हुआ करता था तब समय-समय पर नाम बदलने की मांग उठती रही.1939 में महामना मदन मोहन मालवीय ने इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम छेड़ी थी, लेकिन तब ऐसा नहीं हो पाया था. इसके बाद 1982 में टीकरमाफी के पीठाधीश्वर हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से मुलाकात कर इस शहर का नाम बदलने की मांग की थी. फिर 1996 में भी इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने चलाई. सभी इसका नाम बदलने की मांग करते रहे, लेकिन योगी सरकार के आने के बाद इलाहाबाद को अपने नाम की पहचान मिली. अधिकांश लोगों ने इसका स्वागत किया. अब इस शहर को लोग प्रयागराज के नाम से जानने लगे हैं.

ये हैं शहर के प्रमुख संस्थान
मूल रूप से प्रयागराज एक प्रशासनिक और शैक्षिक शहर है. इस शहर में इलाहाबाद हाई कोर्ट, उत्तर प्रदेश के महालेखा परीक्षक, रक्षा लेखा के प्रमुख नियंत्रक (पेंशन) पीसीडीए, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद, पुलिस मुख्यालय, मोती लाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान, मेडिकल और कृषि कॉलेज, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी), आईटीआई नैनी और इफ्को फुलपुर, त्रिवेणी ग्लास प्रमुख संस्थान हैं.

शहर में घूमने की जगह
हिंदुओं के लिए, अनगिनत मंदिर, त्रिवेणी संगम और यहां स्थित अक्षयवत हैं. यहां खुसरो बाग जैसे मकबरे और कई मस्जिदें भी हैं. यहां आनंद भवन, प्रयागराज का किला, जवाहर तारामंडल, अशोक स्तम्भ, ऑल सेंट कैथेड्रल जैसी जगहें देखने लायक हैं. 

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