Lakhimpur Khiri Ka Itihaas: यूं तो उत्तर प्रदेश का इतिहास काफी गौरवशाली है. ऐसा ही एक जिला, 'लखीमपुर खीरी' है. आइए जानते हैं इसका पूरा इतिहास.
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Lakhimpur Khiri Ka Itihaas: उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों का एक समृद्ध पौराणिक, मुगलकालीन और आधुनिक इतिहास है. इन्हीं में से एक जिला है लखीमपुर खीरी. लखीमपुर कभी लक्ष्मीपुर के नाम से मशहूर था और माना जाता है कि खीरी नाम खर वृक्ष के घने जंगलों से पड़ा.
लखीमपुर खीरी को चीनी का कटोरा भी कहा जाता है. यहां बड़ी चीनी मिलों में गन्ने की पेराई होती है. यूपी सरकार की मानें तो 2022-23 में यूपी में 107.29 लाख टन चीनी उत्पादन हुआ था. क्षेत्रफल के आधार पर यह यूपी का सबसे बड़ा जिला है. लखीमपुर खीरी जिला यूपी में सबसे बड़ी सिख आबादी का घर है, जिनमें से अधिकांश किसान हैं.
लक्ष्मीपुर के नाम से था मशहूर
लखीमपुर जिले को पहले लक्ष्मीपुर के नाम से जाना जाता था. लखीमपुर शहर से 2 किलोमीटर (1.2 मील) खीरी कस्बा है. इसका नाम साईंद खुर्द के अवशेषों पर निर्मित कब्र से लिया गया है, जिनकी 1563 में मृत्यु हो गई थी.
एकमात्र मेंढक मंदिर
यहां लखीमपुर से सीतापुर तक मार्ग पर ओइल में मेंढक मंदिर है. यह भारत में एक मात्र ऐसा मंदिर है, जो मंडूक तानात्रा पर आधारित है. इसे 1860 से 1870 के बीच ओल राज्य (जिला लखीमपुर खेरी) के पूर्व राजा ने बनवाया था. ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. मंदिर में स्थापित शिवलिंग को “बानसुर प्रदरी नरमेश्वर नरदादा कंड” से लाया गया था.
लखीमपुर खीरी का इतिहास
लखीमपुर खीरी को राजपूतों ने 10वीं सदी में बसाया था. मुस्लिम शासन धीरे-धीरे इस दूरदराज इलाके में फैल गए. 14 वीं शताब्दी में नेपाल से हमलों की घुसपैठ को रोकने के लिए यहां कई किलों का निर्माण किया गया था. 17 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के दौरान, अकबर के शासन में अवध के सूबे का खैराबाद हिस्सा बन गया. 1801 में, जब रोहिलखंड को अंग्रेजों को सौंप दिया गया था, इस जिले के हिस्से को इस सत्र में शामिल किया गया था, लेकिन 1814-1816 के एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद यह अवध में बहाल हो गया था.
स्वतंत्रता आंदोलन से कनेक्शन
1857 के विद्रोह में जिले का मोहम्मदी उत्तरोत्तर में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य केंद्रों में से एक बन गया. 2 जून 1857 को शाहजहांपुर के शरणार्थी मोहम्मदी पहुंचे और दो दिन बाद मोहम्मदी को छोड़ दिया गया. सीतापुर रास्ते पर गोलियां चलाई गई. जिससे कई लोग मारे गए और बाद में कई लोगों की लखनऊ में हत्या कर दी गई. अक्टूबर 1858 तक, ब्रिटिश अधिकारियों ने जिले पर नियंत्रण हासिल करने का कोई दूसरा प्रयास नहीं किया. 1858 के अंत तक ब्रिटिश अधिकारियों ने नियंत्रण हासिल कर लिया और एक एकल जिले के मुख्यालय का गठन किया गया, जिसे बाद में लखमलपुर में स्थानांतरित कर दिया गया. धीरे-धीरे इसका नाम लखीमपुर खीरी हो गया.
शहर में घूमने लायक जगहें
लखीमपुर खीरी से दुधवा नेशनल पार्क की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है, ये पार्क यहां से दो या तीन घंटे की दूरी पर है. इसके साथ ही यहां का तीरथ कुंड भगवान शिव को समर्पित है. यह गोला गोकरन नाथ या छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है. देवकाली और लिलौटीनाथ मंदिर भी यहां है. यह जिला भारत नेपाल सीमा के साथ पीलीभीत, शाहजहांपुर, हरदोई, सीतापुर एवं बेहराइच जिलों से घिरा हुआ है.
भगवान शिव और रावण की कहानी
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव ने रावण की तपस्या से खुश होकर वरदान दिया था. रावण ने महादेव से अपने साथ लंका चलने के लिए कहा था तो महादेव रावण की इस बात से राजी हो गए, लेकिन उनकी भी शर्त थी कि वो लंका को छोड़कर अन्य किसी और स्थान पर नहीं रहेंगे. महादेव की इस शर्त से रावण भी तैयार हो गया. इसके बाद महादेव को लेकर रावण ने लंका के लिए अपनी यात्रा शुरू की थी, लेकिन वह यात्रा पूरी नहीं कर पाया. इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर रावण के अगूठे का निशान अभी भी मौजूद है. हर साल यहां चैत्र महीने में चेती मेले का आयोजन किया जाता है.
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