Sanatan Dharma Mythology Mystery: भगवान शंकर नंदी के माध्यम से ही भक्तों की पुकार सुनते हैं. पुराणों के अनुसार नंदी भी शिव का ही अवतार हैं. नंदी हमेशा शिव के साथ रहते हैं. नंदीश्वर की पूरी कहानी यहाँ पढ़ें.
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Sanatan Dharma Mythology Mystery: जब भी भक्त शिव मंदिर जाते हैं तो अपने आराध्य शिव को प्रसन्न करने के साथ साथ नंदी की भी पूजा करते हैं और उनके कान में अपनी मनोकामना बताते हैं. कहते हैं शिव के सामने बैठे नंदी ही भगवान तक भक्तों की पुकार ले जाते हैं. यह एक तरह की परंपरा बन गई है, इस पर भक्तों का विश्वास बना हुआ है. बहुत से विद्वान मानते हैं कि कामशास्त्र के रचनाकार नंदी ही थे. नंदी और कोई नहीं स्वयं शिव के अवतार हैं. नंदी भी शिव ही हैं. पुराणों में इसके विषय में एक कहानी मिलती है.
नंदी की उत्पति
पौराणिक कथा के अनुसार शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त हो रहा था. शिलाद मुनि ने विवाह न करने का प्रण लिया था. इससे उनके पितरों ने अपनी चिंता बताई कि वह कुल समाप्त होने पर परेशान हैं. शिलाद निरंतर योग तप आदि में व्यस्त रहने के कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे अतः उन्होंने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न किया. उन्होंने इंद्र से जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान मांगा. इंद्र ने कहा कि वह ऐसा पुत्र नहीं दे सकते इस कामना के लिए शिव के पास जाएं. तब शिलाद ने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया और शिवजी के ही समान पुत्र की मांग की, जिसे मृत्यु ना छू सके और उस पर कृपा बनी रहे. भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया. कुछ समय बाद खेत जोतते समय शिलाद को एक बालक मिला ऋषि शिलाद समझ गए कि यह वही बालक है और उन्होंने उसका नाम नंदी रखा.
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नंदी बने शिव की सवारी
कुछ समय बाद भगवान शंकर ने माता पार्वती की सम्मति से सभी गणों, गणेशों व वेदों के सामने गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया और उन्हें अपनी सवारी के रूप में चुना. इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए. भगवान शंकर का वरदान है कि जहां पर नंदी का निवास होगा वहां उनका भी निवास होगा. तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है.
शिव को प्रसन्न करने के लिए नंदी को प्रसन्न करें
ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव की पूजा आराधना करने से पहले नंदी की पूजा करने पर सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और शुभ फल प्राप्त होते हैं. यही नहीं नंदी भगवान शिव के उत्तराधिकार स्वरूप उनके सबसे परम भक्त हैं. नंदी हमेशा शिव के ध्यान में मग्न रहते हैं. कहते हैं शिव नंदी की बात को नहीं टालते. यही कारण है कि श्रद्धालु भक्त नंदी के कानों में भगवान तक अपनी मनोकामना पहुंचाने के लिए आराधना करते हैं.
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