Guruwar Ke Upay: गुरुवार को श्री दीनबन्ध्वष्टकम् स्तोत्र का पाठ, बरसेगी श्रीहरि की कृपा और आशीर्वाद
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Guruwar Ke Upay: गुरुवार को श्री दीनबन्ध्वष्टकम् स्तोत्र का पाठ, बरसेगी श्रीहरि की कृपा और आशीर्वाद

बृहस्पतिवार/गुरुवार का दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है. आइये जानते हैं श्रीहरि को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं...

Guruwar Ke Upay

Guruwar Ke Upay: आज मार्गशीष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है. आज दिन गुरुवार है. हिंदू धर्म में यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन लोग बृहस्पतिवार का व्रत रखते हैं. मान्यता है कि इस दिन श्रीहरि की उपासना करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. जगत के पालनहार व्यक्ति को आशीर्वाद देते हैं. मान्यता है कि बृहस्पतिवार को पूजा के दौरान श्री दीनबन्ध्वष्टकम् का पाठ जरूर करना चाहिए. इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं. 

॥ श्री दीनबन्ध्वष्टकम् ॥
यस्मादिदं जगदुदेति चतुर्मुखाद्यंयस्मिन्नवस्थितमशेषमशेषमूले।

यत्रोपयाति विलयं च समस्तमन्तेदृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥1॥

चक्रं सहस्रकरचारु करारविन्देगुर्वी गदा दरवरश्च विभाति यस्य।

पक्षीन्द्रपृष्ठपरिरोपितपादपद्मो।दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥2॥

येनोद्धृता वसुमती सलिले निमग्ना नग्नाच पाण्डववधूः स्थगिता दुकूलैः।

संमोचितो जलचरस्य मुखाद्गजेन्द्रो।दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥3॥

यस्यार्द्रदृष्टिवशतस्तु सुराः समृद्धिंकोपेक्षणेन दनुजा विलयं व्रजन्ति।

भीताश्चरन्ति च यतोऽर्कयमानिलाद्या।दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥4॥

गायन्ति सामकुशला यमजं मखेषुध्यायन्ति धीरमतयो यतयो विविक्ते।

पश्यन्ति योगिपुरुषाः पुरुषं शरीरे।दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥5॥

आकाररूपगुणयोगविवर्जितोऽपि मददभक्तानुकम्पननिमित्तगृहीतमूर्तिः।

यः सर्वगोऽपि कृतशेषशरीरशय्यो।दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥6॥

यस्याङ्घ्रिपङ्कजमनिद्रमुनीन्द्रवृन्दैराराध्यते भवदवानलदाहशान्त्यै।

सर्वापराधमविचिन्त्य ममाखिलात्मा।दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥7॥

यन्नामकीर्तनपरः श्वपचोऽपि नूनंहित्वाखिलं कलिमलं भुवनं पुनाति।

दग्ध्वा ममाघमखिलं करुणेक्षणेन।दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः॥8॥

दीनबन्ध्वष्टकं पुण्यंब्रह्मानन्देन भाषितम्।

यः पठेत् प्रयतो नित्यंतस्य विष्णुः प्रसीदति॥9॥

॥ इति श्रीमत्परमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं श्रीदीनबन्ध्वष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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