Janmashtami Special 2023: वृंदावन और मथुरा वह पवित्र स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने बाललीलाएं की और कई राक्षसों का वध किया. यह धाम कृष्ण का धाम है. वृन्दावन और मथुरा के अलावा देश में कई जगह श्रीकृष्ण के ऐसे विग्रह मौजूद हैं जहां भक्तों की मुराद पल में पूरी हो जाती है.
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Janmashtami Special: भक्त अगर सच्चे मन से भगवान की पूजा अर्चना करे और उनसे कोई चीज मांगे तो भगवान जरूर अपने भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं. कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं. भगवान श्रीकृष्ण तो यूँ भी बहुत दयालु है वह अपने भक्तों की पुकार सुनकर उनके दुख दूर करते है. बहुत से पति पत्नी बच्चे की चाहत में संतान गोपाल का पाठ करते हैं. कहते हैं कृष्ण के दर्शन से संतान सुख मिलता है. जो भक्त दुख दर्द, गरीबी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो श्रीकृष्ण के इन विग्रहों के आगे करें प्रार्थना.
गोविंद देवजी, जयपुर
मान्यता है कि संत रूप गोस्वामी को श्रीकृष्ण भगवान की यह मूर्ति वृंदावन के गौमा टीला में 1592 में मिली थी. उन्होंने वहीं पर छोटी सी कुटिया इस मूर्ति को स्थापित किया. इनके चले जाने के बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंदजी की सेवा पूजा संभाली. औरंगजेब के शासनकाल में हिन्दू मंदिरों पर कई हमले हुए. ब्रज पर हुए हमले के समय गोविंदजी को उनके भक्त जयपुर ले गए, ताकि इस प्रतिमा को कोई नुकसान न पहुंचे. तब से गोविंद देवजी जयपुर के राजकीय मंदिर में विराजमान हैं. आप जब भी जयपुर जाएं गोबिंद देव जी के दर्शन जरूर करें.
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जुगलकिशोर जी, पन्ना मध्यप्रदेश
भगवान श्रीकृष्ण की यह मूर्ति हरिरामजी व्यास को 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन में मिली. व्यासजी ने उस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित किया. बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया .यहाँ मुगलों ने आक्रमण करके इस चमत्कारी मूर्ति को नुकसान पहुँचाना चाहा तब जुगलकिशोरजी को उनके भक्त ओरछा के पास पन्ना ले गए.
मदन मोहनजी, करौली राजस्थान
श्रीकृष्ण की यह मूर्ति अद्वैतप्रभु को वृंदावन में कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी. उन्होंने मूर्ति मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी और चतुर्वेदी परिवार से मांगकर सनातन गोस्वामी ने सन् 1533 में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित की. बाद में उड़ीसा के राजा और मुलतान के नमक व्यापारी रामदास कपूर ने अपनी मुराद पूरी होने के बाद यहां मदनमोहनजी का विशाल मंदिर बनवाया. मुगलों के आक्रमण के समय इन्हें भी भक्त जयपुर ले गए. बाद करौली के राजा गोपालसिंह ने बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहनजी की मूर्ति को स्थापित किया.
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