Paush Putrada Ekadashi 2024: पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु संतान की संकटों से रक्षा करते हैं. साथ ही संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत का विशेष महत्व माना गया है.
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Paush Putrada Ekadashi 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु संतान की संकटों से रक्षा करते हैं. साथ ही संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत का विशेष महत्व माना गया है. इस साल यह 21 जनवरी 2024, रविवार को है. इस दिन
पौष पुत्रदा एकादशी 2024 मुहूर्त
पौष माह के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 20 जनवरी 2024 को रात 06 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी. यह अगले दिन यानी 21 जनवरी 2023 को रात 07 बजकर 26 मिनट पर खत्म होगी. उदयातिथि के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 21 जनवरी को रखा जाएगा.
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक मान्यता अनुसार भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था. उसका कोई पुत्र नहीं था. उसकी स्त्री का नाम शैव्या था. इस वजह से वह हमेशा चिंतित रहती थी. राजा के पितर भी दुखी होकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा. राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री किसी से भी संतोष नहीं होता था.
वह हमेशा यही सोचता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा. बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा. जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है. इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए कोशिश करना चाहिए. जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है. उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं. पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं. राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था.
एक समय राजा ने प्राण त्याग देने का निश्चय किया लेकिन आत्मघात को महा पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया. एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ घोड़े पर बैठकर वन चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा. उसने देखा कि वन में मृग, सिंह, बंदर, सर्प आदि घूम रहे हैं. वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया. इसी तरह आधा दिन बीत गया. वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको क्यों दुख प्राप्त हुआ?
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा. थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा. उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे. उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे. उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे. राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया. राजा को देखकर मुनियों ने कहा - हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो.
राजा ने पूछा - महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहां आए हैं, कृपा कर बताइए. मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं. यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए. मुनि बोले - हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा.
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया. मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया. कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ.
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