According Mahbharat: कौन हैं बाबा खाटू श्याम जी, क्यों कहते हैं हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा
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According Mahbharat: कौन हैं बाबा खाटू श्याम जी, क्यों कहते हैं हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा

According Mahbharat: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर में हर दिन हजारों भक्त अपनी मन्नत लिए जाते हैं. करोड़ों भक्तों के आराध्य देव खाटू श्याम की कहानी क्या है, यहां पढ़ें.. 

 

Khatu shyam baba story

Baba khatu Shyam Story: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है परमधाम खाटू. यहां विराजित हैं खाटू श्यामजी यहां इनका बहुत ही प्राचीन मंदिर है. केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरी देश दुनिया से खाटू श्याम के भक्त यहां उनके दर्शनों के लिए आते हैं. यहां लगने वाला फाल्गुन मेला बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है जिसमें भक्तों की भीड़ उमड़ती है. खाटू श्याम को हारे का सहारा भी कहा जाता है. कहते खाटू श्याम जी कभी अपने भक्तों को अकेला नहीं छोड़ते और जब भी भक्त जीवन की परिस्थितियों से हार मानते हैं खाटू श्याम जी उनका सहारा बन जाते हैं. 

कौन हैं खाटू श्याम जी 
खाटू श्याम महाभारत के भीम के पोते हैं. भीम और हिडिम्बा के पुत्र हुए घटोत्कच. घटोत्कच और मोरवी के तीन बेटों में सबसे बड़े बेटे का नाम हुआ बर्बरीक. बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे. शिवजी की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये; इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से भी जाने गए. जब बर्बरीक को महाभारत के युद्ध का पता चला तो उन्होंने अपने धनुष बाण उठाकर युद्ध में जानें का निर्णय लिया. वह अपने छोटे दादा अर्जुन जैसे ही धनुर्धारी थे.

जब वह युद्ध भूमि की ओर जा रहे थे तो उनकी माँ ने उनसे वचन लिया कि जो पक्ष हारने लगेगा तुम उसकी तरफ से युद्ध करना. तुम हारे का सहारा बनना. माँ को वचन देकर वह अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन अमोघ बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े. 

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बर्बरीक ने शीश कटने के बाद भी देखा महाभारत का युद्ध 
अपनी माता को दिया वचन के अनुसार बर्बरीक हारने वाले पक्ष की तरफ से लड़ने लग जाते. श्री कृष्ण समझ गए कि ऐसे तो महाभारत का युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा. बर्बरीक किसी को नहीं हारने देंगे. तब उन्होंने योजना बनाई और ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक से उनका सिर दान में मांग लिया. बर्बरीक ने विनती की कि कोई साधारण ब्राह्मण उनका सिर दान में नहीं मांगेगा इसलिए अपना असली परिचय दें. श्रीकृष्ण अपने रूप में आ गए.

बर्बरीक ने उनसे कहा कि वह अंत तक महाभारत का युद्ध देखना चाहते हैं. श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि उनका कटा हुआ सिर सामने की पहाड़ी पर रख दिया जाएगा जहाँ से वह यह युद्ध देख सकेंगे. वीर बर्बरीक ख़ुशी के साथ अपना सिर काटने को तैयार हो गए और फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये. भगवान कृष्ण ने ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हे मेरे नाम श्याम के नाम से पूजा जाएगा. 

श्याम से बने खाटूश्याम 
युद्ध समाप्ति के बाद उनका शीश खाटू नगर में दफनाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है, कलयुग में एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दूध की धारा बहाती थी. लोगों ने यहां खुदाई कि तो एक शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण के पास रखा गया. फिर एक  बार खाटू नगर के राजा को सपना हुआ कि यहां एक मंदिर बनना चाहिए और खाटूश्याम के सिर को यहां स्थान देना चाहिए. उसके बाद यहां पर एक छोटे से मंदिर में भगवान खाटूश्याम विराजमान हुए. मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720  ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. 

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