उत्‍तराखंड के ग्‍लेश‍ियर का क्‍या है हाल, स्‍टडी हुई शुरू
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उत्‍तराखंड के ग्‍लेश‍ियर का क्‍या है हाल, स्‍टडी हुई शुरू

इस स्टडी रिपोर्ट से जानकारी मिलेगी कि ग्लेशियर का कैसा वातावरण है और उनकी स्थिति कैसी है, भौगोलिक स्थिति में किस तरह का बदलाव हो रहा है.  

उत्‍तराखंड के ग्‍लेश‍ियर का क्‍या है हाल, स्‍टडी हुई शुरू

राम अनुज, देहरादून: उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) प्रदेश के सभी ग्लेशियर की स्टडी हो रही है. सभी छोटे बड़े ग्लेशियर की सेटेलाइट इमेज के जरिए स्टडी की जा रही है. ग्लेशियर में किस तरह के बदलाव हो रहे हैं कैसे उनके क्षेत्र बढ़ रहे हैं किस क्षेत्र में ग्लेशियर घट रहे हैं. ग्लेशियर में होने वाले बदलाव का प्रकृति पर क्या असर पड़ रहा है. क्या ग्लेशियर किसी खतरे में हैं या ग्लेशियर का विस्तार हो रहा है. ग्लेशियर के घटने से किस तरह का बदलाव पर्यावरण में देखने को मिल सकता है और उसको रोकने के लिए क्या प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं. इस स्टडी रिपोर्ट से जानकारी मिलेगी कि ग्लेशियर का कैसा वातावरण है और उनकी स्थिति कैसी है, भौगोलिक स्थिति में किस तरह का बदलाव हो रहा है.  

उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र इस बारे में भी काम कर रहा है कि आखिर ग्लेशियर को किस तरह से नापा जा सकता है, ग्लेशियर में होने वाली हलचल को कैसे समय रहते जाना जा सकता है. उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक एमपी बिष्ट का कहना है कि अलग-अलग संस्थान प्रदेश के अलग-अलग ग्लेशियर की स्टडी करते हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब उत्तराखंड के सभी ग्लेशियर की मॉनिटरिंग करके उसकी स्टडी की जा रही है. स्टडी के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जिसको शासन को सौंपा जायेगा. इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार ग्लेशियर के बारे में अपनी नीति बना सकेगी और ग्लेशियर में आने वाले तूफान की जानकारी भी समय रहते मिल सकेगी. फिलहाल अभी ग्लेशियर की रिपोर्ट को तैयार होने में कुछ साल लग जाएंगे. मिसाल के तौर पर गंगोत्री ग्लेशियर, पिंडारी ग्लेशियर, बंदरपूंछ ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर के साथ  2013 के भीषण दैवीय आपदा के दौरान चर्चाओं में आया केदारनाथ का चौराबाड़ी ग्लेशियर की स्थिति का अध्ययन किया जाएगा.

उत्तराखंड के प्रमुख ग्लेशियर
चौराबाड़ी ग्लेशियर
2013 के दैवी  भीषण आपदा के दौरान सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाला केदारनाथ का चौराबाड़ी ग्लेशियर है, केदारनाथ से 3 किमी की दूरी पर चौराबाड़ी ग्लेशियर मौजूद है. और इस ग्लेशियर से मंदाकिनी नदी निकलती है. चौराबाड़ी ग्लेशियर के पास गांधी सरोवर है और इसी गांधी सरोवर में कहा जाता है कि मलबा भरा था  जब 2013 में  आपदा आई तो गांधी सरोवर का ऊपरी हिस्सा टूट गया. यह भी कहा जाता है कि गांधी सरोवर में चोरा चौराबाडी ग्लेशियर का एक बहुत बड़ा भाग टूटा था, जिसकी वजह से केदारनाथ में भीषण आपदा आई.

गंगोत्री ग्लेशियर
उत्तराखंड के  उत्तरकाशी में गंगोत्री ग्लेशियर मौजूद है. यह 30 किलोमीटर लंबा और 2 किलोमीटर चौड़ा ग्लेशियर है. गंगोत्री ग्लेशियर भी हमेशा से शोध का केंद्र रहा है.   

पिंडारी ग्लेशियर
बागेश्वर और चमोली जिले के बीच पिंडारी ग्लेशियर है. इस ग्लेशियर की लंबाई करीब 30 किलोमीटर और चौड़ाई 400 मीटर है. पिंडारी ग्लेशियर भी हमेशा से ट्रेकर्स के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है यहां भी कई तरह की रिसर्च होती रही हैं.

मिलम ग्लेशियर
पिथौरागढ़ जिले की मुनिस्यारी में यह मौजूद है मुनस्यारी से करीब 16 किलोमीटर की दुर्गम रास्तों से होकर इस ग्लेशियर तक पहुंचा जा सकता है. इसे कुमाऊ का सबसे बड़ा ग्लेशियर भी कहा जाता है. इस ग्लेशियर से पिंडर की सहायक नदी मिलम और काली नदी की सहायक नदी गोरीगंगा भी निकलती है. नीलम ग्लेशियर काफी समय से ट्रेकर्स के लिए भी काफी आकर्षण का केंद्र है और कुमाऊं में सबसे ज्यादा पर्यावरणविद इस ग्लेशियर के आसपास ही शोध करते हैं.

बंदरपूंछ
उत्तरकाशी जिले के बंदरपूछ पर्वत की श्रेणी पर स्थित है. इसकी लम्बाई 12 किलोमीटर है. उत्तरकाशी में यह दूसरा ऐसा ग्लेशियर है जिसको लेकर पर्वतारोही काफी रोमांचित रहते है

उत्तराखंड में यूं तो 9 हजार छोटे-बड़े ग्लेशियर बताए जाते हैं, लेकिन प्रमुख ग्लेशियर में अगर देखा जाए तो चौराबाड़ी, गंगोत्री, पिंडारी, बंदरपूंछ और मिलम जैसे ग्लेशियर का नाम सबसे ऊपर आता है फिलहाल उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र इस बात को लेकर रिसर्च कर रहा है कि आखिर किस तरह से ग्लेशियर के साथ होने वाली घटनाओं को देखा जा सकता है साथ ही ग्लेशियर से पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है उत्तराखंड में दूसरे ग्लेशियर भी है जो छोटे ग्लेशियर की श्रेणी में आते है जैसे दूनागिरी, कफनी , काली, हीरामणि नामिक सुखराम जैसे ग्लेशियर भी उत्तराखंड के चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जैसे जिलों में है.

रालम ग्लेशियर पिथौरागढ़ के मुनिस्यारी तहसील में मौजूद है और इस ग्लेशियर के चारों तरफ जिस तरह की खूबसूरती देखने को मिलती है वह सालों से  सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है  इसी तरह से सुंदरडूंगा ग्लेशियर भी है जो बहुत खूबसूरत है फिलहाल अब  भू वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदो की नजर इन्हीं ग्लेशियर पर है और इन में होने वाली हलचल पर है और ग्लेशियर की स्थिति पर है क्या ग्लेशियर घट रहे है या फिर ग्लेशियर अपना विस्तार कर रहे है इस तरह से देखा जाय तो ग्लेशियर हमारी नदियां के लिए प्राण है जिनकी स्थिति से हम नदियां की हलचल को आसानी से समझ सकते है साथ ही पर्यावरण की स्थिति को भी आसानी से जान सकते है ग्लेशियर हमारे जीवन के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योकिं ग्लेशियर की वजह से नदियां का आस्तित्व जिंदा है

अगर इस तरह से देखा जाय तो  उत्तराखंड हिमालय की गोद में बसा एक ऐसा प्रदेश है जो छोटा होने के बाद भी बहुत ही संवेदनशील और पर्यावरण के नजरिए से काफी महत्वपूर्ण भी है हिमालय की हलचल देश के दूसरे राज्यों पर भी अपना प्रभाव डाल सकती हैं चाहे वह पर्यावरण का क्षेत्र हो, चाहे वह कोई और क्षेत्र हो इसके मद्देनजर जिस तरह से उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने प्रदेश के सभी ग्लेशियर का अध्ययन कर रहा है यकीनन यह आने वाले दिनों में काफी महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि ग्लेशियर की सही जानकारी और उनके अंदर में होने वाली हलचल  अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है  जिस तरह से ग्लेशियर को स्टडी किया जा रहा है यह  रिपोर्ट सरकार और पर्यावरणविदो के लिए फायदेमंद हो सकती है कि ग्लेशियर में होने वाली हलचल और तूफान को आने से पहले ही भविष्यवाणी भी संभव हो सकेगी  फिलहाल अभी रिपोर्ट के आने के लिए कुछ और दिनों तक इंतजार करना पडेंगा फिर यह तस्वीर साफ हो जायेगी कि ग्लेशियर की स्थिति कैसी है.

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