लगातार खतरनाक होता जा रहा है भीम पुल से केदारनाथ तक का रास्ता
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लगातार खतरनाक होता जा रहा है भीम पुल से केदारनाथ तक का रास्ता

वाडिया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने इस मार्ग का अध्ययन कर इस रास्ते को खतरनाक बताते हुए नया रास्ता बनाने का सुझाव दिया है. वास्तव में गौरीकुंड से केदारनाथ तक के रास्ते में लिंचोली के पास बड़े-बड़े पत्थर गिर रहे हैं.

हिमालयी क्षेत्र में काम करने वाले देश के जाने माने वाडिया इंस्टिट्यूट ने भी इस पर अपनी कई रिपोर्ट प्रशासन और शासन को सौंपी हैं.

देहरादून: केदारनाथ पैदल मार्ग पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं. गौरीकुंड से भक्त पैदल यात्रा कर केदारनाथ धाम तक पहुंचते हैं, लेकिन भीम पुल से केदारनाथ तक का रास्ता लगातार खतरनाक होता जा रहा है. वाडिया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने इस मार्ग का अध्ययन कर इस रास्ते को खतरनाक बताते हुए नया रास्ता बनाने का सुझाव दिया है. वास्तव में गौरीकुंड से केदारनाथ तक के रास्ते में लिंचोली के पास बड़े-बड़े पत्थर गिर रहे हैं. इस रास्ते में भारी पत्थर आने के कारण कई यात्रियों की मौक हो चुकी है और कई घायल हुए हैं. 

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केदारनाथ धाम तक पैदल पहुंचना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. पैदल रस्ते में लगातार पत्थर गिरने से समस्या बढ़ती जा रही है. जिला प्रशाशन और आपदा प्रबंधन विभाग इस पैदल रास्ते को लेकर लगातार भू वैज्ञानिकों के सम्पर्क में हैं. 2013 से लेकर अब तक जो भी अध्ययन इस रास्ते को लेकर हुए उनमे इसे खतरनाक बताया गया है. 

हिमालयी क्षेत्र में काम करने वाले देश के जाने माने वाडिया इंस्टिट्यूट ने भी इस पर अपनी कई रिपोर्ट प्रशासन और शासन को सौंपी हैं. हाल ही में जब लिंचोली से पत्थर गिरने शुरू हुए तो एक अध्ययन फिर किया गया. वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के जाने माने वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये रास्ता लगातार खतरनाक होता जा रहा है और सुरक्षित केदारनाथ यात्रा के लिए एक नए रास्ते के की तलाश करनी चाहिए. 

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2013 की भीषण तबाही के बाद दूसरा क्षेत्र विकसित किया गया. ये वो क्षेत्र है जिसके रास्ते में 10 एवलॉन्च सक्रिय हैं. सर्दियों में यहां बर्फ गिरती है. और मार्च तक एवलॉन्च टूटकर केदारनाथ के पैदल रास्ते में आ जाते हैं. इसलिए हर साल यात्रा से पहले 9 से 10 फ़ीट तक इस बर्फ को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है. डॉ डोभाल आगे कहते हैं जिस रास्ते से होकर पैदल यात्रा चल रही है वो पहाड़ का झुकाव 70-80 डिग्री का है. ऐसे में जब कोई भी बड़ा पत्थर या मलबा गिरता  है तो वो काफी तेजी से गिरता है. ऐसे में जब भी बर्फ या बारिश होगी तो मलबा और पत्थर तेजी से गिरने की आशंका होगी. 

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वास्तव में 2013 की आपदा में  रामबाड़ा पूरी तरह से तबाह हो गया था. रामबाड़ा से आगे पैदल पहुंचने के लिए एक दूसरे रास्ते की आवश्यकता थी. इसलिए भीमबली से मंदाकिनी नदी पर पुल बनाकर दूसरे पहाड़ से रास्ता निकाला गया. वैज्ञानिक मानते हैं कि करीब 20 हज़ार साल पहले तक ग्लेशियर्स रामबाड़ा तक था. लेकिन धीरे-धीरे ग्लेशियर्स पीछे खिसका और वहां ग्लेशियर्स से लाया मलबा पूरी तरह सेटल हो गया. 

 उसमे पेड़ पौधे उग गए. लिहाज़ा वो क्षेत्र तुलनात्मक रूप से मजबूत हो गया. वाडिया के वैज्ञानिक का सुझाव है कि इस पुराने रास्ते को फिर से शुरू करने के लिए सोचा जाना चाहिए. इसके लिए उनके पास एक योजना भी है. हलाकि कई दूसरे वैज्ञानिक वाडिया के वैज्ञानिकों की सोच से अलग राय रखते हैं. उत्तराखंड कौंसिल ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (ucost) महानिदेशक डॉ राजेंद्र डोभाल कहते हैं कि ये पूरा क्षेत्र संवेदनशील है. कोई नया रास्ता बनाना सम्भव तो है लेकिन  नए रास्ते में कोई समस्या नहीं होगी ये कोई स्पष्ट रूप से नहीं कह सकता. 

केदारनाथ धाम तक पैदल पहुंचने के लिए शिव शंकर हमेशा ही अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं. देखना ये है कि आने वाले दिनों में कोई  नया मार्ग बनता है या भक्तों को इसी कठिन मार्ग से अपने बाबा के दर्शन के लिए जाना होगा.  

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