जानिए उस शारदा एक्ट के बारे में जिसमें तय हुई थी लड़का-लड़की की शादी की उम्र
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जानिए उस शारदा एक्ट के बारे में जिसमें तय हुई थी लड़का-लड़की की शादी की उम्र

शादी-विवाह का सीजन शुरू हो चुका है. 20वीं सदी में शादी-ब्याह करना-कराना जितना आसान हो गया है, पहले ऐसा नहीं था. आज के दौर में लड़कों की शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है, जबकि लड़कियों की शादी की उम्र सीमा फिलहाल 18 वर्ष है.

प्रतीकात्मक फोटो

ददन विश्वकर्मा/नई दिल्ली: शादी-विवाह का सीजन शुरू हो चुका है. 20वीं सदी में शादी-ब्याह करना-कराना जितना आसान हो गया है, पहले ऐसा नहीं था. आज के दौर में लड़कों की शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है, जबकि लड़कियों की शादी की उम्र सीमा फिलहाल 18 वर्ष है. हालांकि इसमें बदलाव के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने कुछ संकेत दिए हैं. सरकार चाहती है कि बेटियों की शादी की उम्र भी 21 वर्ष हो. हालांकि इस नए अधिनियम पर मुहर कब लगेगी, ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा. लेकिन क्या आपको पता है पहले शादी की उम्र क्या थी?

अगर इतिहास में हम झांकेंगे तो पाएंगे कि हमारे देश में शादी-विवाह को लेकर बहुत सारी कुप्रथाएं थीं. इतना ही नहीं कभी-कभी तो गर्भ में पल रहे बच्चों की भी शादी समाज वाले तय कर देते थे. इसके अलावा देश में बहुत छोटी उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी. जिसमें बदलाव लाने के लिए एक कानून लाया गया और इस कानून ने तमाम लड़कियों की जिंदगी बचाई.

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फूलमणि दास जिसकी सबसे कम उम्र में हुई थी शादी
इसे समझने के लिए सन 1890 का फूलमणि दास और हरिमोहन मैती का केस आपको समझना होगा. दरअसल, 10 साल की फूलमणि दास की शादी उससे उम्र में 3 गुना बड़े हरिमोहन मैती से कर दी गई थी. शादी के कुछ दिन बाद ही फूलमणि की मौत हो गई थी. शादी के बाद का दर्द वह सह नहीं सकी थी. हालांकि हरिमोहन मैती पर रेप का चार्ज नहीं लगा था, क्योंकि फूलमणि उसकी पत्नी थी. पत्नी के साथ संबंध बनाना बलात्कार नहीं था. इतना ही नहीं तब तक शादी के लिए कोई न्यूनतम उम्र तय नहीं की गई थी.

सबसे पहले 12 साल तय हुई लड़कियों की शादी की उम्र
फूलमणि दास की मौत के बाद ब्रिटिश सरकार ने हस्तक्षेप करके कानून बनवाया. इसे 'एज ऑफ कंसेंट एक्ट', कहा गया, जो 1891 में पारित हुआ था. इसमें शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए लड़कियों की सहमति की उम्र (यानी एज ऑफ कंसेंट) को 12 साल कर दिया गया था.

फूलमणि दास की मौत से भी नहीं बदला कुछ
हालांकि इससे पहले भी इस तरह के कई मामले हुए थे, लेकिन फूलमणि मामले ने कानून बनाने की प्रक्रिया तेज़ कर दी. पंडिता रमाबाई, आनंदी गोपाल जोशी जैसी उस समय की क्रांतिकारी महिलाओं ने इसका समर्थन किया था. जबकि बाल गंगाधर तिलक ने इस कानून का पुरजोर विरोध करते हुए ये कहा था कि ये हमारी संस्कृति में दखल है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

1929 में आया चाइल्ड मैरिज रीस्ट्रेंट एक्ट
इसके बाद साल 1929 में 'चाइल्ड मैरिज रीस्ट्रेंट एक्ट' पास हुआ. इसे शारदा एक्ट कहा गया, क्योंकि 1927 में इसे राय साहिब हरबिलास सारडा ने इंट्रोड्यूस किया था. एक्ट में पहले लड़की की शादी के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष रखी गई और लड़कों के लिए 18 वर्ष. 1 अप्रैल 1930 को ये कानून पूरे ब्रिटिश भारत में लागू हो गया. हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं ने मिलकर इसे पास कराने की मांग की. हालांकि हिंदूवादी संस्कृति पर इसे कुठाराघात बताते इसका काफी विरोध भी हुआ, लेकिन हर धर्म की महिलाओं ने इस कानून को पारित कराने के लिए लड़ाइयां लड़ीं और प्रदर्शन भी किया.

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2006 में बदला गया शारदा एक्ट
किसी तरह से बिल पास हो गया, लेकिन ब्रिटिश भारत में इससे कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिखा. ब्रिटिश सरकार भी उस वक़्त सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी. हालांकि बाद में इसमें बदलाव किए गए और लड़की के लिए शादी की उम्र 18 वर्ष की गई और लड़के की 21 वर्ष. साल 2006 में भारत सरकार ने शारदा एक्ट को रिप्लेस करते हुए नया एक्ट पास किया, जिसका नाम था बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006. अभी देश में यही कानून चल रहा है.

किसी को धर्म के आधार पर छूट है?
इसका सीधा सा जवाब है नहीं. क्योंकि इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872, पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1936, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, और हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, सभी के अनुसार शादी करने के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष होनी चाहिए. इसमें धर्म के हिसाब से कोई बदलाव या छूट नहीं दी गई है.

इसे न मानने पर क्या सजा भी हो सकती है?
बिल्कुल. देश में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू है. इसके आधार पर 21 साल और 18 साल से पहले की शादी को बाल विवाह माना जाएगा. तय उम्र से कम में शादी करने और करवाने पर दो साल की जेल या एक लाख तक का जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है. यह सजा भी सभी धर्मों को मानने वालों के लिए हैं.

क्या लड़कों की उम्र भी हो सकती है कम?
नहीं. हालांकि 31 अगस्त, 2018 को लॉ कमीशन ने 'परिवार क़ानून में सुधार' को लेकर पर एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया था. जिसमें कहा गया था कि 'अगर वोट डालने की उम्र 18 साल तय कर दी गई है, जिसमें नागरिक अपनी सरकार चुन सकते हैं, तो उसी उम्र को शादी की उम्र भी मान लेना चाहिए'. हालांकि इसके पीछे तर्क दिया गया Indian Majority Act, 1875 का. इस एक्ट के मुताबिक बालिक होने की उम्र 18 साल है.

जब 19 साल के लड़की-लड़की पहुंच गए थे कोर्ट
शादी उम्र सीमा तय होने के बाद भी इसको लेकर कभी-कभी विवाद की स्थिति आती रही है. साल 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट में एक मामला पहुंचा था. 19 साल के लड़का और लड़की शादी के लिए अर्जी दी थी, उन्होंने कोर्ट से कहा था कि वो दोनों बालिग हैं और शादी करना चाहते हैं, घरवालों उन्हें ऐसा करने से मना कर रहे हैं. उनकी इस याचिका में कहा गया कि पुरुषों की शादी की उम्र भी घटा देनी चाहिए. हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने दोनों को सुरक्षा तो दी, लेकिन उम्र वाले मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था.

उम्र का बंधन क्या सिर्फ हमारे देश में ही है?
जी नहीं, दुनियाभर में 140 से ज्यादा देशों में शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है. इनमें अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे, स्वीडन, नीदरलैंड, ब्राजील, रूस, साउथ अफ्रीका, सिंगापुर, श्रीलंका और यूएई सहित दुनिया के कुल 143 हैं जहां लड़कियों की न्यूनतम उम्र 18 साल है. वहीं ​ईरान में 13 साल, लेबनान में 9 साल और सूडान में युवावस्था की शुरुआत लड़कियों की शादी न्यूनतम उम्र है. वहीं चाड और कुवैत में 15 साल की उम्र पार कर लेने के बाद लड़कियों की शादी कर दी जाती है. अफगानिस्तान, बहरीन, पाकिस्तान, कतर और यूके समेत दुनिया के सात देशों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 16 साल है. वहीं नॉर्थ कोरिया, सीरिया और उज्बेकिस्तान में शादी की न्यूनतम उम्र 17 साल है. हालांकि यमन, जिबूती और सऊदी अरब में शादी की कोई तय उम्र नहीं है. वहीं इंडोनेशिया, नाइजीरिया जैसे 20 देशों में न्यूनतम लड़का-लड़की की शादी उम्र 21 साल है.

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देश में क्या कुछ बदला इस दौरान?
अगस्त 2019 में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी किया. मामला था लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष से 21 वर्ष करने का. फिर इस मुद्दे पर दोबारा बहस शुरू हुई. अब कमिटी की रिपोर्ट के बाद इस पर विचार किया जाएगा कि इस पर क्या कदम उठाए जाने चाहिए. सरकार द्वारा बनाई गई इस कमिटी को लीड कर रही हैं जया जेटली. ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, इस कमिटी को अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई 2020 तक सरकार को सबमिट करनी थी, जो कि अब तक नहीं हुई है.

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