कैराना उपचुनाव : तबस्सुम हसन बनीं उत्तर प्रदेश की पहली मुस्लिम सांसद
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand405760

कैराना उपचुनाव : तबस्सुम हसन बनीं उत्तर प्रदेश की पहली मुस्लिम सांसद

तबस्सुम की जीत के साथ ही संसद में मुस्लिम सांसदों की संख्या 23 हो गई है. यह पहला मौका है जब देश की संसद में इतने कम मुस्लिम सांसद रहे हों.  

कैराना में आरएलडी-सपा के गठबंधन को कांग्रेस, बीएसपी और आम आदमी पार्टी ने भी समर्थन दिया था

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीत के साथ आरएलडी-सपा गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम हसन 16वीं लोकसभा में इस राज्य से पहली मुस्लिम सांसद बन गई हैं. उनकी इस जीत के साथ ही संसद में मुस्लिम सांसदों की संख्या 23 हो गई है. यह पहला मौका है जब देश की संसद में इतने कम मुस्लिम सांसद रहे हों.  

गोरखपुर और फूलपुर जैसी प्रतिष्ठापूर्ण सीटों पर हाल में हुए उपचुनाव में सपा के हाथों मिली पराजय के बाद हुए कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भी सत्तारूढ़ बीजेपी को झटका लगा है. मुस्लिम और दलित बहुल कैराना सीट पर रालोद-सपा गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी की मृगांका सिंह को 44,618 मतों से पराजित किया. इस तरह 16वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश से वह पहली मुस्लिम सांसद भी बन गई हैं. 

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 71 सीटें जीती थीं, जबकि उसके सहयोगी अपना दल को 2 सीटें मिली थीं. उस चुनाव में इस सूबे से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीत सका था. इससे पहले वर्ष 2009 में कैराना से ही बीएसपी की सांसद रह चुकीं तबस्सुम ने अपनी इस विजय के लिए आरएलडी, सपा, बीएसपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं का शुक्रिया अदा किया. 

यह भी पढ़ें- कैराना में BJP का किला 'दरका', हार के ये रहे 5 कारण

उन्होंने इसे कैराना की जनता और खासकर किसानों की जीत करार देते हुए कहा कि बीजेपी ने विकास के बजाय असल मसलों से भटकाने वाले मुद्दे उछाले, लेकिन उसका यह दांव उल्टा पड़ गया. तबस्सुम ने उपचुनाव से एक दिन पहले बागपत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बारे में कहा कि अब मोदी के आने का कोई असर नहीं होगा. उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर 2019 में उन्हें धूल चटाएंगे. 

मालूम हो कि वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर और राजनीतिक रूप से खासा दबदबा रखने वाले मुनव्वर हसन के परिवार में वोटों के बंटवारे के बीच बीजेपी के हुकुम सिंह ने कैराना लोकसभा सीट जीती थी, लेकिन सिंह के निधन के बाद यह सीट रिक्त हुई थी. कैराना लोकसभा क्षेत्र में लगभग 17 लाख मतदाता हैं. इनमें 3 लाख मुसलमान, लगभग चार लाख पिछड़े और करीब डेढ़ लाख वोट जाटव दलितों के हैं, जो बीएसपी का परम्परागत वोट बैंक माना जाता है. यहां यादव मतदाताओं की संख्या कम है. ऐसे में यहां दलित और मुस्लिम मतदाता खासे महत्वपूर्ण हो जाते हैं. 

यह भी पढ़े- कैराना में बीजेपी की हार पर बोले जयंत चौधरी, 'जिन्ना हार गया, गन्ना जीत गया'

इस क्षेत्र में हसन परिवार का खासा राजनीतिक दबदबा माना जाता रहा है. वर्ष 1996 में इस सीट से सपा के टिकट पर सांसद चुने गए मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम बेगम वर्ष 2009 में इस सीट से संसद जा चुकी हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस परिवार में टूट हुई थी. तब मुनव्वर के बेटे नाहीद हसन सपा के टिकट पर और उनके चाचा कंवर हसन बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे, मगर दोनों को पराजय का सामना करना पड़ा था. हालांकि नाहीद दूसरे स्थान पर रहे थे.

इस सीट पर आरएलडी का भी दबदबा रहा है और 1999 तथा 2004 के लोकसभा चुनाव में उसके प्रत्याशी यहां से सांसद रह चुके हैं. आरएलडी ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष का साथ दिया था. कैराना में सपा, बीएसपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी तथा अन्य कई विपक्षी दलों ने आरएलडी प्रत्याशी का सहयोग किया था.

बीजेपी ने करीब दो साल पहले कैराना से पलायन का मुद्दा उठाया था. बीजेपी ने पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में इसे एक अहम मुद्दे के तौर पर शामिल किया था, लेकिन वह बीजेपी के लिए फलीभूत नहीं हुआ था और कैराना विधानसभा सीट से हुकुम सिंह की बेटी बीजेपी प्रत्याशी मृगांका सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा था.

कैराना लोकसभा सीट पिछले करीब दो दशकों से अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है. वर्ष 1996 में सपा, 1998 में बीजेपी, 1999 और 2004 में आरएलडी, 2009 में बीएसपी और 2014 में बीजेपी का इस पर कब्जा रहा. अब यह सीट फिर आरएलडी की झोली में जा चुकी है.

(इनपुट भाषा से)

Trending news