Kumaoni Raita: भारतीय घरों में भोजन का आवश्यक अंग रायता है. शादी-विवाह, तेरहवीं-बरसी, नामकरण-जन्मदिन, पूजा-कथा या फिर बीस-तीस या उससे अधिक लोगों के आने की गुंजायश वाले सार्वजनिक कार्यक्रम में रायता बनाना जरूरी ही समझो. कई घरों में भी नियमित रूप से रायता सेवन होता है, खासकर गर्मियों में तो जरूर. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

चटोरे पहाड़ियों की सबसे बड़ी कमजोरी है भांग की चटनी, क्या आपने चखा है इसका स्वाद?


वैसे तो रायता आमतौर पर पहाड़ के हर घर में बनता है, लेकिन कुमाऊंनी रायते की बात ही निराली है. खास टेस्ट होने के कारण कुमाऊंनी रायता गढ़वाल-कुमाऊं में समान रूप से पसंद किया जाता है. गढ़वाल में इसे 'रैलू' कहते हैं. चलिए हम भी कुमाऊंनी के इस रायते के बारे में जानते हैं.


रायते का मूल घटक पहाड़ी काखड़ी 
कुमाऊंनी रायते ने अपना यह विशिष्ट स्वरूप इस अंचल की जलवायु व तापमान के कारण ग्रहण किया है. इस रायते का मूल घटक पहाड़ी काखड़ी (ककड़ी) है. यह काखड़ी बरसात के दिनों में ही पैदा होना शुरू होती है और बरसात के साथ ही पहाड़ में तापमान गिरकर ठंड भी पड़नी शुरू हो जाती है. 


वैसे कहा जाता है कि दही और उससे बने पदार्थ तासीर में ठंडे होते हैं. अब पहाड़ी काखड़ी से बने लजीज रायते को भी खाना है और इसकी ठंडी तासीर को भी बेअसर करना है तो इसका तोड़ भी निकाला गया है. वो ये कि राई के दानों, हरी मिर्च और हल्दी से. 


‘बाल मिठाई’ को देखकर मुंह में आ जाता है पानी, अंग्रेज भी करते थे पसंद, जानिए इसका इतिहास!


ऐसा माना जाता है कि राई व हरी मिर्च दोनों ही अपनी प्रकृति में उष्ण हैं तो शीत प्रकृति वाले दही व काखड़ी में इन दोनों के मिलते ही शीतोष्ण का संतुलन स्थापित हो गया. इसमें एंटी बैक्टीरियल का काम किया हल्दी ने और इस तरह अस्तित्व में आया दुनिया का बेमिसाल रायता. जो खट्टा भी है, अनूठी खुशबू से भरा भी और तीखा भी. 


ऐसे बनता है कुमाऊंनी रायता 
कुमाऊंनी रायता बनाने के लिए मिट्टी या लकड़ी के पारंपरिक बर्तन में दो-एक दिन पहले राई या सरसों के बीजों का पाउडर मिलाकर दही जमाने के लिए रख दी जाती है. इस तरह दही को जमाने से जोरदार रासायनिक क्रिया होती है. दही जमने के बाद उसमें कद्दूकस की हुई ककड़ी या काकड़ी डालकर जरूरत के हिसाब से नमक, मिर्च और मसाले मिक्स कर लेते हैं. साथ ही राई और जंबू का छौंका भी लगा लिया जाता है. तो लो हो गया तैयार. वैसे पहाड़ पर लोग इसे अपने-अपने हिसाब से भी बनाते हैं.


उत्तराखंड का जायका: कभी खाए हैं ‘जखिया’ तड़के के साथ आलू के गुटके, कुमाऊं का ऐसा स्वाद जो हमेशा रहेगा याद


चिरमिरी महक के क्या कहने 


कुमाऊंनी रायते में एक खास किस्म की चिरमिरी महक होती है. राई और सरसों के दानों की इस महक को आप कभी भूल नहीं पाओगे. इस रायते को घरों में नाश्ते के साथ विशेष रूप से खाया जाता है. इसमें शुद्ध देसी राई की सनसनाहट होती है. छाछ के माखन कि खटास,और पहाड़ी पकी हुई ककड़ी का स्वाद, अच्छे अच्छे लोगों के मुंह से पानी निकाल देता है.


इगलास की मशहूर 'चमचम' के स्वाद के आगे फीके सब पकवान, आजादी से पहले शुरू हुई थी दुकान


अपनी-अपनी परंपरा 
कुमाऊं में रायता शादी-समारोह में विशेष रूप से परोसा जाता है, जबकि गढ़वाल में पितृपक्ष के दौरान रायता खाने की परंपरा है. हालांकि, इसके स्वाद को देखते हुए अब हर मौके पर रायता खाने का हिस्सा बनने लगा है. कुमाऊंनी लोगों को रायता बहुत पसंद होता है. कुमाऊं मण्डल के मेलो में,तथा बाजारों में खीरे का रायता बहुत आसानी से मिल जाता है.


पहाड़ों में बुजुर्ग लोग बताते हैं, अगर कुमाऊनी रायते का असली स्वाद लेना है तो, इसको बना के 2 घंटे के लिए ढक कर रख दें. इसके बाद इसकी सनसनाहट सिर चढ़ती है. मतलब ये कि बनाने के बाद रायता जितना पुराना होता जाएगा, राई उसपे उतना ज्यादा असर छोड़ देती है.


नवाब वाजिद अली शाह की पान की लत छुड़ाने के लिए बनाई गई थी 'मलाई गिलौरी', स्वाद मखमली


उरई रेलवे स्टेशन पर मिलने वाले लजीज गुलाब जामुन का नहीं है कोई जवाब, अटल जी भी थे स्वाद के कायल


WATCH LIVE TV