कई लोग अश्वत्थामा की सफेद छवि देखने का दावा कर चुके हैं. देखने वाले बताते हैं कि छवि काफी विशालकाय है.
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लखनऊ: महाभारत खत्म हो गया. कौरव खेमे के सभी वीर मारे गए. पांडव ने विजय हासिल कर ली. लेकिन गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा (Ashwatthama) जीवित रह गए. क्योंकि उनके पास अमृत की मणि थी. वे आज भी जिंदा हैं. लेकिन सवाल है कि कहां? दरअसल, मान्यता है कि कलियुग में अश्वस्थामा कानपुर (Kanpur) में गंगा किनारे रहते हैं. खास बात है कि रोज सुबह वे खेरेश्वर मंदिर (Khereshwar Temple) पर जाकर भगवान शिव की पूजा भी करते हैं.
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रोज सुबह अर्पित करते हैं सफेद फूल
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्थानीय लोग और पुजारी इस बात का जिक्र करते हैं कि मंदिर पर रोज सुबह सफेद फूल अर्पित मिलता है. दरअसल, बताया जाता है कि बहुत समय पहले गंगा किनारे गायें एक स्थान पर खड़ी हो जाती थीं. पुशपालक काफी परेशान चल रहे थे. फिर उस स्थान पर खुदवाई कराई गई, तो शिवलिंग मिला. जिसे उठाने की कोशिश की गई, लेकिन लोग हिला भी नहीं सके. इसके बाद गांव वालों ने मिलकर मंदिर का निर्माण करवाया. इसके बाद रोज सुबह दरवाजा खुलने से पहले शिवलिंग पर सफेद फूल अर्पित मिलते हैं.
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लोग करते हैं सफेद छवि देखने का दावा
मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि कई लोग सफेद छवि देखने का दावा कर चुके हैं. देखने वाले बताते हैं कि छवि काफी विशालकाय है. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इसके बाद बेहोश होने या सब कुछ भूल जाने का भी दावा करते हैं. हालांकि, ज़ी मीडिया इसकी पुष्टि नहीं करता है.
अश्वत्थामा का जन्म स्थल है खेरेश्वर
बताया जाता है कि सतयुग के समय से शिवलिंग मौजूद है. द्वापर युग में गुरु द्रोणाच्राय का आश्रम यहीं हुआ करता था. वह खेरेश्वर के शिव की पूजा अर्चना किया करते थे. अश्वत्थामा का जन्म भी यहीं हुआ था. ऐसे में वह कृष्ण से मिले श्राप के बाद आज भी यहीं रहते हैं.
नागपंचमी और शिवरात्री के दिन होती है रौनक
कानपुर के इस मंदिर में वैसे तो पूरे साल स्थानीय लोग दर्शन के लिए आते रहते हैं. लेकिन नागपंचमी और महाशिवरात्री को मंदिर में अलग ही रौनक रहती है. नांग पंचमी वाले दिन मंदिर को नागों से सजाया जाता है. लोग नागों को दूध पिलाकर मन्नत मांगते हैं. वहीं, शिवरात्री के दिन भी मंदिर पर उत्सव का माहौल होता है.
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