नवरात्रि में 9 शक्ति पीठों की कहानी: यहां महालक्ष्मी जी के चरणों में खुद सूर्य करते हैं प्रणाम
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नवरात्रि में 9 शक्ति पीठों की कहानी: यहां महालक्ष्मी जी के चरणों में खुद सूर्य करते हैं प्रणाम

नवरात्रि के पावन दिनों में zeeupuk आपके लिए लाया है हर रोज एक शक्तिपीठ की कहानी. आज  नवरात्रि का दूसरा दिन हैं. आज हम आपको बताएंगे कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर शक्तिपीठ के बारे में. यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है. आप भी देखिए भक्ति और आराधना से भरा ये Video और जानें इस शक्तिपीठ के बारे में अनसुनी  बातें...

नवरात्रि में 9 शक्ति पीठों की कहानी: यहां महालक्ष्मी जी के चरणों में खुद सूर्य करते हैं प्रणाम

मां दुर्गा  के उपासकों को चैत्र नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार रहता है. ये पर्व इसलिए भी खास है क्योंकि पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा की उपासना का उत्सव मनाया जाता है. इस साल शक्ति की उपासना का ये पर्व यानी चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से शुरू हो गया है जोर 21 अप्रैल तक चलेगा. नवरात्रि के आरंभ के साथ ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत भी हो गई. 

इस साल चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा देवी का आगमन घोड़े पर हुआ. जबकि देवी का प्रस्थान कंधे पर होगा. हम नवरात्रि के इन नौ पावन दिनों में आपके लिए हर रोज मां के एक शक्तिपीठ के बारे में बताएंगे.कल हमने बात की मां के शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर के बारे जो कोलकाता में स्थित है. नवरात्रि के दूसरे दिन हम आपको बता रहे हैं मां भगवती के दूसरे शक्तिपीठ के बारे में. 

नवरात्रि में 9 शक्ति पीठों की कहानी- इस शक्तिपीठ में आने मात्र से जाग जाता है भाग्य

दूसरा शक्तिपीठ महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में मौजूद 51 शक्तिपीठों में से कोल्हापुर भी एक शक्तिपीठ है. इस मन्दिर में माता सती का त्रिनेत्र गिरा था जिसके कारण ये शक्तिपीठ कहलाता है. नवरात्रि के समय यहां 9 दिनों तक पूजा होती है. महालक्ष्मी मंदिर का उल्लेख पुराणों में मिलता है. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से यहां आकर मां महालक्ष्मी से मन्नत मांगता है वो जरूर पूरी होती है. ऐसा माना जाता है कि यहां श्री महालक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ निवास करती हैं.

यहां गिरा था मां सती का ‘त्रिनेत्र’
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 700 ईसवीं में कन्नड़ के चालुक्य साम्राज्य के समय में किया गया था. यहां मां सती का ‘त्रिनेत्र’गिरा था. यहां की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं. यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है. पांच नदियों के संगम-पंचगंगा नदी तट पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है.

भारतीय कला की मिसाल
ये मंदिर काले पत्थरों पर कमाल की नक्काशी हजारों साल पुराने भारतीय स्थापत्य की अद्भुत नमूना है. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में महालक्ष्मी हैं. देवी अपने चारों हाथों में अमूल्य वस्तुएं धारण किये हुए हैं. उनके दाएं और बाएं 2 अलग गर्भग्रहों में  महाकाली और महासरस्वती के  विग्रह हैं. मंदिर की दीवार में श्री यंत्र को पत्थर पर खोद कर बनाया गया है.

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महालक्ष्मी की मूर्ती 2000 साल से ज्यादा पुरानी
महालक्ष्मी की 2 फीट 9 इंज ऊंची मूर्ति 2000 साल से ज्यादा पुरानी बताई जाती है. मूर्ति में महालक्ष्मी की चार भुजाएं हैं. इनमें महालक्ष्मी मेतलवार, गदा, ढाल आदि शस्त्र हैं. उनके सिर पर गहनों से सजा मुकुट है जिसका वजन करीब 40 किलो है. इनके मस्तक पर शिवलिंग, नाग और पीछे शेर हैं. महालक्ष्मी की पालकी सोने की है. कहते हैं इसमें 26 किलो सोना लगा हुआ है. हर नवरात्रि के समय माताजी की शोभा यात्रा कोल्हापुर शहर में निकाली जाती है.

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महालक्ष्मी जी के चरणों में खुद सूर्य देवता करते हैं प्रणाम
मंदिर की खास बात यह है कि यहां महालक्ष्मी जी के चरणों में खुद सूर्य देवता प्रणाम करते हैं.  दरअसल यहां पश्चिमी दीवार पर एक खिड़की बनी हुई है.  जिसके चलते मार्च और सितंबर के महीने की 21 तारीख के आसपास तीन दिनों तक सूर्य की किरणें देवी के चरणों को प्रणाम करती है. ये मंदिर इस मायने में भी दूसरे मंदिरों से अलग है कि जहां अन्य हिंदू मंदिरों में देवी पूरब या उत्तर दिशा की ओर देखते हुए मिलती हैं वहीं इस मंदिर में महालक्ष्मी पश्चिम दिशा की ओर देख रही हैं.

मंदिर में महालक्ष्मी के अलावा नवग्रहों, दुर्गा माता, सूर्य नारायण, भगवान शिव, भगवान विष्णु, विट्ठल रखमाई, तुलजा भवानी आदि देवी देवताओं की मूर्तियां भी हैं. मंदिर परिसर में स्थित मणिकर्णिका कुंड के तट पर विश्वेश्वर महादेव मंदिर की भी काफी प्रसिद्धि है.

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हाल ही में ये मंदिर तब चर्चा के केंद्र में आया जब यहां अकूत खजाने के बारे में पता लगा. 900 साल पुराने इस मंदिर में सोने के बेशुमार गहने निकले जिनकी कीमत का आकलन दो सप्ताह तक चला. इसके बाद सारे खजाने का बीमा कराया गया. इस बेशकीमती मंदिर की सुरक्षा बेहद कड़ी रहती है और पूरा परिसर सीसीटीवी कैमरों के नजर में रहता है. माना जाता है कि मंदिर में जो अकूत खजाना मिला है उसे चढ़ाने वालों में कोंकण के राजाओं, चालुक्य राजाओं, आदिल शाह, शिवाजी और उनकी मां जीजाबाई शामिल हैं.

पहले नहीं थी महिलाओं को प्रवेश की इजाजत
मंदिर में पहले सिर्फ पुरुषों को ही जाने की इजाजत थी लेकिन काफी संघर्ष के बाद आखिरकार इसमें महिलाओं को भी जाने की इजाजत मिली. पहले तो मंदिर के पुजारी इसके विरोध में थे लेकिन महिलाओं के बढ़ते विरोध और राज्य सरकार के दखल के बाद महिलाओं ने गर्भगृह में प्रवेश कर महालक्ष्मी की पूजा कर महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया.

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देवी दुर्गा के नौ रूप है- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री है. शास्त्रों में उल्लेख आता है कि जहां-जहां माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां  शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. आप में से अधिकांश लोग माता के शक्तिपीठों का दर्शन कर चुके होंगे या पुराणों आदि के जरिए परिचित होंगे. कुछ लोगों ने नवरात्रि में या इसके बाद वहां दर्शन, अर्चना करके अपनी मनौती मांगी होगी. आइए जानते हैं नवरात्रि में नौ शक्तिपीठों के बारे में...सबसे पहले जानते हैं कि शक्तिपीठ किसको कहते हैं...

शक्तिपीठ क्या है?
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि जहां-जहां माता के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया. ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित है. देवी भागवत के अनुसार शक्तिपीठों की स्थापना के लिए शिव स्वयं भू-लोक में आए थे. दानवों से शक्तिपिंडों की रक्षा के लिए अपने विभिन्न रूद्र अवतारों को जिम्मा दिया. सभी पीठों में शिव रूद्र भैरव के रूपों में पूजे जाते हैं. इन पीठों में कुछ तंत्र साधना के मुख्य केंद्र हैं. नवरात्रों में शक्तिपीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है और जो उपासक इन शक्तिपीठों पर नहीं पहुंच पाते, वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं.

क्‍यों कहते हैं शक्तिपीठ
हिंदू धर्म के अनुसार शक्तिपीठ यानी वो पवित्र जगह जहां पर देवी के 51 अंगों के टुकड़े गिरे थे. ये शक्तिपीठ भारत के अलावा, बांग्‍लादेश, पाकिस्‍तान, चीन, श्रीलंका और नेपाल में फैले हुए हैं. जी हां, चीन के कब्‍जे वाले तिब्‍बत में एक शक्तिपीठ है. एक तो बलूचिस्‍तान में भी है.

अगले अंक में हम आपको दूसरे शक्तिपीठ और उसके महत्व के बार में  बात करेंगे

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