पहले लोग सूर्य की अलग-अलग अवस्थाएं देखकर भी सुबह, दोपहर और शाम का अनुमान लगाते थे. यही नहीं धूप के कारण पड़ने वाली किसी पेड़ या कोई स्थिर वस्तु की छाया से भी समय का अंदाजा लगाया जाता था. आइये डालते हैं एक नजर इनके इतिहास पर..
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Interesting Facts About watch: आज हम समय का अंदाज लगाने के लिए घड़ी का सहारा लेते हैं. आजकल लोग टाइम देखने के लिए मोबाइल का सहारा लेते हैं. प्राचीन काल में लोग धूप के जरिए समय का पता लगाते थे. फिर आई धूप घड़ी जिसके जरिए समय का अंदाज लगाया जाता था. पहले लोग टाइम का पता लगाने के लिए धूप घड़ी का इस्तेमाल करते थे.
पहले लोग सूर्य की अलग-अलग अवस्थाएं देखकर भी सुबह, दोपहर और शाम का अनुमान लगाते थे. यही नहीं धूप के कारण पड़ने वाली किसी पेड़ या कोई स्थिर वस्तु की छाया से भी समय का अंदाजा लगाया जाता था. रात के समय का ज्ञान नक्षत्रों से किया जाता था. उसके बाद धीरे-धीरे पानी व बालू से घड़ी बनाई जाने लगी. आइये डालते हैं एक नजर इनके इतिहास पर..
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एक दिन में 24 घंटे होते हैं. इस 24 घंटे में हम सब अपने काम को निर्धारित करते हैं. समय पर काम करने के लिए घड़ी की जरुरत होती है. घड़ी ही हमको समय बताती है, जिसके मुताबिक हम अपनी दिनचर्या निर्धारित करते हैं.
क्या आपने कभी सोचा है कि घड़ी के अंदर टाइम को देखने के लिए हम AM और PM को कैसे डिवाइड करते हैं. जानते हैं कि इसकी फुल फॉर्म क्या है और इसका क्या मतलब होता है. दरअसल इंसानों के टाइम मैनेजमेंट के लिए AM-PM का उपयोग करना शुरू किया गया था. ये शब्द लेटिन भाषा से बने हुए हैं.
AM की फुल फॉर्म (लेटिन भाषा) में ANTE MERIDIEM, इंग्लिश में BEFORE MIDDAY, हिंदी में दोपहर से पहले
PM की फुल फॉर्म (लेटिन भाषा) में POST MERIDIEM, इंग्लिश में AFTER MIDDAY, हिंदी में दोपहर के बाद
आइए जानते हैं कि घड़ी के बारे में कुछ खास बातों के बारे में. ..
ऐसे बनी पहली घड़ी पहली घड़ी
सन् 996 में पोप सिलवेस्टर सेकंड ने बनाई थी. यूरोप में घड़ियों का प्रयोग 13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में होने लगा. इंग्लैंड के वेस्टमिंस्टर के घंटाघर में सन् 1288 में तथा सेंट अल्बांस में सन् 1326 में घड़ियाँ लगाई गई थीं. डोवर कैसिल में सन् 1348 में लगाई गई घड़ी जब सन् 1876 ई. विज्ञान प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई थी, तो उस समय भी काम कर रही थी. जर्मनी के न्यूरमबर्ग शहर में पीटर हेनलेन ने ऐसी घड़ी बना ली थी जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकता था.
कई सिद्धांतों पर बनती हैं घड़ियां
जैसा की हम सब जानते हैं की घड़ी एक सिम्पल मशीन है जो पूरी तरह स्वचालित है और किसी न किसी तरह से वो हमे दिन का प्रहर बताती है. ये घड़ियां अलग अलग सिद्धांतों पर बनती हैं जैसे धूप घड़ी; यांत्रिक घड़ी और इलेक्ट्रॉनिक घड़ी.
इलेक्ट्रॉनिक घड़ी
पहले बाजारों में इलेक्ट्रॉनिक घड़ी बनाई जाती थी, इस घड़ी में सेल नहीं होते थे. ये घड़ी भी 24 घंटे सही टाइम बताती थी.
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जल घड़ी
जल घड़ी का आविष्कार चीन देशवासियों ने लगभग तीन हजार साल पहले किया था. इसके लिए एक पात्र में पानी भर दिया जाता और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था. उसके बाद किसी घड़ी के आधार पर बालू का उपयोग करते हुए टाइमर बनाया गया जो आज भी काफी लोकप्रिय है.
धूप की घड़ियां
धूप घड़ियों का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से होता आ रहा है जिनमें आकाश में सूर्य के भ्रमण के करण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होनेवाले परिवर्तन के द्वारा "घड़ी" या "प्रहर" का अनुमान किया जाता था. सूरज की रोशनी के आधार पर धूप घड़ी के कांटे की परछाई जहां नजर आती थी वही समय माना जाता था. ये तरीका काफी सटीक माना जाता था.
भारत के कई संग्रहालय में आज भी धूप घड़ी देखने को मिल जाती है. अब बात करते हैं कि घड़ी में एएम और पीएम का मतलब क्या होता है. इसकी फुल फॉर्म क्या है. इसके बारे में हम आपको बताएंगे.
एटॉमिक घड़ी
एटॉमिक घड़ी भी है सन् 1948 में संयुक्त राज्य, अमरीका, के ब्यूरो ऑव स्टैंडर्ड्स की ओर से परमाण्वीय घड़ियों का प्रारूप निर्धारित करने की घोषण हुई. ये घड़ियाँ भी दाब-विद्युत्-मणिभयुक्त सामान्य विद्युत् घड़ियों की भाँति होती हैं.
समय के साथ फैशन का भी रखती है ध्यान
पॉकेट वॉच के बाद कंपनियों ने कलाई घड़ी बनानी शुरू की. घंटाघर व पॉकेट वॉच के बाद यूरोपीय देशों ने कलाई घड़ी बनानी शुरू कर .धीरे-धीरे इनका फैशन बढ़ता गया और स्टाइल बदलते गए। आज के समय में ये फैशन में हैं और तमाम तरह के ब्रांड इन्हें बना रहे हैं.
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