History of Ghevar: तीज और रक्षाबंधन ये दो ऐसे त्योहार हैं जो घेवर के बिना अधूरे माने जाते हैं. राजस्थान में धूम-धाम से मनाई जाने वाली तीज में घेवर ही मिठास घोलता है. इसके साथ ही ब्रज और उसके आस-पास के क्षेत्रों में एक परंपरा के अनुसार रक्षाबंधन पर बहन, घेवर लेकर भाई के घर जाती है. बिना घेवर के भाई-बहन का ये त्योहार पूरा नहीं माना जाता. बता दें कि घेवर राजस्थान और ब्रज क्षेत्रों की प्रमुख पारंपरिक मिठाई है.


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मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देता है घेवर
यह मैदे से बना, मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देने वाला एक खस्ता और मीठा पकवान है. घेवर एक तरह की मिठाई है. कुछ प्रमुख त्योहारों में घेवर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. रक्षा बंधन के मौके पर मथुरा, बुलंदशहर यहां तक कि दिल्ली, नोएडा में भी घेवर का जायका चखने को मिल जाएगा. यूपी में रक्षा-बंधन में लोग लड्डू-पेड़े और बर्फी की जगह घेवर ले जाना पसंद करते हैं. 


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सावन और घेवर 
घेवर के पीछे की कहानी बहुत रोचक है. वैसे तो बारिश की बूंदों की फुहार के साथ गर्मा-गरम पकौड़े और चटपटी चीजें खाने का मन करता है. अधिकतर लोग सावन में इसे खाना पसंद करते हैं. बरसात के मौसम में कई तरह के व्यंजन बनते हैं लेकिन घेवर की बात की कुछ अलग है. महिलाएं राखी के मौके पर अपने मायके जाती हैं तो वो अपने साथ घेवर ले जाती हैं.


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कहां से आया है घेवर?
घेवर के इतिहास के बारे में जानने की कोशिश की गई तो इसके बारे में कोई खास इतिहास मालूम नहीं हुआ. लेकिन कहा जाता है कि घेवर राजस्थान का अविष्कार है. राजस्थान खानपान के मामले में बहुत ही अलग है. मसालों से लेकर मिठाईयों तक का स्वाद जल्द कोई भूलता नहीं. इसके अलावा ब्रज क्षेत्रों में घेवर अलग-अलग तरीकों से बनाए जाते हैं. घेवर को इंग्लिश में हनीकॉम्ब डेटर्ट के नाम से जाना जाता है. रेस्टोरेंट्स में गोल जालीदार वाली इस मिठाई को हनीकॉम्ब डेज़र्ट के नाम से भी ऑर्डर किया जा सकता है.


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ऐसे तैयार होता है घेवर
सामान्य तौर पर मैदे और अरारोट के घोल को तरह-तरह के सांचों में डालकर घेवर बनाया जाता है. समय के साथ-साथ घेवर को प्रेजेंट करने के तरीके में बदलाव आया है. नए घेवर के रूप में लोग मावा घेवर, मलाई घेवर और पनीर घेवर ज्यादा पसंद कर रहे हैं. फ्लेवर और आकार जरूर बदल गए हैं पर आज भी घेवर का स्वाद पुराना ही है. चाशनी में डूबे घेवर पर रबड़ी और सूखे मेवों का वर्क हर एक को पसंद आएगा.



बाजार में अलग-अलग दाम में मौजूद
वैश्वीकरण के दौर में आज घेवर का रूप भी बदलने लगा है, 450 से लेकर 1000 रूपये प्रति किलो का घेवर बाजार में उपलब्ध है. घेवर शुद्ध देशी का भी मिलता है और रिफाइंड का. इसके हिसाब से ही इनके दाम तय होते हैं. सादा घेवर सस्ता है जबकि पिस्ता, बादाम और मावे वाला घेवर मंहगा होता है. 


बच्चों को पिस्ता-मावा वाला घेवर तो बड़ों को पसंद आता है सादा घेवर
पिस्ता बादाम और मावे वाला घेवर ज्यादा प्रचलित है. हालांकि कुछ लोगों को सादा घेवर पंसद है क्योंकि इसमें मिलावट न के बराबर होती है जबकि खोए के घेवर में मिलावट का इस्तेमाल किया जाता है खासकर त्यौहार के मौके पर.  बच्चों को मावा-घेवर बहुत पसंद आता है.


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