इधर पिछले 23 दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे दिव्यांग बच्चे विद्यालय के ट्रस्टी पर यह आरोप लगा रहे हैं कि स्कूल को धीरे-धीरे बंद करके इस जगह का व्यवसायिक उपयोग करने की साजिश हो रही है. जिसकी शुरुआत 9 से 12 तक की कक्षाओं को बंद करके की जा रही है...
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वारणसी: यूपी के काशी का हनुमान प्रसाद पोद्दार विद्यालय पिछले 1 महीने से चर्चा में है. वैसे तो कोरोना महामारी की वजह से यह स्कूल करीब 1.5 साल से बंद है, लेकिन जून 2020 में यहां क्लास 9 से 12 तक की कक्षाएं हमेशा के लिए बंद कर दी गई हैं. छात्र और उनके साथी आजकल विद्यालय बंद करने को लेकर विद्यालय गेट के बाहर पिछले 23 दिनों से धरने पर हैं. इन दिव्यांग बच्चों का आरोप है की यह चुटिया ट्रस्ट का स्कूल है. इसके ट्रस्टी हम लोगों को दिव्यांग समझ कर तरह-तरह से प्रताड़ित करते हैं. ताकि 4 एकड़ में फैले इस स्कूल का उपयोग ट्रस्ट के लोग व्यवसायिक तौर पर कर सकें. प्रबंधन से जुड़े और विद्यालय के अध्यापक बताते हैं कि इस विद्यालय को मिलने वाली सरकारी सहायता साल 2018 के बाद से नहीं मिली है. इसलिए 9 से 12 तक की कक्षाओं को दूसरी जगह शिफ्ट करने का की कोशिश की जा रही है.
बच्चों ने लगाया साजिश का आरोप
इधर पिछले 23 दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे दिव्यांग बच्चे विद्यालय के ट्रस्टी पर यह आरोप लगा रहे हैं कि स्कूल को धीरे-धीरे बंद करके इस जगह का व्यवसायिक उपयोग करने की साजिश हो रही है. जिसकी शुरुआत 9 से 12 तक की कक्षाओं को बंद करके की जा रही है.
सरकार और ट्रस्ट के पैसे से चलता है स्कूल
गौरतलब है कि वाराणसी के दुर्गाकुंड के पास दृष्टिबाधित छात्रों के लिए एक प्राचीन आवासीय विद्यालय है. आजकल इस विद्यालय के छात्रों और पूर्व छात्रों ने कक्षा 9-12 को बंद करने और "स्कूल को स्थायी रूप से बंद करने के लिए इसे छोटा करने" के फैसले के खिलाफ पिछले 23 दिनों से स्कूल के बाहर धरना दे रहे हैं. श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय, जो केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से अपनी आधी धनराशि प्राप्त करता है और शेष धनराशि ट्रस्टी देते हैं. छात्रों का कहना है कि स्कूल को बंद किया जा रहा है, क्योंकि यह जिस भूमि पर स्थित है वह मूल्यवान है और इसे चलाने वाले ट्रस्ट की योजना है कि विद्यालय बंद करके उस जमीन का व्यवसायिक उपयोग किया जाए.
पहले से ही स्कूल स्पेस का हो रहा अलग इस्तेमाल
पूरे उत्तर प्रदेश में लगभग दृष्टिबाधित छात्रों की संख्या 18 लाख के आसपास है, लेकिन संख्या के हिसाब से स्कूलों की संख्या बहुत कम. धरना दे रहे छात्रों का तर्क है कि सरकार को चाहिए कि दृष्टि बाधित छात्रों के लिए विद्यालयों की संख्या को बढ़ाएं. छात्रों का आरोप है कि विद्यालय प्रबंधन से जुड़े हुए ट्रस्टी कभी-कभी, छात्रावास को स्टोर के रूप में प्रयोग करने लगते हैं. जबकि अन्य समय में स्कूल का खेल का मैदान साइकिल के लिए पार्किंग स्थल में बदल जाता है. जब छात्र इस तरह की गतिविधियों का विरोध करते हैं, तो उन्हें अनुशासनहीन करार दिया जाता है.
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पीएम से लगा रहे मदद की गुहार
विद्यालय प्रबंधन दृष्टिबाधित छात्रों की सहायता इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि उसके पास फंड नहीं है. वाराणसी प्रशासन कोर्ट का हवाला देकर इन छात्रों की मांगों को अवैध करार दे रहा है, लेकिन आंख से दिव्यांग इन बच्चों को अभी भी अपने सांसद और देश के प्रधानमंत्री से काफी उम्मीदें हैं. इसलिए आज 23वें दिन भी इनका हौसला बुलंद है.