Dussehra Puja 2023: दशहरे पर यहां होती है रावण की पूजा, भारत में 103 साल पुराना है दशानन का ये मंदिर
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Dussehra Puja 2023: दशहरे पर यहां होती है रावण की पूजा, भारत में 103 साल पुराना है दशानन का ये मंदिर

Dussehra Puja 2023: भारत में एक जगह ऐसी भी मौजूद है जहां लंका के राजा रावण की पूजा की जाती है. इसकी खासियत ये है कि रावण का यह मंदिर केवल दशहरे के दिन ही खुलता है.

 

Dussehra Puja 2023: दशहरे पर यहां होती है रावण की पूजा, भारत में 103 साल पुराना है दशानन का ये मंदिर

Dussehra Puja 2023: हिंदु धर्म का दशहरा एक प्रमुख त्योहार है इस त्योहार को पूरे देश में बड़े ही धूनधाम से मनाया जाता है. कहीं पर रावण का पुतला बनाकर जलाया जाता है तो कहीं पर शस्त्र पूजन करके यह त्योहार मनाया जाता है. पर उत्तर प्रदेश के कानपुर में रावण को भगवान का दर्जा दिया जाता है. आप एक दम सही पढ़ उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक ऐसा मंदिर है जहां लंका के राजा रावण की पूजा की जाती है. 103 साल पुराने दशानन मंदिर मंदिर की एक और विशेषता है कि यह मंदिर साल में केवल एक ही दिन खुलता है और फिर साल भर के लिए बंद हो जाता है. 

खुलने का समय
यह विशेष तिथियों में खुलने वाला रावण मंदिर है. जिसके पट केवल दशहरे के दिन खोले जाते हैं. शहर के शिवाला स्थित इस मंदिर में विशेष पूजा की जाती है, और सुबह से शाम तक साधक यहां रावण दर्शन के लिए आते रहते हैं. मन्नतें मानने के लिए यहां सरसों के तेल के दीये जलाते हैं. 
दशहरे के दिन रावण की पूजा के लिए हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं, केवल कानपुर से ही नहीं देश के विभिन्न हिस्सों और अक्सर विदेश से भी लोग आते हैं, 103 वर्ष से अधिक पुराना यह मंदिर अपने आप में कई मान्यताएं और इतिहास समेटे हुए है.

प्रतिमा का किया जाता है श्रृंगार
विजयादशमी यानी दशहरा के दिन मंदिर के पट पूरे विधि विधान के साथ खोल दिए जाते हैं. पहले रावण की यहां स्थापित प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है। पूजा और आरती की जाती है. इसके बाद मंदिर में आम लोगों को प्रवेश दिया जाता है. रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजने वाले भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं. तेल के दीये जलाकर मन्नतें मांगने के साथ लोग बल, बुद्धि और आरोग्य का यहां वरदान भी मांगते हैं.

क्या है निर्माण की काहानी 
मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि इसका निर्माण 103 वर्ष या इससे पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था. इस मंदिर के निर्माण के पीछे अनेक धार्मिक तर्क भी हैं. कहा जाता है कि रावण विद्वान था. भगवान शिव का परम भक्त था. रावण भगवान शिव को खुश करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की आराधना करता था. मां ने पूजा से प्रसन्न होकर रावण को वरदान दिया था कि उनकी पूजा तब सफल होगी जब श्रद्धालु पहले रावण की पूजा करेंगे। कहते हैं, कि शिवाला में 1868 में किसी राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था. यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में स्थापित की थी. यह मंदिर भी शारदीय नवरात्र में सप्तमी से नवमी तक खुलता है. पहले मां की आरती होती है और फिर रावण की. रावण की प्रतिमा यहीं कैलाश मंदिर के बराबर में स्थापित है. दशानन के मंदिर के कपाट दशहरा के दिन खुलेंगे. यह मंदिर वर्ष में एक ही बार खोला जाता है. यह देश का अकेला दशानन मंदिर है.

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