sp rebel mla akhilesh yadav: समाजवादी सपा बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर रही है. लोकसभा चुनाव में यूपी में बड़ी जीत हासिल करने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने विधायकों को बख्शने के मूड में नहीं है.
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Samajwadi Party News: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अब एक्शन के मूड में हैं. ऐसा माना जा रहा है कि वह अपनी पार्टी के सात विधायकों के खिलाफ विधानसभा स्पीकर को चिट्ठी लिख सकते हैं. दावा किया जा रहा है कि सपा प्रमुख राज्य सभा चुनाव में बगावत करने वाले विधायकों की घर वापसी के पक्ष में नहीं हैं. दल बदल कानून के तहत सपा जल्द ही विधानसभा अध्यक्ष के सामने याचिका डालेगी.
राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने और लोकसभा में पार्टी के खिलाफ प्रचार करने वाले विधायकों की दल-बदल कानून के तहत सदस्यता रद्द करने के लिए सपा जल्द ही विधानसभा अध्यक्ष के सामने याचिका दायर करेगी. अगले महीने होने वाले विधानमंडल के मानसून सत्र के पहले या सत्र के दौरान पार्टी यह प्रक्रिया आगे बढ़ा सकती है.
इन बागियों पर लटकी तलवार
फरवरी में हुए राज्यसभा चुनाव में सपा के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करते हुए बीजेपी कैंडीडेट के समर्थन में वोट किया था. इसमें ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडेय, गोसाईगंज से विधायक अभय सिंह, कालपी के विधायक विनोद चतुर्वेदी, चायल से विधायक पूजा पाल,जलालाबाद से विधायक राकेश पांडेय, गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह और बिसौली से विधायक आशुतोष मौर्य शामिल हैं. पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी एवं अमेठी से विधायक महाराजी देवी भी वोटिंग के दौरान नदारद थीं. हालांकि, उन पर कार्रवाई को लेकर फिलहाल पार्टी का रुख अभी साफ नहीं है, लेकिन बाकी 7 विधायकों पर पार्टी कार्रवाई की विधिक प्रक्रिया आगे बढ़ाने जा रही है. इनमें वे विधायक भी शामिल हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के पक्ष में प्रचार किया था.
बागियों ने राज्यसभा में भले वोटिंग कर दी हो, लेकिन मनोज पांडे को छोड़कर कोई भी बीजेपी में आधिकारिक तौर पर शामिल नहीं है और न किसी बड़े राजनीतिक मंच पर दिखाई दिए. भले ही अंदर खाने भाजपा का प्रचार जारी था लेकिन बाहर खुल के किसी भी विधायक ने अपनी विधायकी जाने के डर से खुला समर्थन नहीं किया.
विधायकों की तकदीर अध्यक्ष के हाथ में
समाजवादी पार्टी की याचिका के बाद विधायकों का भविष्य क्या होगा, यह बहुत कुछ विधानसभा अध्यक्ष के रुख पर निर्भर करेगा. अध्यक्ष दोनों पक्षों की अपनी बात रखने का मौका देने के बाद उस पर निर्णय लेते हैं. दल-बदल कानून के तहत सदस्यता खत्म कराने के लिए पार्टी को अध्यक्ष के सामने दिए गए आवेदन के साथ ही इसके लिए पर्याप्त आधार भी देने होते हैं