उत्तर प्रदेश के लाल ने किया कमाल, आंत के बैक्टीरिया पर किया शोध
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उत्तर प्रदेश के लाल ने किया कमाल, आंत के बैक्टीरिया पर किया शोध

 इस शोध कार्य में शामिल एक दर्जन से ज्यादा वैज्ञानिकों की अगुवाई मंगलम ने की जबकि उनके सहयोगी डॉ. शैलेश शाही ने इसमें अहम भूमिका निभाई. 

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष मंगलम की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने आंत के बैक्टीरिया ' प्रीवोटेला ' की खोज की है. जिसका इस्तेमाल ' मल्टीपल स्क्लेरोसिस ' और इससे मिलती-जुलती अन्य बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है. 
' मल्टीपल स्क्लेरोसिस ' केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की बीमारी है जो दिमाग और रीढ़ को प्रभावित करती है. यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) के कमजोर होने और माइलिन कोशिकाओं का बनना बंद होने के कारण होती है. आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों से भी यह बीमारी हो सकती है.  इसमें शरीर के विभिन्न अंग प्रभावित होते हैं.  करीब 20 से 50 साल की उम्र के बीच के लोगों को अपना शिकार बनाने वाली इस बीमारी की चपेट में लंबे समय तक रहने से मरीज को विकलांगता का शिकार होना पड़ता है. 

  1. दुनिया भर में करीब 30 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में हैं
  2. साल 2015 में इस बीमारी से करीब 20,000 लोगों की मौत हुई थी. 
  3. यह खोज इसी साल अगस्त महीने में ‘सेल रिपोर्ट’ पत्रिका में प्रकाशित हुई 

हालांकि यह लकवा से अलग तरह की बीमारी है. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के पैथोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफेसर मंगलम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं . मंगलम ने अमेरिका के आयोवा प्रांत से पीटीआई-भाषा को फोन पर बताया कि उनका शोध आंत के बैक्टीरिया पर आधारित है. वह अपने शोध के जरिए बताना चाहते हैं कि आंतों के बैक्टीरिया इंसान को सेहतमंद रखने में कैसे मदद करते हैं. इस शोध कार्य में शामिल एक दर्जन से ज्यादा वैज्ञानिकों की अगुवाई मंगलम ने की जबकि उनके सहयोगी डॉ. शैलेश शाही ने इसमें अहम भूमिका निभाई. इस शोध में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा और रोचेस्टर स्थित मेयो क्लीनिक के वैज्ञानिकों की भागीदारी रही. मूल रूप से बिहार के रहने वाले शाही ने भारत के लिए इस शोध की अहमियत के बारे में पूछने पर पीटीआई-भाषा को बताया कि पिछले कुछ दशकों में भारत में मल्टीपल स्क्लेरोसिस रोग की चपेट में आने वाले लोगों की तादाद काफी बढ़ी है.

इस रोग का निदान थोड़ा कठिन होने के कारण डॉक्टरों का मानना है कि भारत में इसके मरीजों की सही से पहचान नहीं हो पाती. उन्होंने कहा कि लोगों में मल्टीपल स्क्लेरोसिस के बारे में और जागरूकता फैलाने की जरूरत है. सही पहचान न होने पर मरीजों को गलत दवा देने की आशंका रहती है. पिछले करीब 15 साल से मल्टीपल स्क्लेरोसिस पर शोध कर रहे मंगलम ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, ‘‘हमारी आंत में खरबों अच्छे बैक्टीरिया रहते हैं. वह हमें सेहतमंद बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. अच्छे बैक्टीरिया हमारे भोजन को पचाने के अलावा हमारे शरीर की विभिन्न क्रियाओं में मदद करते हैं. ’’ उन्होंने कहा कि नए शोध के मुताबिक, हमारी आंत के अच्छे बैक्टीरिया हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के विकास में मदद करते हैं. ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ के मरीजों की आंतों में अच्छे बैक्टीरिया की कमी हो जाती है, जिसकी वजह से कुछ लोगों में यह बीमारी होती है.

इसलिए हमने ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ के मरीजों की आंतों में बैक्टीरिया की जांच की और उनकी तुलना सेहतमंद लोगों की आंत के बैक्टीरिया से की. मंगलम ने बताया, ‘‘हमने खोजा कि ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ के मरीजों की आंत के बैक्टीरिया सेहतमंद लोगों से भिन्न थे. हमारी टीम ने उन विशेष बैक्टीरिया की पहचान की जिनकी कमी ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों में थी. खासकर हमने पाया कि ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ के मरीजों में ‘प्रीवोटेला’ नाम के बैक्टीरिया की कमी थी. शोधकर्ताओं की टीम ने ‘प्रीवोटेला’ के विभिन्न उपभेदों (स्ट्रेन्स) को सेहतमंद लोगों की आंत से निकाला और उनका परीक्षण चूहों पर किया. उन्होंने पाया कि बहुत सारे बैक्टीरिया में से एक ‘प्रीवोटेला हिस्टीकोला’ में ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ वाले चूहों में बीमारी को सुधारने की क्षमता थी. ‘प्रीवोटेला हिस्टीकोला’ ने बीमारी के लक्षण में सुधार लाने के साथ-साथ दिमाग और रीढ़ में सूजन को भी कम किया.

उनकी टीम ने यह भी दिखाया की ‘प्रीवोटेला हिस्टीकोला’ ने शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बढ़ाया. यह खोज इसी साल अगस्त महीने में ‘सेल रिपोर्ट’ पत्रिका में प्रकाशित हुई . हालांकि, मंगलम ने चेतावनी दी कि अभी इस बैक्टीरिया पर और शोध करने की जरूरत है ताकि इसके प्रभाव की जांच ठीक से की जा सके । इस टीम को यह खोज करने में करीब चार साल का वक्त लगा. अमेरिका के लोक स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 30 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में हैं. साल 2015 में इस बीमारी से करीब 20,000 लोगों की मौत हुई थी. 

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