कोर्ट ने कहा है कि यदि यह एक अंक पाने के बाद अभ्यर्थी मेरिट में आ जाता है तो उसे नियुक्ति दी जाए.
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प्रयागराज: सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा 2018 को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभ्यर्थियों को आंशिक राहत दी है. हाईकोर्ट ने एक प्रश्न के उत्तर को गलत मानते हुए उसका एक अंक उन अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने हाईकोर्ट में अपील या याचिका दाखिल की है और जिनके एक ही अंक कम पड़ रहे हैं. बता दें कि अभ्यर्थियों की ओर से छह सवालों के उत्तर को लेकर चुनौती दी गई थी.
अभ्यर्थियों के अनुसार, भर्ती प्राधिकारी ने जिन उत्तरों को सही माना है, वह सही नहीं हैं. कोर्ट ने इनमें से सिर्फ एक प्रश्न संख्या 60 को लेकर की गई आपत्ति को ही सही पाया. इस एक प्रश्न का एक अंक उन अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने याचिका या अपील दाखिल की है. उनमें भी यह अंक उन्हीं याचिकाकर्ताओं को मिलेगा जिनके एक अंक ही कम पड़ रहे हैं.
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क्या कहना है कोर्ट का?
कोर्ट ने कहा है कि यदि यह एक अंक पाने के बाद अभ्यर्थी मेरिट में आ जाता है तो उसे नियुक्ति दी जाए. अभिषेक श्रीवास्तव व दर्जनों अन्य की ओर से दाखिल विशेष अपीलों पर कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमए भंडारी और न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की पीठ ने सुनवाई की.
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इस फैसले को दी गई थी चुनौती
विशेष अपील में एकल न्यायपीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी. एकल पीठ ने अभ्यर्थियों का दावा खारिज कर दिया था. अपीलों में कहा गया कि सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा छह जनवरी 2019 को हुई. इसकी उत्तर कुंजी पांच अगस्त 20 को जारी की गई. उत्तर कुंजी से मिलान करने पर अभ्यर्थियों ने छह प्रश्नों पर आपत्ति की. उनके मुताबिक परीक्षा प्राधिकारी ने जिन उत्तरों को सही माना है वह सही है जबकि अभ्यर्थियों द्वारा दिए गए जवाब सही हैं.
क्या कहना है सुप्रीम कोर्ट का?
कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रणविजय सिंह केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांत के आलोक में मामले का परीक्षण किया. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उत्तर पुस्तिकाओं के पुर्नपरीक्षण या स्क्रूटनी के मामले में अदालतों के अधिकार सीमित हैं. यदि भर्ती के नियमों में पुर्नपरीक्षण व स्क्रूटनी के प्रावधान हैं तो अधिकारियों को यह अधिकार अभ्यर्थियों को देना चाहिए. यदि प्रावधान नहीं है तो अदालत तभी पुर्नपरीक्षण या स्क्रूटनी का आदेश दे सकती है जबकि ठोस साक्ष्यों के साथ यह प्रमाणित कर दिया जाए कि परीक्षा प्राधिकारी ने वास्तव में सही उत्तर चुनने में गलती की है.
सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि संदेह होने की दशा में संदेह का लाभ परीक्षा प्राधिकारी को मिलेगा न कि अभ्यर्थी को. अदालत ने सभी छह प्रश्नों का बारी बारी से परीक्षण किया. पांच प्रश्नों में अभ्यर्थी अपने दावे को साबित नहीं कर सके. जबकि प्रश्न संख्या में 60 में विकल्प के रूप में दिए गए लेखक का नाम गलत होने के कारण कोर्ट ने इस प्रश्न का एक अंक समिति अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है.
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