Atiq Ahmed Story: 70 के दशक का गली का गुंडा, 80 में बना माफिया, सियासी शह ने बदली अतीक अहमद की जिंदगी
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Atiq Ahmed Story: 70 के दशक का गली का गुंडा, 80 में बना माफिया, सियासी शह ने बदली अतीक अहमद की जिंदगी

महज 17 साल की उम्र में फिरोज तांगेवाले के लड़के अतीक पर हत्या का आरोप लगा. फिर क्या था उसका रंगदारी का धंधा भी चल निकला. वो दौर था पुराने शहर में रहने वाले एक गुंडे चांद बाबा का कहते हैं कि उस दौर में चांद बाबा का जलवा ऐसा था कि चौक और रानीमंडी इलाके में पुलिसवाले तक जाने से डरते थे. उस वक्त तक करीब 22 साल के लड़के अतीक का ठीक ठाक हिसाब किताब बन गया था, अतीक को पुलिस और नेता दोनों का शह मिलने लगा.

अतीक अहमद

Atiq Ahmed Story: प्रयागराज जो उस दौर में इलाहाबाद हुआ करता था. कहानी सत्तर और अस्सी के दशक के बीच की है। जब तत्कालीन इलाहाबाद में माहौल बदलने लगा था. इलाहाबाद शिक्षा के हब के रुप में विकसित हो रहा था. उस दौर में लोकल लड़कों में अमीर बनने की चाहत जग चुकी थी. चाहे इसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े. इसी दौर में चकिया मोहल्ले में रहने वाले एक तांगेवाले का बेटा अचानक सुर्खियों में आया.

पुलिस और नेता दोनों का शह मिलने लगा
महज 17 साल की उम्र में फिरोज तांगेवाले के लड़के अतीक पर हत्या का आरोप लगा. फिर क्या था उसका रंगदारी का धंधा भी चल निकला. वो दौर था पुराने शहर में रहने वाले एक गुंडे चांद बाबा का कहते हैं कि उस दौर में चांद बाबा का जलवा ऐसा था कि चौक और रानीमंडी इलाके में पुलिसवाले तक जाने से डरते थे. उस वक्त तक करीब 22 साल के लड़के अतीक का ठीक ठाक हिसाब किताब बन गया था, अतीक को पुलिस और नेता दोनों का शह मिलने लगा.

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80 के दशक में सियासत के गलियारों में मजबूत दखल दे दी थी 
यही वो दौर था जब अतीक ने तेजी से लोकल गुंडागर्दी में अपने पैर जमाने शुरु कर दिए. जो लोग चांद बाबा से खार खाये बैठे थे उन्होंने अतीक को शह देनी शुरु कर दी. उस वक्त तक अतीक ने अपना बड़ा गिरोह तैयार कर लिया था. अब ये गिरोह चांद बाबा के गिरोह से ज्यादा खतरनाक होने लगा था. बात 1986 के आसपास की है जब प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी. केन्द्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. उस दौरान एक बार पुलिस अतीक को उठा ले गई. लेकिन दिल्ली से आए एक फोन से अतीक उसी दिन पुलिस की गिरफ्त से छूट गया.

यानी अतीक ने उस वक्त तक सियासत के गलियारों में मजबूत दखल दे दी थी. जो आगे चलकर उसके बाहुबल और अपराध की दुनिया के लिए संजीवनी साबित होने वाली थी. ऐसे में आखिर कैसे अतीक ने गुनाहों के रास्ते पर चलते हुए सियासत में मजबूत पकड़ बनाई और आखिर क्यों सियासी ऊंचाई पाने के बाद भी वो दूसरे बाहुबली नेताओं की तरह जरायम का रास्ता नहीं छोड़ पाया.

जान की कीमत चुकानी पड़ी
जरायम की दुनियां में अतीक लम्बी छलांगे मार रहा था. मगर उसे पता था कि उसका काला अतीत कभी भी उसके रास्ते का रोड़ा बन सकता है. लिहाजा उसने सियासत में मजबूत दखल देने का मन बनाया. मगर सियासी सफर में भी उसने गुनाहों का रास्ता नहीं छोड़ा. उसकी कामयाबी के रास्ते में जो भी आया उसे अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ी.

एक दौर ऐसा भी था जब अतीक अहमद ने अपराध की दुनिया में ऐसा हंगामा खड़ा किया कि पुलिस तक के लिए नासूर बन गया. हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे मामलों में मुकदमों की फाइल दर फाइल खड़ी होती जा रही थी. मगर अतीक का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था. ऐसे ही दौर में अतीक ने ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला कि पुलिस चाहकर भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाई.

मुकदमों की लम्बी फेहरिस्त हो चुकी थी तैयार 
बात अस्सी के दशक की है जब मुकदमों की लम्बी फेहरिस्त अतीक के खिलाफ तैयार हो चुकी थी. ऐसे में वो एक दिन बुर्के में अपने साथी के साथ पहुंचा और पुराने मामले में सरेंडर कर दिया. जेल जाते ही पुलिस उस पर भिड़ गई और रासुका लगा दिया. बाहर संदेश ये गया कि पुलिस अतीक का उत्पीड़न कर रही है. जिसके बाद उसके पक्ष में सहानूभूति पैदा हो गई. हालांकि एक साल जेल में रहने के बाद वो बाहर आया और 1989 के चुनाव में उसने इलाहाबाद पश्चिमी से निर्दलीय पर्चा भर दिया.

अतीक के आतंक के सामने कोई खड़ा ही नहीं होता था 
इस चुनाव में अतीक का सामना पुराने गैंगस्टर चांद बाबा से था, जिससे उसकी कई दफे गैंगवार हो चुकी थी. लेकिन अतीक ने इस चुनाव में धनबल बाहुबल का ऐसा खेल खेला कि चांद बाबा हार गया. अतीक इसके साथ ही "माननीय" बन गया. चुनाव के कुछ महीनों बाद ही चांद बाबा की हत्या हो गई.धीरे धीरे अतीक ने चांदबाबा के पूरे गैंग का सफाया कर दिया. हालत ये हुई कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने तक को मना करने लगे.

पांचवी बार बना विधायक 
अतीक ने निर्दलीय रहकर 1991 और 1993 में भी लगातार चुनाव जीता. इसी बीच उसकी सपा से नजदीकी बढ़ी.1996 में सपा के टिकट से चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बना बाद में अतीक ने 1999 में अपना दल का हाथ थामा. प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा. लेकिन जीत नहीं पाया. इसके बाद 2002 में अपना दल से ही चुनाव लड़ा पुरानी सीट से और 5 वीं बार शहर पश्चिमी से विधानसभा में पहुंच गया.

प्रयागराज में जिस वक्त अतीक अहमद की तूती बोलती थी. उसी दौर में उसे महंगी विदेशी गाड़ियों और हथियारों का शौक भी लग गया था. अतीक के बेड़े में एक से एक विदेशी गाड़ियां आ चुकी थीं. एक से एक महंगे हथियार आ चुके थे. बावजूद इसके अतीक की सीरत नहीं बदली. एक बेहद अमीर आदमी और कई बार का विधायक होने के बावजूद अतीक के रास्ते में जो भी आया उसे ठिकाने लगाने से उसने गुरेज नहीं किया और यही उसके पतन की वजह भी बनी.

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