Azamgarh Byelection 2022: धर्मेद्र यादव का मंदिर-शिवालय व दरगाह में मत्था टेकने का फोटो खूब वायरल हो रहा है. मंदिर और दरगाह जाना सम्मान है या मजबूरी ये तो पता नहीं लेकिन सपा को अपना गढ़ बचना एक बड़ी चुनौती अवश्य है. 2009 के चुनाव में आज़मगढ़ सीट भाजपा के पास थी. वहीं, 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से अखिलेश यादव सपा-बसपा गठबंधन से जीते थे.
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वेदेन्द्र प्रताप शर्मा/आजमगढ़: चुनाव में समाज के बीच अपने को सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए होड़ लगी रहती है. ऐसे में समाजवादी पार्टी कहां पीछे रहने वाली है. आज़मगढ़ के लोकसभा उपचुनाव में सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव जो मुलायम सिंह यादव के परिवार से हैं, चुनाव जीतने के लिए मंदिर और दरगाह जाने से नहीं चूक रहे हैं. उनके मंदिर और दरगाह का फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है.
सपा का मूल वोट बैंक यादव और मुसलमान को माना जाता है, जिसको 'MY' फैक्टर कहते हैं. यादव हिन्दू हैं, जिनके बीच ये बताना भी जरूरी है कि मैं हिन्दू हूं, इसलिए संत महात्माओं का आशीर्वाद लेते रहते हैं. भगवान शिव के मंदिर में जल व दूध भी चढ़ाते हैं. वहीं, मुसलमानों के बीच इस बात का भी संदेश देना नहीं भूलते की वो सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, इसी को लेकर दरगाह में मत्था टेकते हैं और अपनी जीत की दुआ मांगते हैं.
धर्मेद्र यादव का मंदिर-शिवालय व दरगाह में मत्था टेकने का फोटो खूब वायरल हो रहा है. मंदिर और दरगाह जाना सम्मान है या मजबूरी ये तो पता नहीं लेकिन सपा को अपना गढ़ बचना एक बड़ी चुनौती अवश्य है. 2009 के चुनाव में आज़मगढ़ सीट भाजपा के पास थी. वहीं, 2014 में ये सीट मुलायम सिंह यादव ने जीत ली लेकिन उसके लिए पूरा सैफई कुनबा आज़मगढ़ में लगा रहा और भाजपा-बसपा से मिली कड़ी टक्कर में बाजी मुलायम सिंह के हाथ लगी. वहीं 2019 में अखिलेश यादव सपा बसपा गठबंधन में सीट को निकाल पाये.
इस उपचुनाव में सपा नेताओं में अंदरूनी कलह की खबरें सामने आईं. जिसके चलते कभी दलित नेता सुशील आनंद का नाम आया तो कभी अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव का नाम आया लेकिन इन सबके बीच भाजपा ने फिर से भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतार दिया, जिससे यादव वोट में सेंध का डर लगने लगा. दूसरी ओर बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा. जिस कारण MY फैक्टर में मुस्लिम वोट भी खिसकने का भय सताने लगा. इन दोनों उम्मीदवारों को देखते हुए काफी विचार विमर्श के बाद धर्मेंद्र यादव को नामांकन के अंतिम दिन मैदान में उतारा गया. सपा के लिए बड़ा डर ये है कि मुस्लिम वोट बंटा तो निरहुआ की जीत पक्की और यादव में सेंध लगी तो भी हार.
इस सबको लेकर भगवान भोले नाथ का आशीर्वाद, साधु संतों की कृपा मिले और मुस्लिम समुदाय से संबंधित मजारों पर जाकर दुआ के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय में ये संदेश देना कि सपा के लिए मुसलमान उतना ही महत्वपूर्ण है जितना हिन्दू. धर्मेंद्र यादव का मंदिर और मजार का फोटो वायरल होने पर विपक्षी कह रहे हैं कि इनका किसी पर विश्वास नहीं है. ये केवल दिखावा कर रहे हैं और हालत खराब होने के कारण जनता के बीच अपने को धर्म निरपेक्ष साबित करना चाहते हैं, लेकिन इस चुनाव में अब ये दिखावा नहीं चलेगा.
चुनाव अपने अंतिम दौर में है अब देखने वाली बात ये होगी कि किसको आशीर्वाद और दुआ प्राप्त होगी. कुल मिलाकर जनता ही भगवान होती है, चुनाव में और उसका आशीर्वाद या दुआ किसको मिलता है, किसके सिर जीत का सेहरा बंधता है, आने वाले 26 जून को पता चल जाएगा.
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