नेता जी ने आजमगढ़ के विकास पर ध्यान देना शुरू कर दिया. इस जिले को 1994 में मण्डल बनाकर यहां के लोगों को सबसे बड़ा तोहफा दिया.....
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वेदेंद्र शर्मा/आजमगढ़: मुलायम सिंह यादव अब स्मृतियां शेष रह गईं हैं. मुलायम सिंह का आजमगढ़ से गहरा रिश्ता रहा है. मुलायम जब राजनीति में स्थापित हुए तो उन्होंने यहां पर बिखरे समाजवादी विचारधारा के लोगों को जोड़ने का कार्य किया. यादवों के बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आ गए, लेकिन उनकी राजनीतिक गणित के आकड़ों को पूरा करने के लिए एक और बड़े तबके को जोड़ना था जिससे वो उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी जड़ें जमा सके, इसलिए उन्होंने बिखरे हुए मुसलमान वोट को अपने साथ जोड़ने में सफल रहे. शुरू में उन्होंने दलित विचारधारा की पार्टी बसपा से समझौता कर सरकार बनाई और फिर राजनीत में स्थापित हो गए.
मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ को बनाया मंडल
नेता जी को लगा कि आजमगढ़ एक मजबूत गढ़ है यादव और मुसलमान का. इसलिए उन्होंन आजमगढ़ के विकास पर ध्यान देना शुरू कर दिया. इस जिले को 1994 में मण्डल बनाकर यहां के लोगों को सबसे बड़ा तोहफा दिया. जबकि कांग्रेस के बड़े नेता स्वर्गीय कल्पनाथ राय आजमगढ़ को मण्डल बनाने का विरोध कर रहे थे. वो मऊ को मण्डल बनाना चाहते थे. इस विरोध को मुलायम ने अपने पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण कर लिए और आजमगढ़ की विधानसभा की 10 सीटों पर हमेशा आधे से ज्यादा पर कब्जा बनाये रखा. वर्तमान में तो सभी 10 सीटों पर समाजवादी का कब्जा है.
आजमगढ़ के कई नेताओं को प्रदेश स्तर पर दिलाई पहचान
मुलायम सिंह यादव का एक स्लोगन यहां के लोगों को हमेशा बाध कर रखा। उनका कहना था कि इटावा उनका दिल है तो आज़मगढ़ धड़कन ये बात तो आजमगढ़ के लोगों के दिल मे उतर गई। मुलायम ने आजमगढ़ पर कई बड़े नेताओं को स्थापित किया। उन लोगों को नीचे से उठाकर बड़ा नेता बनाया जो आजमगढ़ के सामान्य नेता के रूप में जाने जाते थे उदाहरण के लिए स्वर्गीय ईसर दत्त यादव, रमाकांत यादव, दुर्गा प्रसाद यादव, बलराम यादव, स्वर्गीय वसीम अहमद और आलम बदी आज़मी, जबकि यहां पहले रामनरेश यादव, चंद्रजीत यादव, रामधन राम समेत कई जो आज़मगढ़ के कद्दावर नेता थे लेकिन मुलायम की नई राजनीति चाल के जाल में ये सभी नेता अपनी पहचान खो बैठे या यों कहें कि इनकी पहचान धुंधली हो गयी.
2014 में जब मुलायम को ये लगा कि आजमगढ़ के समाजवादी नेता अब वर्चस्व को लेकर आपस मे ही भिड़ रहे हैं तो खुद मैदान में उतर गए और संसद का रास्ता उन्होंने आजमगढ़ से तय किया. बात यहीं नहीं रुकती मुलायम ने आजमगढ़ से कइयों को राज्यसभा भेजा, विधान परिषद में बैठाया क्योंकि मुलायम को पता था कि आजमगढ़ समाजवादी पार्टी के लिए बहुत ही उपजाऊ जमीन है.
नेता जी ने आजमगढ़ को विकास की धारा में जोड़ा
मुलायम सिंह यादव को आजमगढ़ से गहरा लगाव था. आजमगढ़ ने भी उनको कभी निराश नहीं किया. वर्ष 2007 में बसपा को 6 और सपा को मात्र 4 सीट मिली थी लेकिन वर्ष 2012 के चुनाव में सपा ने यहां रिकार्ड 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. आजमगढ़ को कमिश्नरी बनाने का श्रेय मुलायम सिंह यादव को जाता है. इसके अलावा मुलायम सिंह ने महिला अस्पताल, विकास भवन सहित कई योजनाएं आजमगढ़ को दी.
आजमगढ़ लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान एक दौर में बाहुबली रमाकांत यादव मुलायम सिंह के सबसे करीबी नेता हुआ करते थे लेकिन रमाकांत वर्ष 2014 का चुनाव बीजेपी के टिकट पर मुलायम सिंह यादव के खिलाफ लड़े। जब मुलायम सिंह यादव नामाकंन के लिए आजमगढ़ पहुंचे तो रमाकांत यादव के समर्थकों ने उनके काफिले के सामने मुलायम सिंह वापस जाओ लाठी लेकर भैस चराओ सहित कई नारे लगाए थे। जिससे मुलायम सिंह भारी आहत हुए थे।
आजमगढ़ के नेताओं से हुए नाराज
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम आजमगढ़ सदर सीट से मैदान में उतरे थे. उनके खिलाफ भाजपा से रमाकांत यादव और बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली थे. मुलायम को भरोसा था कि उन्हें बड़ी जीत मिलेगी, लेकिन मुलायम सिंह मात्र 63 हजार वोटों से चुनाव जीते, हार जीत के कम अंतर के लिए मुलायम ने गुटबाजी को जिम्मेदार ठहराया था, जिसको लेकर वह काफी आहत दिखे थे और उन्होंने पार्टी की मीटिंग में कह दिया था कि यहां के नेताओं ने तो मुझे हरा ही दिया था. इतना बड़ा कुनबा न होता और लोग चुनाव में न लगते तो चुनाव हार जाता. मुलायम का यह बयान खूब चर्चा में रहा था. उनके मन में हार जीत के अंतर को लेकर जो पीड़ा रही वह कम नहीं हुई. यही वजह रही कि मुलायम अगले पांच साल तक कभी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिये और न ही संसदीय क्षेत्र के लोगों का कभी दुख दर्द जानने की कोशिश की. सांसद रहते मुलायम ने आजमगढ़ की दो यात्रा की.
मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक यात्रा पर एक नजर
पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने 55 साल तक राजनीति की. मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफर पहली बार 1967 में विधायक चुने गए थे. आपातकाल के दौरान वे 19 महीने तक जेल में रहे. वह 1977 में राज्य मंत्री बनाये गए. इसके बाद 1980 लोकदल के अध्यक्ष और 1989 में पहली बार यूपी के सीएम बने. 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह यादव चंद्रशेखर के जनता दल से जुड़े और मुख्यमंत्री बने रहे. 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया और 1993 में बसपा से गठबंधन कर सरकार बनाई. फिर वे 2003 में मुख्यमंत्री बने. इसके पूर्व मुलायम सिंह 1996 से 1998 तक देश के रक्षामंत्री भी रहे. 2012 में सपा को पूर्ण बहुमत मिला तो उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश को यूपी का सीएम बनाया. 2014 में आजमगढ़ से सांसद चुने गए. इसके बाद 2019 में मैनपुरी से सांसद बने.
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