जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते हैं, वैसे ही बुंदेलखंड के विकास को लेकर तमाम राजनैतिक दल चर्चा शुरू कर देते हैं. इसी वजह से सियासी गलियारों में इस वक्त बुंदेलखंड की चर्चा काफी ज्यादा है. इन चर्चाओं में यहां के विकास को लेकर तमाम राजनैतिक दल सवाल उठा रहे हैं. लेकिन बुंदेलखंड हर चुनाव की तरह इस बार भी अपने विकसित होने का इंतजार कर रहा है. क्या वजह है कि आखिर बुंदेलखंड सियासी दलों के लिए सत्ता तक पहुंचने का रास्ता तो बन जाता है लेकिन खुद सत्ता से दूर रह जाता है.
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बुंदेलखंड: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) के 193वां जन्मदिन पर बुंदेलखंड (Bundelkhand) की जनता को बेशकीमती सौगातें दीं. इनकी कुल लागत करीब 6600 करोड़ है. पीएम मोदी ने महोबा (PM Modi in Mahoba) में अर्जुन सहायक परियोजना के साथ करीब 3263 करोड़ के विकास कार्यों का लोकार्पण किया. उसके बाद झांसी में डिफेन्स कॉरीडोर (Jhansi Defence Corridor) के पहले प्रोजेक्ट की आधारशिला भी रखी.
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते हैं, वैसे ही बुंदेलखंड के विकास को लेकर तमाम राजनैतिक दल चर्चा शुरू कर देते हैं. इसी वजह से सियासी गलियारों में इस वक्त बुंदेलखंड की चर्चा काफी ज्यादा है. इन चर्चाओं में यहां के विकास को लेकर तमाम राजनैतिक दल सवाल उठा रहे हैं. लेकिन बुंदेलखंड हर चुनाव की तरह इस बार भी अपने विकसित होने का इंतजार कर रहा है. क्या वजह है कि आखिर बुंदेलखंड सियासी दलों के लिए सत्ता तक पहुंचने का रास्ता तो बन जाता है लेकिन खुद सत्ता से दूर रह जाता है.
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के इन हालातों का जिम्मेदार कौन?
बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश का एक ऐसा क्षेत्र है, जो आज भी अपने विकसित होने का इंतजार कर रहा है. बुंदेलखंड का नाम सुनते ही एक तरफ जहां सूखा, बेरोजगारी और शिक्षा जैसे गंभीर मामले सामने दिखते हैं. वहीं, दूसरी तरफ सियासी दलों को अवसर, सत्ता, वोट बैंक नजर आता है. बुंदेलखंड अभी तक क्यों पिछड़ा रहा इसके बहुत से कारण हैं. दरअसल उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड को सियासी दलों ने जितना नुकसान पहुंचाया, उतना शायद किसी ने नहीं.
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हर 5 साल बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होते हैं, लोकसभा चुनाव होते हैं. सभी चुनावों में बुंदेलखंड को विकसित करने के तमाम बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं. बीते सरकारों ने उत्तर प्रदेश को विकसित करने के लिए तमाम बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं. सपा, कांग्रेस, बसपा सभी बीते कई वर्षों से प्रदेश में अपना शासन लंबे समय तक कर चुके हैं. इन सभी के द्वारा सत्ता में आने से पहले कई बार बड़ी-बड़ी घोषणाएं बुंदेलखंड को ले कर की गईं, लेकिन यह घोषणाएं जमीन पर उतर नहीं पाईं. यही वजह है कि बुंदेलखंड में पलायन की स्थिति भी बनी रही. जिसकी वजह से यहां के युवा बाहर जाकर रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों की तरफ रुख करने लगे. इन सियासी दलों की बेरूखी की वजह से बुंदेलखंड आज भी पिछड़ा बना हुआ है और विकास को तरस रहा है.
बुंदेलखंड की समस्याएं
सूखा
गरीबी
खाद्य असुरक्षा (भुखमरी)
शिक्षा
उद्योग
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क्या है इन समस्याओं का समाधान?
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सरकारों की बेरुखी की वजह से बुंदेलखंड का विकास आज तक बेहतर तरीके से नहीं हो पाया. इसका खामियाजा रहा कि वहां पर पलायन बदस्तूर जारी रहा. ऐसे में बुंदेलखंड को एक स्थाई योजना की जरूरत थी. जिससे कि वहां की जल की समस्या को दूर किया जा सके और पलायन जैसे गंभीर मुद्दों का हल हो पाएं. जो बुंदेलखंड की जरूरतों को समझें. ऐसे में इन तमाम समस्याओं के समाधान के लिए एक विकास बोर्ड की जरूरत थी, जिसमें उसी क्षेत्र के लोगों को शामिल कर उनकी दिक्कतों को समझकर उनकी समस्या को दूर किया जा सके.
भारतीय जनता पार्टी को मिला बुंदेलखंडवासियों का वोट
जब भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में अलग से बुंदेलखंड विकास बोर्ड की बात की. उन तमाम स्थितियों से निपटने के लिए समाधान सुझाया. नतीजा यह रहा कि 2017 में भारी बहुमत के साथ जनता पार्टी सत्ता में आई. बुंदेलखंड से झोली भर कर भारतीय जनता पार्टी को प्यार मिला. बुंदेलखंड की जनता ने बीजेपी को सभी सीटें उनके खाते में दे दी. भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद सबसे पहले बुंदेलखंड विकास बोर्ड बनाया गया. हर घर जल की व्यवस्था की गई. इसके बाद अभी पहले से स्थिति थोड़ा बेहतर दिख रही है.
इस चुनाव में एक बार फिर से बुंदेलखंड के विकास की चर्चा जोरों पर है. ऐसे में अब देखना होगा कि 5 साल से भारतीय जनता पार्टी के द्वारा किए गए प्रयासों को क्या बुंदेलखंड एक बार फिर से मौका देगा या फिर विपक्ष को बुंदेलखंड में जीत का रास्ता मिलेगा.
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