अयोध्या के 11 दिन बाद क्यों गढ़वाल में मनाई जाती है दिवाली, जानें इगास बग्वाल त्योहार की खास बातें
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand1411006

अयोध्या के 11 दिन बाद क्यों गढ़वाल में मनाई जाती है दिवाली, जानें इगास बग्वाल त्योहार की खास बातें

इसकी प्राचीन काल से मान्यता ऐसी रही है कि जब भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त किया. माता सीता लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास को पूरा करके जब अपने राज्य को वापस आए तो उस वक्त लोगों ने आग जलाकर उनका भव्य स्वागत किया था.

 अयोध्या के 11 दिन बाद क्यों गढ़वाल में मनाई जाती है दिवाली, जानें इगास बग्वाल त्योहार की खास बातें

राम अनुज/देहरादून: दिवाली के 11 दिन के बाद उत्तराखंड में इगास बग्वाल मनाया जाता है. जिसको लेकर प्रदेश सरकार ने 1 दिन की छुट्टी घोषित की है.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को ट्वीट करके राजकीय छुट्टी घोषित होने की जानकारी को साझा किया है. दिवाली के 11वें दिन एकादशी के त्यौहार पर उत्तराखंड में इगास यानी बूढ़ी दिवाली मनाने की प्राचीन काल से प्रथा चली आ रही है. यह लोक पर्व उत्तराखंड की धरोहर संस्कृति का परिचय कराता है.
यह दूसरा मौका होगा जब प्रदेश सरकार ने छुट्टी घोषित की है. इससे पहले भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राजकीय छुट्टी घोषित कर चुके हैं.अब आपको यह बताते हैं कि इस पर्व को क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे क्या-क्या मान्यताएं हैं.

ग्यारहवें दिन बग्वाल को मनाने की है परंपरा 
दरअसल उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में प्राचीन काल से दिवाली के ग्यारहवें दिन बग्वाल को मनाने की परंपरा रही है. इसी तरह से कुमाऊं क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली भी मनाई जाती है या एकादशी के दिन इस तरह से मीठे पकवान भी बनाए जाते हैं. रात में परंपरा के मुताबिक स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है और भैलो जलाकर उसे घुमाया जाता है अब आपको बताते हैं कि भैलो एक आग का गोला होता है. उसको लेकर के नृत्य किया जाता है. ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं. अलाव के चारों तरफ स्थानीय लोग लोक संस्कृति लोक गीत की धुन पर नृत्य भी करते हैं और हर्ष उल्लास के साथ बग्वाल को मनाते हैं.

इसकी प्राचीन काल से मान्यता ऐसी रही है कि जब भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त किया. माता सीता लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास को पूरा करके जब अपने राज्य को वापस आए तो उस वक्त लोगों ने आग जलाकर उनका भव्य स्वागत किया था.जिससे दिवाली के त्योहार के रूप में जिसे हम मनाते हैं, लेकिन अयोध्या से गढ़वाल तक के लोगों को इसकी जानकारी मिलने में लगभग 11 दिन का वक्त लग गया और यही वजह है कि भगवान श्री राम के अपने राज्य वापस आने पर स्थानीय लोगों ने आग जलाकर भगवान श्रीराम का स्वागत किया.11 दिन के बाद स्थानीय लोगों ने इगास मनाए इस तरह की परंपराएं रही है और गढ़वाल में भी कई तरह की मान्यताएं देखने को मिलती.

ये है मान्यता 
प्राचीन मान्यता के मुताबिक गढ़वाल में वीर माधव सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे. करीब 400 साल पहले राजा ने माधव सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा था. इसी बीच भगवान दिवाली का त्यौहार भी था, परंतु त्यौहार तक कोई भी सैनिक जब वापस नहीं आया तो सबने सोचा माधव सिंह उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए . मगर दिवाली के ग्यारहवें दिन माधव सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से युद्ध जीतकर वापस आए और फिर दिवाली मनाई.

देवी देवताओं के जागर गाई 
इस तरह से कई लोकोक्तियां भी और कहानियां भी है खास बात है. सूखी लकड़ियों के छोटे छोटे टुकड़ों को जलाया जाता है. उर पूजा अर्चना कर भैलो का तिलक किया जाता है, फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और आग के चारों तरफ इसे घुमाते हैं और बड़े हर्ष और उल्लास के साथ करतब दिखाते हुए नृत्य करते हैं. पारंपरिक लोकनृत्य में झूमेलो के साथ भैलो रे भैलो लोकगीत गाया जाता है. देवी देवताओं के जागर गाई जाती है और बहुत ही हर्षोल्लास के साथ 11 वें दिन इगास का त्यौहार मनाया जाता है. इस पर्व को कुमाऊं और गढ़वाल में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है. मगर प्रदेश सरकार ने इगलास के दिन पर राजकीय छुट्टी घोषित की है जिसको लेकर हर्षोल्लास का वातावरण देखा जा रहा है.

Trending news