Jaunpur Songar Village: यूपी के जौनपुर में एक ऐसा गांव भी है जहां बच्चे जहरीले सांपों के साथ खिलौनों की तरह खेलते हैं. सांप यहां इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाते. आइये जानते हैं इस गांव का नाम और इससे जुड़ी प्रचलित मान्यताएं
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Jaunpur Songar Village: जौनपुर/अजीत सिंह: सांप का नाम सुनते ही जहां लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक ऐसा गांव है जहां चीतर जैसा खतरनाक सांप लोगों के लिए किसी खिलौने से कम नहीं है. इतना ही नहीं साप के डसने का भी यहां के लोगों पर कोई असर नहीं होता. इस गांव के बच्चे गले में सांप को ऐसे लटका कर चलते हैं मानो कोई रस्सी हो. यह सुनकर आप भी हैरान हो गए होंगे. यह गांव जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर नगर पंचायत खेतासराय में है. इसका नाम सोंगर है.
चीतर सांप और सोंगर का है अनोखा रिश्ता
इस गांव में हर घर के बच्चे चीतर सांप से खेलते हैं. दावा किया जाता है कि गांववालों को चीतर के काटने का कोई असर नहीं होता. इतना ही नहीं अगर किसी दूसरे गांव के किसी व्यक्ति को सांप डस ले तो सोंगर की सरहद में दाखिल होते ही उसके शरीर में फैला जहर बेअसर हो जाता है. वह पूरी तरह से ठीक हो जाता है. चीतर के साथ खेल रहे बच्चों का कहना है कि उन्हें साप से डर नहीं लगता. यहां सभी सांप से खेलते हैं. उन्हें इसमें मजा आता है. बच्चों ने बताया कि खेलते समय सांप उन्हें नहीं काटते हैं. वहीं, आस-पास के गांव वाले सोंगर के बच्चों और चीतर सांप का ये अनोखा रिश्ता देख हैरान हो जाते हैं.
चीतर सांप को मिला था श्राप
गांव वालों के मुताबिक, 600 साल पहले शर्की राजवंश के दौरान वर्ष 1422 में नेत्रहीन सूफी संत हजरत कुतुबुद्दीन इस रास्ते से गुजर रहे थे. उनके साथ उस्ताद हजरत नजमुद्दीन भी थे. हजरत कुतुबुद्दीन के उस्ताद ने उन्हें यहीं रहने को कहा था. एक दिन चीतर प्रजाति का सांप हजरत कुतुबुद्दीन के पैरों के नीचे पड़ गया. सर्प ने उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, तो उन्होंने सर्प को इस गांव में केंचुए जैसा स्वभाव का होने का श्राप दे दिया. तभी से चीतर सांप इस गांव में प्रभावहीन हो गया.
गांव वालों का कहना है कि चीतर सांप का डसा व्यक्ति बेहोशी की हालत में सोंगर गांव की सीमा में पहुंचते ही पूरी तरह होश में आ जाता है. यही कारण है कि कई बार देर रात में भी दूसरे गांवों के लोग पीड़ित को यहां लेकर आते हैं. स्थानीय निवासियों के मुताबिक, जून से सितंबर तक पीड़ितों की संख्या अधिक रहती है. लोग अपने परिजनों को यहां ठीक करने के लिए ले आते हैं.
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