karwa chauth के दिन करवा माता के साथ मां पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी की पूजा करने का भी विधान है. दिन सुहाग से जुड़ी चीजों का काफी महत्व होता है इसलिए सुहागिन स्त्रियां करवा चौथ पर सोलह श्रृंगार करती हैं. पूजा और करवा चौथ व्रत की कथा सुनने के बाद रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत व्रत का पारण करती हैं.
Trending Photos
नई दिल्ली: आज यानी 24 अक्टूबर को देश भर में करवाचौथ का त्योहार मनाया जा रहा है. करवाचौथ पर सुहागिन महिलाएं अपनी पति की दीर्घायु की कामना करती हैं. करवाचौथ के इस व्रत को करक चतुर्थी, दशरथ चतुर्थी, संकष्टि चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. यह व्रत निर्जला किया जाता है. इसमें सूर्योदय के पहले सरगी खाने के बाद रात को चंद्रमा निकलने (Moonrise) तक पानी भी नहीं पिया जाता है. इसलिए करवा चौथ के दिन सबसे ज्यादा इंतजार चांद निकलने का रहता है. इस बार तो करवा चौथ का व्रत बहुत खास है क्योंकि यह रविवार को है और इसका चांद रोहिणी नक्षत्र में निकलेगा.
क्या है इस व्रत की धार्मिक मान्यता ?
माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव, पार्वती, श्री गणेश और कार्तिकेय जी की पूजा-अर्चना होनी चाहिए. यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहा जाता है.चांद दिखने के बाद सभी सुहागिनें छलनी में दीपक रख चांद का दीदार करती हैं. और फिर उसी छलनी से अपने पति का दीदार कर अपना व्रत खोलती हैं.
पूजा विधि
करवा चौथ व्रत का प्रारंभ सूर्योदय के समय से करें. इसके लिए स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके लिए हाथ में गंगाजल लेकर भगवान का ध्यान करें. इसके बाद जल को किसी गमले में डाल दें. अब पूरे दिन निर्जला व्रत रखें. शाम को भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा करें. उन्हें रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करें. इसके बाद करवा चौथ व्रत की कथा का पाठ करें. चंद्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्घ्य दें और पति की आरती उतारें. इसके बाद जल ग्रहण करें.
चांद के दीदार के बाद खत्म होता है व्रत
करवा चौथ का पावन पर्व पूरे देश में सुहागनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. यह ऐसा पर्व है जिसका सफर चांद छिपने से लेकर चांद दिखने तक होता है. यानी कि चांद छिपने के बाद (भोर में) महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू होता है, जो शाम को चांद के दीदार के बाद ही पूरा होता है. लेकिन, इस दिन चांद भी लुका-छुपी के मूड में होता है और सज-संवर कर, सोलह श्रृंगार कर आईं महिलाओं के साथ खेलता है. ऐसा कहा जाता है कि करवा चौथ का चांद रोज के हिसाब से देर से ही निकलता है.
भय, श्राप या परंपरा: UP के इस गांव की महिलाएं नहीं मनाती करवाचौथ, व्रत रखने पर उजड़ जाता है सुहाग
महिलाएं करती है सोलह श्रंगार
जब बादलों की ओट से चांद निकलकर आता है, तो बेहद सुंदर लगता है. करवाचौथ का त्योहार तो मानो आता ही महिलाओं के सोलह श्रृंगार के लिए है. महिलाएं भी सजने में पीछे कहां हटती हैं? एक ओर चांद बाहर आता है और दूसरी ओर सुहागनें भी घूंघट की ओट से बाहर निकलती हैं. दोनों ही एक दूसरे को खूब टक्कर देते हैं. धरती पर अपनी चांदनी बिखेरता चांद और दुल्हन सी सजी सुहागनें... चारों ओर ऐसा नजारा होता है मानों धरती पर आसमान से परियां उतर आई हों.
WATCH LIVE TV