भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित बहराइच जनपद में मदरसों के सर्वे से कई ऐसी जानकारियां सामने आई हैं, जो सरकार के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं. यहां लगभग 9 दशक पुराने मदरसे हैं. कुछ मदरसे मान्यता के बिना संचालित हैं जबकि कुछ चंदे की रकम से चल रहे हैं.
Trending Photos
राजीव शर्मा/ बहराइच: उत्तरप्रदेश में सरकार के निर्देश पर मदरसों के सर्वे का कार्यक्रम बड़ी तेजी से चल रहा है हुआ. इसी कड़ी में भारत-नेपाल की सरहद से लगे बहराइच जिले में भी सर्वे का कार्य किया जा रहा है. मदरसों का सर्वे करने के लिए गठित टीम ने जनपद के सबसे पुराने और बड़े मदरसे की जांच पड़ताल की. इसमें पता चला कि मदरसे की मान्यता नहीं है. मदरसे का संचालन चंदे के द्वारा विगत काफी अर्से से संचालित होता चला आ रहा है. इसमें आसपास के जिलों के अलावा नेपाल के छात्र भी पढ़ाई कर रहे हैं.
सर्वे टीम में एसडीएम भी शामिल
बताया जा रहा है कि सर्वे कार्य में मदरसा संचालकों ने पूरा सहयोग किया. सरकार द्वारा पूरे प्रदेश में संचालित हो रहे मदरसों का सर्वे करने का निर्देश दिया गया है. उसी के तहत बहराइच सदर के उपजिलाधिकारी एसडीएम सुभाष सिंह धामी, व जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी संजय मिश्रा की अगुवाई में टीम ने शहर में संचालित मदरसों का स्थलीय सर्वे किया.
यह भी पढ़ें: बैंक खाते के लिए फिंगर स्कैन करवाते हैं तो सावधान, औरैया में बैंककर्मियों की मिलीभगत से युवक को लगा 6 लाख चूना
9 दशक पुराने मदरसे का सर्वे
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी संजय मिश्रा ने बताया कि शासन के निर्देश पर मदरसा जामिया नूर उल उलूम का सर्वे किया गया. यह 1931 में यह मदरसा स्थापित हुआ है. इस मदरसे में 966 बच्चे पढ़ रहे हैं. 350 बच्चे हॉस्टल सुविधा में रह रहे हैं. इस मदरसा का संचालन चंदा द्वारा किया जा रहा है. इसके बाद अधिकारियों की टीम मदरसा उम्मे सलमा की जांच करने पहुंची. यहां 450 बच्चे शिक्षा की तालीम हासिल कर रहे हैं. टीम ने मदरसा हिदायत उल उलूम का सर्वे किया. यहां कोई खामी नहीं मिली. मौके पर जांच करने पहुंचे जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने बताया कि सरकार के निर्देश पर 12 बिंदुओं पर जांच की जा रही है.