कुशीनगर के गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने रेड डॉट यानी बीमारी से निपटने के लिए दवाई तलाश ली है.
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प्रमोद कुमार गौंड़/कुशीनगर : देश भर के गन्ना किसानों के लिए कुशीनगर से एक बड़ी खुशखबरी आई है. गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने गन्ने का कैंसर कहे जाने वाले रेड रॉट नाम की बीमारी का इलाज तलाश लिया है. अगर ये दवा अंतिम ट्रायल में कारगर साबित हुई तो सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के गन्ना किसानों को राहत मिलेगी. दरअसल हर साल हजारों क्विंटल फसल इस खतरनाक बीमारी की बलि चढ़ जाती है. कुशीनगर वैसे तो यूपी के अंतिम छोर पर बसा है लेकिन यहां के वैज्ञानिकों ने वो कर दिखाया है जो पूरे देश के गन्ना शोध केन्द्रों के वैज्ञानिक नहीं कर पाए. कुशीनगर के सेवरही स्थित गेंदा सिंह गन्ना शोध संस्थान में दवा का अविष्कार हुआ है.
क्या है रेड रॉट बीमारी
इस बीमारी में गन्ने के तने में लाल रंग की सड़न दिखने लगती है. रोग प्रभावित गन्ने की हर तीसरी चौथी पत्ती पीली पड़ने लगती है. बीच-बीच में सफेद धब्बे पड़ जाते हैं. इतना ही नहीं गन्ने के तने को छूने पर अल्कोहल जैसी गंध आने लगती है. एक अनुमान की मानें तो जिस खेत में ये रोग लग जाता है वहां 95 प्रतिशत तक गन्ने की फसल बर्बाद हो जाती है,जो किसान के लिए एक बड़ी क्षति होती है. उत्तरप्रदेश ही नहीं दूसरे पंजाब, हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों में भी यह रोग गन्ना किसानों के लिए मुसीबत से कम नहीं है.जैविक उत्पाद ट्राइकोडर्मा दवा को दस किलो प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा रहा है. गन्ने पर इसका कोई नकारात्मक असर भी नहीं होता है. संस्थान के वैज्ञानिक योगेंद्र भारती के मुताबिक यह दवा रोग से पूर्व बचाव में मददगार होगी.
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पिछले कुछ सालों में गोरखपुर समेत महाराजगंज, देवरिया और कुशीनगर में ‘रेड रॉट’ ने गन्ना की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है. इस रोग के चलते गन्ने की मिठास,उत्पादन व बिक्री तीनों पर असर पड़ता है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक गन्ने के जड़ से लेकर ऊपरी भाग तक इस रोग का प्रकोप रहता है.
कुशीनगर के गन्ना शोध संस्थान द्वारा तैयार की गई दवा यदि ट्रायल में पास हो जाती है तो उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, बिहार और ओडिशा के गन्ना किसानों को बड़ी राहत मिलेगी. उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी इस रोग का प्रकोप महामारी के रूप में होता है.
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