Trending News: ज्योतिर्मठ और द्वारका शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य का निधन हो गया. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 99 साल की उम्र में परमेश्वर में एकाकार हो गए.
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Shankaracharya Saraswati Passed Away: ज्योतिर्मठ और द्वारका शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य का निधन हो गया. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 99 साल की उम्र में परमेश्वर में एकाकार हो गए. बता दें कि उन्होंने नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में आज दोपहर अंतिम सांस ली. जानकारी के मुताबिक वह लंबे समय से अस्वस्थ थे. बता दें कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने आजादी की जंग में भी हिस्सा लिया था, तब उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. इसके अलावा राम नगरी अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी.
हरियाली तीज के दिन था जन्मदिन
आपको बता दें कि अभी हाल ही में हरियाली तीज बीता है. उसी दिन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्मदिन भी था. उनका 99 वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया था. खास बात ये है कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारका एवं ज्योतिर्मठ दोनों मठों के शंकराचार्य थे.
आजादी से पहले सिवनी जिले में हुआ था जन्म
आपको बता दें कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म देश की आजादी से पहले 2 सितंबर सन 1924 में हुआ था. मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के छोटे से गांव दिघोरी में वह पैदा हुए थे. उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और माता का नाम गिरिजा देवी था.
माता-पिता ने दिया था पोथीराम नाम
बता दें कि घर परिवार और माता-पिता की तरफ से उन्हें पोथीराम उपाध्याय नाम दिया गया. तब पोथीराम ने मात्र 9 साल की उम्र में घर बार छोड़ दिया. गृह त्याग कर उन्होंने धर्म यात्राएं शुरू कर दी. अपनी धर्म यात्रा के दौरान वह वाराणसी यानी संस्कृति राजधानी काशी पहुंचे. जहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग से शास्त्रों की शिक्षा ली.
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े
ये वही समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने की आजादी की जंग चल रही थी. आजादी के दीवाने अपनी जान की परवाह किए बगैर स्वाधीनता के लिए अपनी जान न्योछावर कर रहे थे. तब काशी भी इसका बहुत बड़ा गढ़ था. स्वामी जी भी इससे अछूते नहीं रहे. सन 1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया गया, तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. मात्र 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में जाने जाने लगे.
स्वतंत्रता संग्राम में कारावास
स्वतंत्रता संग्राम कूदने के बाद शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को वाराणसी की 9 महीने का कारावास और मध्यप्रदेश की 6 महीने जेल में रहना पड़ा. बता दें कि करपात्री महाराज से शिक्षा लेने के बाद, वह उनके राजनीतिक दल 'राम राज्य परिषद' में भी शामिल हो गए. इस राजनीतिक दल के वह अध्यक्ष भी रहे. वक्त गुजरा और 1950 में वह दंडी संन्यासी बन गए. जिसके बाद साल 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली. साल 1950 में उन्होंने शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दंडी-सन्यास की दीक्षा ली. जिसके बाद वह स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हुए. ये तो था उनके जीवन का कुछ पहलू.
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